बड़े संकट से निपटने के लिए सूझ-बूझ भी बड़ी चाहिये -एड. आराधना भार्गव

Uncategorized Jun 16, 2020

देश कोरोना वायरस के चपेट में है। उद्यौग धन्धे, स्कूल काॅलेज बन्द पड़े है, महानगरों में रोजगार ना होने के कारण मजदूर अपने घरों में वापस आ गये है। हमारी सरकारें ना तो चिकित्सा और स्वास्थ्य कर्मियों को रिक्त पदों को भर रही है, ना ही योग्यता अनुसार व्यक्तियों के काम को तलाश रही है। मध्यप्रदेश में भाजपा और कांगे्रस सत्ता बचाने तथा सत्ता हासिल करने के लिये प्रयासरत है। सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री के शराब बिकवाने को लेकर विडियो वायरल होने को लेकर एफआईआर दर्ज हो गई है। मध्यप्रदेश के एक मंत्री पूर्व मुख्यमंत्री पर एफआईआर दर्ज कराने के लिए छिन्दवाड़ा के पुलिस अधिक्षक को फोन कर रहे है, किन्तु अत्यंत खेद है कि कोरोना संकट के शुरू होने के तीन माह बाद भी अभी श्रमिको के कौशल के आधार पर पहचान करने की कार्यवाही में तेजी नही आई, कारण बड़ा स्पष्ट है इसमें मेहनत लगती है और भ्रष्टाचार के अवसर कम होते है, इसलिये अफसरशाही को इसमें दिलचस्पी नही रहती। हमारे राजनेता भी इसमें कोई रूचि नही ले रहे है, उसका कारण है उनके छोटे कार्यकर्ता को उपकृत करने का साधन हाथ से निकल जायेगा। मनरेगा में प्रवासी मजदूरों को काम देने का हल्ला तो बहुत है, इस योजना में अरबो रूपया खर्च हो रहा है, पर उत्पादन और विकास के नाम पर कोई लाभ नही मिल रहा। क्या इतनी बड़ी राशि और इतनी श्रम शक्ति को उत्पादक कार्यो में नही लगाना चाहिए ? देश के हर राज्य में लाखों की संख्या में मजदूर और कामगार कोरोना के चलते अपने अपने गांव कस्बों में लोटे है। और वे किसी ना किसी कौशल में दक्ष है। आज कई महत्वपूर्ण परियोजनाऐं कुशल कामगारों कि कमी के कारण अटकी हुई है।  जरूरत है मनरेगा का स्वरूप बदलने, कुशल श्रमिकों का वर्गीकरण करने और एक परियोजना के लिए निकटतम स्थान पर उपलब्ध कुशल श्रमिकों की पहचान करने, अगर हमारी सरकारें अतिशीघ्र यह कम कर लें तो फिर रोजगार भी मिल जायेगा और विकाश परियोजना भी शुरू हो जायेगी। हमारे अफसर प्रायः संकट को खुद के लिये अवसर में बदलने में व्यस्त रहते है। जैसे की किन  होटलों में क्वांरटीन मरीजो को भेजा जाए, किन निजी अस्पतालों को कोरोना मरीजो को मुक्त रखा जाए, मास्क और पीपीटी किट किन खास कम्पनीयों से खरीदे जाऐं। शादी करने की अनुमति के लिए पटवारी के प्रमाण पत्र की क्या आवश्यकता है ?  और पटवारी प्रमाण पत्र बिना पैसे लिये देंगे नही, इसी उधेड़ बुन में हमारे अफसरों का समय और ऊर्जा खप जाती है। देश, राज्य और जनता के बारे में सोचने की फुर्सत हमारे देश के कर्णधारों के पास नही है। अब समय हाथ पर हाथ धरने का नही है, कोरोना संकट के बाद भारत किस स्वरूप का होगा इस पर हम सब चिंतन मनन करके आगे बढ़ने की योजनाएँ बनाए और यह तब होगा जब यह सोच समाजवादी विचारधारा की होगी। तब हम गर्व से बसुदैव कुटुम्ब की बात कर सकते है।

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