किसान की मौत और चलता रहा चुनावी भाषण, क्या यही भाजपा का नया चरित्र?

किसान की लाश बगल में पड़ी रहीं और प्रदेश के महाराज भाषण देते रहें...

 


अजीत लाड़/ खबर नेशन/Khabar Nation /8120060200

किसानों की मौत के बाद देश में सियासत होते हुए कई बार सुना होगा। लेकिन खंडवा के मूंदी में पहली बार ऐसा देखने को मिला। जब एक बुजुर्ग किसान चुनावी रैली के दौरान दम तोड़ दिया। उसके बावजूद बेधड़क रैली चलती रहीं। वाकया मूंदी का है। जहां मांधाता विधानसभा के भाजपा प्रत्याशी नारायण पटेल के पक्ष में रैली संबोधित करने ज्योतिरादित्य सिंधिया आएं थे। मंच पर सिंधिया के अलावा नंद कुमार सिंह चौहान और कई अन्य शीर्ष नेताओं का हुजूम उमड़ा रहा, लेकिन दुर्भाग्य ही है लोकतंत्र में अवाम के लिए। जिस पार्टी का मुख्यमंत्री अपने को किसान-पुत्र कहते नहीं अघाता। उनके नेता सिर्फ़ मत तंत्र की उर्वरक जमीन तलाशते दिखें। मंच पर ज्योतिरादित्य सिंधिया सरीखा नेता भाषण-भाषण खेलते रहें और बुजुर्ग किसान मरने के बाद भी कुर्सी पर पड़ा रहा। 

    हुजूर आपके मुख्यमंत्री अपने को किसान का बेटा बताते हैं, फ़िर किसान की मौत पर आप सियासत की रोटी क्यों सेंकने में लगें रहें? जवाब दीजिए, जवाब देना भी पड़ेगा! बुजुर्ग किसान की जान की क़ीमत आपके क्या कुछ भी नही? कुर्सी पर बैठते ही किसान तो मरा नहीं होगा, फ़िर समय से अस्पताल क्यों नहीं पहुँचाया महाराज? इतनी बड़ी रैली आयोजित करवाते हैं। कोरोना काल में बड़े-बुजुर्ग सभी को सभास्थल पर लाने का ठेका अपने छुटभैये नेताओ को दे सकते। फ़िर एक एम्बुलेंस और डॉक्टर का इंतजाम तो कर ही सकते थे? वैसे आपके लिए अवाम की फ़िक्र कहाँ? उससे आपका मोह तो सिर्फ़ मत की ख़ातिर होता है। जो आज स्पष्ट दिखा। आपके लिए हैलीकॉप्टर। आपके लिए एम्बुलेंस। आपके लिए सोफा। आपके लिए कूलर भी और अवाम धूप में बैठकर सुनें आपको। ऊपर से कुछ अनहोनी हो गई। तो उसके लिए एक डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं। भाषण में आप सत्यवादिता की दुहाई तो ऐसे देते रहें, जैसे राजा हरिश्चन्द्र आपकी ही खानदान से हो। फ़िर किसी बुजुर्ग किसान की मौत पर ख़ामोशी क्यों? अस्पताल तो पहुँचा ही सकते थे महाराज अपने गुर्गों से कहकर, लेकिन आपने तो उसका हाल जनाना भी उचित नहीं समझा! हाल छोड़िए किसान के मरने के बाद श्रद्धांजलि देना भी उचित नहीं समझा। कहाँ से समझते? आप क्या समझें किसान और उसकी व्यथा को! आपके लिए तो भीड़ जरूरी थी और ज़रूरी थी भाषणबाजी। तभी तो कार्यकर्ताओं द्वारा सूचित किए जाने के बाद भी आपमें संवेदना नहीं दिखी। वैसे ऐसे ही होते क्या महाराजा और महाराज? जनता जानना चाहती है?क्या कुछ समय के लिए भाषण रोक नहीं सकते थे सियासत के रणवीर? 


कल कांग्रेस प्रत्याशी की गाड़ी से एक बच्चे की दुर्घटना हुई तो आप बड़ा चिल्ला रहे थे। फ़िर आज कहाँ गई आपकी संवेदना, कहाँ गया मानवतावादी दृष्टिकोण? इतना निर्मम तो एक नेता को नहीं होना चाहिए महाराज? आप किसानों से बात करने आए और किसान की लाश पर ही राजनीति करते महाराज। यह न्यायोचित तो नहीं! आख़िर में सवाल ज्योतिरादित्य सिंधिया और पार्टी के अन्य नेताओं से बस इतना ही, कि क्या आप अपने शीर्ष नेताओं से भी कुछ सीख लेते या अपनी ही हांकते रहते चुनावी चौपाल में। आपसे इतना संवेदनहीन और निर्लज्ज होने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन आप तो बगल में पड़ी लाश पर चुनावी बिसात साधते रहें, जिसकी उम्मीद नहीं थी। राजनीति की भी हद्द होती है, लेकिन आप तो उसकी सीमा भी लांघ रहें।

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