.... और इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फेल हो गए
खबर नेशन / Khabar Nation
“हम भारत को एक विकसित देश बनाने के लिए कतार में खड़े सबसे अंतिम व्यक्ति की सेवा के दीनदयाल जी के सपने को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
ये वो पंक्तियां हैं जो भारतीय जनता पार्टी में बूथ से लेकर मुख्यमंत्री , प्रधानमंत्री तक रटवाई जाती हैं । इसके बावजूद हर स्तर पर भाजपा इसे पूरा करने में असफल होती ही नजर आती है। भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय के इस मूलमंत्र की बानगी है मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रशासनिक क्षमता जो एक बार फिर बता रही हैं कि ब्यूरोक्रेसी किस तरह सीएम के सिर चढ़कर नाच रही है ।
मामला है खंडवा जिले का जहां के कलेक्टर अनय द्विवेदी ने अनोखा आदेश जारी किया है । उन्होंने मीडिया से वास्ता रखने विभिन्न विभागों के पांच अधिकारियों को तैनात किया है । यह तब है जब मध्यप्रदेश में समाचार जगत से मधुर संबंध बनाएं रखने के लिए बकायदा जनसंपर्क विभाग का एक बड़ा अमला तैनात हैं। हाल ही में 22 मई को मनमानी पूर्ण तरीके से खंडवा कलेक्टर अनय द्विवेदी ने बृजेन्द्र शर्मा जिला जनसंपर्क अधिकारी को भारमुक्त करते हुए आयुक्त जनसंपर्क संचालनालय भोपाल में उपस्थिति देने हेतु निर्देशित किया। इस आदेश की कॉपी थानेदार तक को भेजी गई। जिसका अधिकार ही कलेक्टर को नहीं था। मामले ने तूल पकड़ा ही था कि इस बीच संभागायुक्त इंदौर पवन शर्मा ने जनसंपर्क अधिकारी के निलंबन का आदेश जारी कर दिया।
जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों ने कलमबंद हड़ताल की चेतावनी दी। जिसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 24 घंटे के भीतर जनसंपर्क अधिकारी खंडवा को आगामी आदेश तक इंदौर संभागीय जनसंपर्क कार्यालय पदस्थ करने के आदेश जारी कर दिए । अधिकारियों का कहना है कि इंदौर पदस्थापना इसलिए की गई है ताकि कलेक्टर खंडवा जानबूझकर जनसंपर्क अधिकारी को प्रताड़ित न करें ।
गौरतलब है कि जनसंपर्क विभाग के मुखिया भी शिवराज सिंह चौहान हैं। यह विभाग वह है जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सर्वोच्च प्राथमिकता में आता है। सवाल यही है कि क्या खंडवा कलेक्टर और संभागायुक्त इंदौर का आदेश सही था ?
अगर आदेश गलत था तो कलेक्टर खंडवा और संभागायुक्त इंदौर के आदेश को निरस्त क्यों नहीं किया गया ?
अधिकारी जिस नुकसान से आशंकित है । उस भय को दूर करने की जबाबदारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की है। आखिर अधिकारी भयभीत क्यों हैं ?
मुख्यमंत्री के प्रत्यक्षतः दखल रखने वाले विभाग में क्या कोई कलेक्टर सीधे सीधे हस्तक्षेप कर सकता है ?
इन सवालों के जवाब तलाशें जाएं तो यह उस मुख्यमंत्री की प्रशासनिक दक्षता की कमजोरी को उजागर कर रहा है जिन्हें मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर काम करते हुए पन्द्रह साल हो गए हैं । जब मुख्यमंत्री अपने ही विभाग के मध्यम पंक्ति के अधिकारी के अधिकारों का संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं तो पंडित दीनदयाल के मूलमंत्र के अनुसार कतार में लगे अंतिम व्यक्ति की हालत का अंदाजा स्वाभाविक तौर पर लगाया जा सकता है।
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गौरव चतुर्वेदी /ख़बर नेशन /Khabar Nation
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