महिलाओं की राजनीति में उपस्थिति कम क्यों है ?
खबर नेशन / Khabar Nation
एड.आराधना भार्गव
हाल ही में सम्पन्न हुए नगरीय निकाय एवं पंचायतों के चुनाव में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया बल्कि दम खम के साथ चुनकर भी आईं। अगर भारत के संविधान में संशोधन कर पंचायतों एवं नगरीय निकाय में 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान नही होता तो क्या इतनी तादात में महिलाऐं चुनकर आती ? महिलाओं की राजनीति में उपस्थिति कम इसलिए है कि सरकार लोकसभा और विधान सभा में महिला आरक्षण बिल लाने को तैयार नही है। वल्र्ड इकोनाॅमिक फोरम 2022 की रिपोर्ट में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी के मामले में 146 देशों में जापान 116 वें स्थान पर है अगर इस संदर्भ में भारत की बात करें तो वह 48 वें पायदान पर खड़ा है। देश की आधी आबादी को उनका प्रतिनिधित्व करने का अवसर आखिर सरकार क्यों देने को तैयार नही है? जब सांसदों, विधायकों मंत्रियों के वेतन बढ़ाने होते हैं तो सभी राजनैतिक दल एकमत से विधेयक पारित कर देते है, पर जैसे ही महिला बिल संसद में पेश होता है, सर्वसम्मति से सारे दल उस विधेयक को गिराये जाने का पुरजोर विरोध करने लगते हैं।
समाज एवं परिवार ने महिला नेतृत्व को स्वीकारा है। पंचायत एवं नगरीय निकाय के चुनाव में बहु के चुनाव प्रचार के लिए सास कंधे से कंधा मिलाकर चलती दिखाई दी, बहु के चुनाव जीतने पर ससुर ने बहु की आरती उतारी, नगर तथा ग्राम ने महिला के मुखिया बनने पर ढ़ोल बाजे, फटाके और मिठाई से उसका स्वागत किया। चुनी हुई महिला प्रतिनिधि ने समाज से पूछा कि स्त्रीयों में सभी गुण एकसाथ नही हो सकते है क्या ? उनके काम काज को वे अच्छे तरीके से कर सकती है। महिला प्रतिनिधियों के काम काज में उनके पति दखल क्यों देते हैं उन्हें स्वतंत्रता पूर्वक काम क्यों नही करने देते ? महिला प्रतिनिधि घर के काम काज बखूबी निभाकर नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायतों में सभापति की कुर्सी पर जब बैठती है तब देखने लायक नजारा होता है। पितृसत्तात्मक समाज ने जब महिला पुरूष कर्मचारियों को काम करने का निर्देश देती हैं तथा उनकी कमियों पर जब प्रकाश डालती है तो पुरूष तिलमिला जाते है, अगर पुरूष को पुरूष ड़ांटे या कोई निर्देश दें तो पुरूष को बुरा नही लगता पर महिला प्रतिनिधि या अधिकारी जब किसी पुरूष को निर्देश देती है तो यह पुरूषों को अच्छा नही लगता। स्त्री के द्वारा कही जाने वाली बातों को अवमूल्यित करने का कोई ना कोई तरीका पुरूष निकाल ही लेता है। स्त्रीयों पर आज भी सुन्दर और कुरूप का लेबल लगाया जाता है, लेकिन उनके काम को इतना महत्व नही दिया जाता।
राजनीति से जुड़ी महिलाओं को अभद्र भाषा से लेकर अपमान जनक टिप्पणीयों का सामना करना पड़ता है। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता जी का अपमान हम विधान सभा में देख चुके है। एमनेस्टी इंटरनेशनल 2020 कि रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 2019 के आम चुनाव के दौरान 95 भारतीय महिला राजनेताओं के ट्वीट को देखने में पाया कि महिला राजनेताओं के बारे में 7 में से 1 ट्वीट अपमान जनक था रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि आॅनलाईन दुव्र्यवहार में महिलाओं को नीचा दिखाने, अपमानित करने, डराने और अतंतः चुप कराने का पूरा प्रयास किया जाता है इसके बावजूद भी इन समस्त चुनौतियों को स्वीकार करते हुए भारतीय महिला राजनीति में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है।
वर्तमान में चुनाव इतने मेंहगे होते जा रहे है कि अगर महिला लोकसभा और विधान सभा में स्वतंत्र रूप से खड़ी हो जाऐ तो उसका जीत कर आना सम्भव नही है, इसलिए यह विचार करना जरूरी है कि राजनीतिक जागरूकता, राजनीति में भागीदारी, राजनीतिक नेतृत्व प्राप्त करना तथा नेतृत्व प्राप्त कर निर्णयों को प्रभावित करना और दिशा देने का प्रशिक्षण महिलाओं के लिए आवश्यक है। साथ ही साथ देश के नागरिकों को भी यह प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि महिला नेतृत्व देश में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने के लिए महिला नेतृत्व अति आवश्यक है। देश की प्राकृतिक सम्पदा को बचाने की ट्रेनिंग समाज बचपन से ही महिलाओं को देता आया है, बल्कि ये कहूँ कि माँ के गर्भ से ही उसे यह ट्रेनिंग मिलती है तो अतिश्योक्ती नही होगी। महिलाऐं पति या पुत्र की लम्बी आयु के लिए पेड़ों की पूजा करती है रक्षा सूत्र बांधती है, नदियों की पूजा और पहाड़ों की पूजा भी करते हमने महिलाओं को ही देखा है। अगर जल, जंगल, जमीन को बचाना है तो सिर्फ और सिर्फ महिला नेतृत्व ही बचा सकता है।
संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में उल्लेख किया गया है उन सबका गहरा रिश्ता महिलाओं से है, चाहे 14 साल तक निशुल्क शिक्षा, शराब, कुपोषण, खेती की अगर हम बात करें तो समाज ने महिला को बचपन से ही पारंगत किया है। देश के राजनीतिक परिदृश्य में प्रारम्भ में महिलाओं की मौजूदगी भले हि कम रही हो पर यह सच है कि महिलाओं में राजनीतिक चेतना का विकास तेजी से हुआ है, अब महिलाऐं यह जानने का प्रयास करने लगी है कि जिन्हें चुनना है वे महिलाओं के हित के प्रति कितने चैकन्ने है, महिलाऐं पहले से अधिक मुखर हुई हैं। राजनैतिक जागरूकता के बाद राजनीति में भागीदारी महिलाओं का दूसरा चरण है आज विश्व की श्रम शक्ति में बड़ी संख्या में महिलाऐं मौजूद है। महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि अगर पर्याप्त सामाजिक और पारिवारिक समर्थन मिले तो महिलाऐं सार्वजनिक उत्तरदायित्व भी कुशलता से निभा सकती है।
नगरीय एवं पंचायत के चुनाव में पार्षद पति, सरपंच पति, जैसे शब्दों को सुना यह शब्द समाज द्वारा गढ़े गये हैं। भारत के संविधान में ऐसे शब्दों का कोई स्थान नही है। वर्तमान में हमने देखा जिस पद पर भी महिला उम्मीद्वार खड़ी हुई है, उनके साथ उनके पति का नाम तथा फोटो अवश्य देखा गया, स्वागत योग्य है पर जहाँ पुरूष उम्मीद्वार खड़े हुए उन्होंने अपने साथ अपनी पत्नि का फोटो और चित्र क्यों नही लगाया ? पुरूष यह सोच कैसे लेता है कि महिला की अपनी कोई पहचान नही है और महिला अपने बल पर चुनाव नही जीत सकती, यह भ्रम आखिर पुरूष का कब टूटेगा ? जब महिलाऐं घर का संचालन कर रही हैं पुरूष को भी सम्भाल रही है, तो महिला नगरीय निकाय एवं पंचायत को भी लोकतांत्रिक तरीके से सम्भाल सकती है। 99 प्रतिशत पुरूष घर को चलाने के लिए पैसे तो दे देते है, किन्तु उनकी घर संचालन में ना तो भागीदारी होती है और ना ही रूचि। महिलाओं का तीसरी और चैथी चुनौती राजनीतिक नेतृत्व प्राप्त करना, नेतृत्व प्राप्त करके निर्णय को प्रभावित करना तथा दिशा देना है। वर्तमान में समान अनुपात में महिला प्रतिनिधित्व दहलीज पर पहले से ही नही पहुँच पायी है, लेकिन पहले की तुलना में उनकी उपस्थिति का दायरा जरूर बढ़ा है, महिलाओं की राजनीति विकास यात्रा अभी बहुत लम्बी है, सभी चुनौतियों के बीच स्यंम को सिद्ध करना कठिन जरूर पर असंभव नही है। आईये हम सब मिलकर नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनाव में चुनी हुई महिला नेत्रियों का उत्साहवर्धन करें तथा उन्हें यह विश्वास दिलायें कि उनके अन्दर नेतृत्व की क्षमता है और वे पंचायत तथा नगरीय निकाय में बैठकर जनहित के फैसले करने में पूर्णतः सक्षम है। जब हम महिलाओं का उत्साहवर्धन करेंगे तब ही महिलाओं की राजनीति में उपस्थिति बढ़ेगी।
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