सपनों के सौदागर की डर का सौदागर बनने की अंतर्कथा


और अंत तक जीवट राजनीतिज्ञ रहे अजीत जोगी
देश में किसी आयएएस की राजनीति में एंट्री का गवाह रहा है इंदौर 
अर्जुन सिंह ने नेता बनाया अजित जोगी को 
खबर नेशन / Khabar Nation / और वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा की क़लम से

व्हीलचेयर पर राजनीति वो भी ना दबने वाली और ना झुकने वाली । अगर राजनैतिक सफर ख़ासकर छत्तीसगढ़ की राजनीति में देंखे तो महज़ आठ दस साल का लेकिन देश के उन दिग्गज राजनेताओं को परास्त करने का दमखम जो राष्ट्रीय राजनीति में हर दम प्रासंगिक रहे के बीच अपनी जगह बनाने में अजीत जोगी सफल रहे । दौर कांग्रेस का था और दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा सामने थे । एक नजर अजीत जोगी के सफ़र पर.....
साल 2004 में एक सड़क हादसे में वो बाल बाल बच तो गए लेकिन उनकी कमर से नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर चुका था और वो 'व्हील चेयर' पर आ गए। इस दुर्घटना ने उनके जज्बे को कम नहीं किया और जो वो चाहते रहे वो कांग्रेस पार्टी में होता रहा। चाहे टिकट का बंटवारा हो या टिकट काटना हो।

अजीत जोगी की राजनीति पर नजर रखने वालों का कहना था कि अभी उनका दल नया है। कुछ सालों में या अगले विधानसभा के चुनावों के आते-आते तक शायद जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक बड़ा क्षेत्रीय दल बनकर उभरें। क्योंकि अजित जोगी ऐसा करने में सक्षम हैं और वो राजनीतिक तिकड़मों को अच्छे से समझते हैं।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई। फिर बने आईपीएस और फिर आईएएस से लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद तक का सफर तय करने वाले अजीत जोगी। अजीत जोगी राजनीति के धुरंधरों में गिने जाते रहे हैं। अजीत जोगी को 'सपनों का सौदागर' भी कहा जाता रहा है।


जोगी ने खुद अपने को 'सपनों का सौदागार' कहा था। साल 2000 में जब जोगी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उन्होंने कहा था, ''हां मैं सपनों का सौदागर हूं। मैं सपने बेचता हूं।'' लेकिन 2003 में हुए विधानसभा चुनावों में 'सपनों के सौदागर' को हार का सामना करना पड़ा। फिर 2008 में और 2013 में भी वो सपने नहीं बेच पाए।
कांग्रेस को कहा अलविदा
आखिरकार अजीत जोगी ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया और छत्तीसगढ़ में अपनी एक नई पार्टी बनाई। छत्तीसगढ़ की राजनीति में दो मुख्य खिलाड़ी ही रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस।

किसी मजबूत और जमीनी पकड़ रखने वाले क्षेत्रीय दल की कमी की वजह से प्रदेश के लोगों के पास बस ये दो ही विकल्प थे। अजित जोगी ने विकल्प देने के लिए जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ नाम के एक राजनीतिक दल का गठन किया, वो भी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले।

फिर उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करते हुए खुद के बारे में कहा कि इन चुनावों में वो 'किंगमेकर' की भूमिका निभाएंगे। यानी जिसे वो चाहेंगे उसके हाथों में छत्तीसगढ़ की सत्ता की बागडोर होगी। लेकिन उनका ये गठबंधन 'फ्लाप' साबित हुआ और कांग्रेस की आंधी में भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का भी प्रदर्शन निराशाजनक रहा।
'जोगी का कांग्रेस से जाना- वरदान'
अजीत जोगी की पार्टी 2018 विधानसभा चुनावों में भी सिर्फ तीन सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई। हालांकि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि अजित जोगी का कांग्रेस पार्टी से जाना उनके लिए 'वरदान' बन गया।

बघेल कहते हैं, "अगर अजित जोगी पहले चले गए होते तो कांग्रेस प्रदेश में पहले ही सत्ता कायम कर लेती। उन्होंने पार्टी के अंदर रहकर पार्टी को ही ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। वो कांग्रेस के प्रत्याशियों को हरवाने का काम करते रहे।"

कांग्रेस पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अपने मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने विकास के काम तो किए। लेकिन जल्द ही उनकी छवि 'डर के सौदागर' की बननी शुरू हो गई।
अजीत जोगी के सफर पर एक नजर
नंगे पैर स्कूल जाने से लेकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई और ईसाई धर्म अपनाने से लेकर प्रशासनिक सेवा तक के सफर ने जोगी को परिपक्व बना दिया। जानकारों को लगता है कि इसी परिपक्वता ने उनमें वो गुण भर दिए, जिसे आम बोलचाल की भाषा में 'तिकड़म' कहा जाता है।

जोगी को इसका 'बादशाह' माना जाने लगा। इसीलिए उन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही भारतीय जनता पार्टी में सेंध मार दी और उनके 12 विधायकों को अपने साथ शामिल कर लिया। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उनकी इस खूबी की वजह से ही कांग्रेस पार्टी का हाई कमान उनपर भरोसा करता था और छोटे से प्रदेश यानी छत्तीसगढ़ के मामलों में सीधे हस्तक्षेप नहीं करता था।

जोगी ने खुद अपने को 'सपनों का सौदागार' कहा था। साल 2000 में जब जोगी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उन्होंने कहा था, ''हां मैं सपनों का सौदागर हूं। मैं सपने बेचता हूं।'' लेकिन 2003 में हुए विधानसभा चुनावों में 'सपनों के सौदागर' को हार का सामना करना पड़ा। फिर 2008 में और 2013 में भी वो सपने नहीं बेच पाए।
कांग्रेस को कहा अलविदा
आखिरकार अजीत जोगी ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया और छत्तीसगढ़ में अपनी एक नई पार्टी बनाई। छत्तीसगढ़ की राजनीति में दो मुख्य खिलाड़ी ही रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस।

किसी मजबूत और जमीनी पकड़ रखने वाले क्षेत्रीय दल की कमी की वजह से प्रदेश के लोगों के पास बस ये दो ही विकल्प थे। अजित जोगी ने विकल्प देने के लिए जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ नाम के एक राजनीतिक दल का गठन किया, वो भी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले।

फिर उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करते हुए खुद के बारे में कहा कि इन चुनावों में वो 'किंगमेकर' की भूमिका निभाएंगे। यानी जिसे वो चाहेंगे उसके हाथों में छत्तीसगढ़ की सत्ता की बागडोर होगी। लेकिन उनका ये गठबंधन 'फ्लाप' साबित हुआ और कांग्रेस की आंधी में भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का भी प्रदर्शन निराशाजनक रहा।
'जोगी का कांग्रेस से जाना- वरदान'
अजीत जोगी की पार्टी 2018 विधानसभा चुनावों में भी सिर्फ तीन सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई। हालांकि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि अजित जोगी का कांग्रेस पार्टी से जाना उनके लिए 'वरदान' बन गया।

बघेल कहते हैं, "अगर अजित जोगी पहले चले गए होते तो कांग्रेस प्रदेश में पहले ही सत्ता कायम कर लेती। उन्होंने पार्टी के अंदर रहकर पार्टी को ही ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। वो कांग्रेस के प्रत्याशियों को हरवाने का काम करते रहे।"

कांग्रेस पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अपने मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने विकास के काम तो किए। लेकिन जल्द ही उनकी छवि 'डर के सौदागर' की बननी शुरू हो गई।
अजीत जोगी के सफर पर एक नजर
नंगे पैर स्कूल जाने से लेकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई और ईसाई धर्म अपनाने से लेकर प्रशासनिक सेवा तक के सफर ने जोगी को परिपक्व बना दिया। जानकारों को लगता है कि इसी परिपक्वता ने उनमें वो गुण भर दिए, जिसे आम बोलचाल की भाषा में 'तिकड़म' कहा जाता है।

जोगी को इसका 'बादशाह' माना जाने लगा। इसीलिए उन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही भारतीय जनता पार्टी में सेंध मार दी और उनके 12 विधायकों को अपने साथ शामिल कर लिया। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उनकी इस खूबी की वजह से ही कांग्रेस पार्टी का हाई कमान उनपर भरोसा करता था और छोटे से प्रदेश यानी छत्तीसगढ़ के मामलों में सीधे हस्तक्षेप नहीं करता था।

साल 2004 में एक सड़क हादसे में वो बाल बाल बच तो गए लेकिन उनकी कमर से नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर चुका था और वो 'व्हील चेयर' पर आ गए। इस दुर्घटना ने उनके जज्बे को कम नहीं किया और जो वो चाहते रहे वो कांग्रेस पार्टी में होता रहा। चाहे टिकट का बंटवारा हो या टिकट काटना हो।

अजीत जोगी की राजनीति पर नजर रखने वालों का कहना है कि अभी उनका दल नया है। कुछ सालों में या अगले विधानसभा के चुनावों के आते-आते तक शायद जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक बड़ा क्षेत्रीय दल बनकर उभरें। क्योंकि अजित जोगी ऐसा करने में सक्षम हैं और वो राजनीतिक तिकड़मों को अच्छे से समझते हैं।
 

देश में किसी आयएएस की राजनीति में एंट्री का गवाह रहा है इंदौर 
अर्जुन सिंह ने नेता बनाया अजित जोगी को 
वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा की नज़र से

इंदौर कलेक्टरों में सर्वाधिक लोकप्रिय कलेक्टर हुए नरेश नारद और उनकी ही तरह अजित जोगी भी शहर से गांवों तक लोकप्रिय रहे।ऐसा नहीं कि इनके बाद कलेक्टर नहीं आए पर इन के कार्य-व्यवहार की तरह उतने फेमस नहीं हो सके। 
भारतीय राजनीति में किसी आयएएस के राज्यसभा सदस्य बनने का इतिहास भी इंदौर के नाम ही दर्ज है। मप्र में तब मुख्यमंत्री थे मोतीलाल वोरा, केंद्रीय मंत्री हुआ करते थे अर्जुन सिंह। सिंह को जितने प्रिय (उनके सीएम रहते संस्कृति सचिव) अशोक वाजपेयी थे उतने ही अजित जोगी भी।जोगी तब कलेक्टर इंदौर पदस्थ थे।उसी दौरान राज्यसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरु हुई। आयपीएस के साथ आयएएस अजित जोगी इंदौर कलेक्टर तो थे लेकिन नौकरी छोड़ने के लिए छटपटा रहे थे। इसी दौरान अर्जुन सिंह ने उनके समक्ष राज्यसभा का प्रस्ताव रखते हुए उनकी इच्छा जानना चाही। इस प्रस्ताव पर जोगी ने पत्नी डॉ रेणु जोगी से चर्चा की और राजनीति ज्वाइन करने का मन बना लिया। अर्जुन सिंह ने प्रधान मंत्री (स्व) राजीव गांधी को उनका नाम सुझाया, बाकी लॉबिंग राजीव के सचिव वी जार्ज ने की। मप्र में कांग्रेस तब भी खेमों में बंटी थी (छत्तीसगढ़ तब मप्र में ही शामिल था)। श्यामाचरण-वीसी शुक्ल बंधु, मोतीलाल वोरा-माधवराव सिंधिया, सुरेश पचोरी गुट राज्यसभा से अपने समर्थक के लिए सक्रिय थे।
अजित जोगी की जाति को लेकर दशकों से विवाद चल रहा है लेकिन तब जोगी के पक्ष में वी जॉर्ज और अर्जुन सिंह का मजबूत तर्क था कि आयएएस तो हैं ही साथ ही आदिवासी इसाई हैं, जोगी को राज्यसभा में भेजने से यह बड़ा वोट बैंक कांग्रेस के मजबूत आधार में मददगार साबित होगा।जोगी का नाम बढ़ा कर सिंह ने कांग्रेस के बाकी क्षत्रपों को भी निपटा दिया था। पीएम कार्यालय से स्वीकृति मिलते ही रातोंरात इंदौर कलेक्टोरेट की निर्वाचन शाखा का ताला खुला, निर्वाचन नामावली में अजित जोगी के नाम वाली औपचारिकता के दस्तावेज सर्टिफाई कराए गए, कांग्रेस आलाकमान ने मप्र की राज्यसभा सीट से अजित जोगी का नाम घोषित कर दिया और इस तरह एक आयएएस का इंदौर से राजनीति में प्रवेश हुआ और वे बाद में अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधि नेता के रूप में भी स्थापित हुए। 
1984 के दंगों में जलता राजबाड़ा बचाया
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ भड़की हिंसा का शिकार इंदौर का राजबाड़ा भी हुआ था। राजबाड़ा के (खजूरी बाजार की ओर जाने वाले रास्ते)एक हिस्से में दीवार से सटी दुकानें थी। इन दुकानों में सरदारों द्वारा संचालित दुकानें भी थी।सिख विरोधी नफरत के चलते कुछ लोगों ने इस दुकान में आग लगा दी थी, कुछ विरोधियों ने आग की इस घटना में पूर्व उप मंत्री ललित जैन का नाम प्रचारित कर दिया था। इन दुकानों से उठी लपटों ने राजवाड़ा के दरबार हॉल को भी चपेट में ले लिया था। फायर ब्रिगेड की गाड़ियां आग बुझाने में लगी हुई थी। तब कलेक्टर जोगी दमकल पर चढ़ गए और पानी फेंकने वाला पाईप हाथों में लेकर आग बुझाने की कोशिश करने लगे। ये फोटो खूब चर्चित हुआ था। 
अनंत चतुर्दशी के झांकी मार्ग पर घुड़सवार जोगी 
हर साल निकलने वाली कपड़ा मिलों की झांकी निर्धारित समय से काफी लेट निकलती और विलंब के कारण सुबह आठ-नौ बजे तक वापस कपड़ा मिल पहुंचती थी। एक साल जोगी ने तय कर लिया किसी हालत में झांकी लेट नहीं होने देंगे। तब वे पूरे झांकी मार्ग पर घुड़सवार दस्ते के साथ घूमते रहे थे। इंदौर के लोगों ने पहली बार किसी कलेक्टर को घुड़सवारी करते देखा था।
आप की सरकार आप के द्वार 
कलेक्टर अजित जोगी का किसी भी गांव में, चौपाल पर रात गुजारना भी खूब चर्चा में रहा था। उनसे पहले नरेश नारद भी इसी तरह गांवों में एक रात गुजारा करते थे। सारे प्रशासनिक अमले के साथ वे जिस गांव में पहुंचते वहीं चौपाल पर गांव की समस्या, लोगों की शिकायतों का हाथोंहाथ निराकरण किया जाता था।इंदौर से हुई इस शुरुआत को बाद में सभी कलेक्टरों से सरकार ने फालो करवाया।अभी जब कमलनाथ सरकार सत्ता में आई थी तब इसी पहल की फिर से शुरुआत का निर्णय लिया गया था। 
पामोलीन कांड और केट के नक्शे
कलेक्टर रहते अजित जोगी का विवादों से भी कम नाता नहीं रहा। उनके ही रहते इंदौर में पीडीएस योजना में गरीबों में वितरित किए जाने वाला पॉमोलिन आईल कांड खूब चर्चा में रहा था। पूर्व मंत्री महेश जोशी के एक भाई नागरिक आपूर्ति निगम महाप्रबंधक हुआ करते थे। पामोलिन कांड में दोनों के नाम खूब उछले थे। जब जोगी का नाम राज्यसभा के लिए फायनल हो गया तब मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा ने ही पामोलीन कांड में जोगी को क्लीन चिट दी थी। 
इसी तरह प्रगत प्रोद्योगिक केंद्र (केट) की स्थापना केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह के प्रयास से ही इंदौर में संभव हुई, केट के लिए जमीन उपलब्ध कराने का दायित्व कलेक्टर अजित जोगी का था। केट की स्थापना के दौरान ही इस संस्था के नक्शे चोरी होने का विवाद गहरा गया। पूर्व सांसद कल्याण जैन आए दिन इस मामले को लेकर प्रेस कांफ्रेंस करते, नक्शे चोरी का आरोप कलेक्टर रहे जोगी पर लगाते लेकिन यह आरोप सिद्ध नहीं हो सका, जोगी भी तब तक अफसर से सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के नेता बन गए थे। 
मप्र का बंटवारा, छग के संस्थापक सीएम जोगी
अखंड मप्र का बंटवारा होने के बाद नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ अलग राज्य घोषित कर दिया गया। मूल रूप से छग निवासी अजित जोगी ने विधान सभा चुनाव लड़ा और छग के पहले सीएम भी बने। कई विधानसभा चुनाव में या तो जोगी या भाजपा के डॉ रमन सिंह छग के सीएम बनते रहे।विपक्ष में रहते कांग्रेस भले ही छग में संघर्ष करती रही लेकिन अजित जोगी के रुतबे में कोई कमी नहीं आती थी । इसे लेकर कई बार कांग्रेस के जोगी विरोधी गुट के नेता दिल्ली में जोगी की रमन सिंह से अंडर हैंड डिलिंग की शिकायत करते रहते थे।छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की चुनावी रैली के दौरान कांग्रेस नेताओं पर झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले, जिसमें महेंद्र कर्मा, वीसी शुक्ल आदि की मौत हुई थी, को लेकर भी जोगी पर आरोप लगे थे। कांग्रेस द्वारा जोगी को बाहर का रास्ता दिखाने पर उन्होंने छत्तीसगढ़ कांग्रेस दल बनाया जरूर लेकिन कांग्रेस की सरकार और भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने।
बेटी के अवशेष ले गए छत्तीसगढ़ 
इंदौर ने अजित जोगी को नेता बनाया तो जोगी दंपत्ति के साथ इंदौर से त्रासदी भी जुड़ी है। जोगी की दो संतानें हैं बेटा अमित तो विधायक है। एक पुत्री अनुषा भी थी जिसने तब आत्महत्या कर ली थी जब जोगी इंदौर में ही रहते थे। उसे व्हाइट चर्च स्थित कब्रस्तान में दफनाया गया था। छग का सीएम बनने के बाद जोगी परिवार वहां शिफ्ट हो गया था। एक दिन स्पेशल विमान से परिवार इंदौर आया और कब्रस्तान में अनुषा वाली कब्र खोद कर बेटी के अवशेष छग ले जाने के साथ एक तरह से जोगी ने इंदौर से नाता तोड़ लिया था। 
नेता बने तो मो इकबाल खान को टिकट दिलाया
राज्यसभा सदस्य बनने के बाद जोगी अल्पसंख्यक समाज के राष्ट्रीय नेताओं में पहचाने जाने लगे थे। जोगी के नजदीकी रहे लोगों ने विधानसभा चुनाव के दौरान इंदौर से टिकट के लिए खूब भागदौड़ की। तब जोगी ने क्षेत्र क्रमांक तीन से मो इकबालखान घोड़ेवाले को टिकट दिलाया था लेकिन उस दौरान अयोध्या विवाद के चलते हिंदू, मुस्लिम में वोट बंट जाने से इकबाल खान बुरी तरह हार गए।

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