स्वामी विवेकानन्द की नज़़र में धर्म

एक विचार Apr 10, 2020

 -एड. आराधना भार्गव
भारत जोड़ों, संविधान बचाओं, समाजवादी विचार यात्रा जब कन्याकुमारी पहुँची तब यात्रियों के साथ पानी के जहाज में बैठकर विवेकानन्द षिला पर पहुँचे, उस वक्त मेरे मन में जो सवाल पैदा हुए आज आपके साथ सांझा करना चाहती हूँ। कोराना वायरस के कारण पूरा देष लाॅक डाऊन है। और मंदिर मस्जिद के अन्दर भगवान भी लाॅक डाऊन हो गये है।
विवेकानन्द जी ने बहुत सरल और सुन्दर शब्दों में धर्म को परिभाषित किया, उन्होंने कहा कि सभी की ‘‘खुशी और भले के लिये अपनी जिन्दगी लगा देना ही धर्म है।’’ और मुझे आज देश के डाॅक्टर, पुलिस विभाग के अधिकारी और कर्मचारी, सरकारी कर्मचारी, सफाई कर्मचारी सही मायने में धार्मिक दिखाई दे रहे है। विवेकानन्द का मानना था कि सभी सच्चे धर्म बराबर है, और सबके आदर्श एक समान है। अगर एक धर्म सत्य है तो अन्य धर्म भी सत्य है। वे कहते है कि सभी धर्मो का एक ही आदर्श है, ‘‘स्वतंत्रता की प्राप्ति और दुःखों से मुक्ति’’। अगर आज विवेकानन्द जी हमारे बीच होते तो शाहीन बाद में यह कहते दिखाई देते ‘‘हमें नए ईश्वर नए धर्म और नये वेदों की जरूरत है।’’ विवेकानन्द ने सभी धर्मो के प्रति आदर और गरिमा का संदेश दिया था। उन्होंने मोहम्मद को समानता का संदेश वाहक और भाईचारे का पैगम्बर कहा। वे कहते है कि यदि कोई धर्म बराबरी को सराहनीय तरीके से अपना पाया है तो वह केवल स्लाम है। मद्रास के अपने अनुयायियों को 19 नवम्बर 1894 को लिखे पत्र में वे कहते है कि हिन्दूओं ने मुसलमानों से भौतिक सभ्यता के बहुत सारे तत्व सीखे है। जैसे सिलाई किये हुए कपड़े पहनना और खान पान की स्वच्छता। उन्होंने कहा कि यदि भारत को प्रगति करना है तो सभी धर्मो के बीच सिर्फ सहकारिता हि नही बल्कि उसका संगम जरूरी है। वे कहते है कि वेदांत के सिद्धांत कितने हि अच्छे और विलक्षणकारी क्यों ना हो, मैं इस नतीजे पर पहुँच चुका हूँ कि व्यवाहारिक स्लाम की सहायता के बिना मानव जाती के विशाल जन समुदाय के लिये वे पूर्णतः मूल्यहीन है। वे कहते थे हमारी मातृभूमि के लिये इन दोनों महान व्यवस्थाओं, हिन्दू धर्म और स्लाम-वेदांती बुद्धि और स्लामिक शरीर का संयोग ही एक मात्र आशा है। वे कहते थे ‘‘काशी तथा वृदांवन के कपाट दिन भर खुलने और बन्द होने में लाखों रूपये खर्च कर दिये जाते है’’। कही ठाकुरजी वस्त्र बदल रहे है तो कही भोजन अथवा कुछ और कर रहे है, किन्तु दूसरी और जीवित ठाकुर भोजन तथा विद्या के बिना मर रहे है।
विवेकानन्द जी ने 1890 से 1893 के बीच भारत देश का भ्रमण घुमक्कड साधु की तरह से किया और भारत देश को बहुत करीब से देखा। उन्होने देखा कि देश में लाखों लोग किस भयानक गरीबी में जी रहे हैं। और उन्होंने पाया कि उसका कारण धार्मिक पिछड़ापन एवं ब्राम्हाणों द्वारा किया जाने वाला शोषण है। उन्होंने आपने मित्रों और अनुयायियों को पत्र में लिखकर कहा कि जिस देश में करोड़ों लोग महुआ खा कर दिन गुजारते है। ‘‘और 10-20 लाख साधू, 10-12 करोड़ ब्राम्हाण इन गरीबों का खून चूस्ते है और उनकी उन्नति के लिये जरा भी चेष्टा नही करते।’’ विवेकानन्द जी कहते है क्या यह देश है या नरक क्या यह धर्म है या पिशाच का नृत्य ? वे कहते है ‘‘इस देश में धर्मान्तरण ईसाई और मुसलमानों के अत्याचारों की वजह से नही बल्कि उच्च जातियों के द्वारा किये गये उत्पीड़न की वजह से हुआ है।’’ वे कहते है कि कोई भंगी पंडित के पास आता है तो वे छूत की बीमारी की तरह स्पर्श करने से भगाते है परन्तु जब उसी भंगी के सिर पर एक कटोरी पानी रखकर कुछ गुनगुनाकर एक कोर्ट पहना देते है, भलाई वह कोर्ट पुराना हो इससे भंगी खुश हो जाता है, तो फिर कहते है कि ईसाई ने धर्मान्तरण कर दिया। वे कहते है मैं अतीत के सभी धर्मो को ग्रहण करके मैं सबके साथ ही आराधना करूंगा, मैं मुसलमान के साथ मस्जिद में भी जाऊंगा और ईसाई के साथ गिरजे में जाकर क्रुोसित  ईसा के सामने घुटने टेकुगा, बौद्ध मंदिर में प्रवेश कर बुद्ध और संघ की शरण लूंगा। वे विभिन्न समुदायों के द्वारा एक दूसरे पर अपने धार्मिक मूल्यों को थोपने के सख्त खिलाफ थे। उनके एक अनुयायि स्वामी अखण्डानन्द जब बंगाल में अनाथालय बना रहे थे तो उन्होंने एक पत्र लिखा और कहा कि सभी धर्मो के बच्चें को अनाथालय में शामिल करना, हिन्दू, मुसलमान और ईसाई में भेद भाव मत करना। और आगे सलाह दी उनके धर्मो को कभी दूषित मत करना, वे आगे कहते है हमारा यह संसार ‘‘इंद्रियों, बुद्धि और तर्क का संसार है।’’
विवेकानन्दजी ने अपने आलम बाजार मठ के साथियों को 27 अप्रैल 1896 को लिखे पत्र में लिखा कि पिछले देव अब थोड़े पुराने हो चले है। अब हमको नए भगवान, नए धर्म, नए वेदों की जरूरत है। क्योकि हम एक नया भारत बनाना चहाते है।
आईये हम सब मिलकर विवेकानन्द के अनुकूल नया भारत बनाये जिसमें माँ दुर्गा की आॅन लाईन आरती ना करके घर की साक्षात दुर्गा माँ, बहन, पत्नि, बेटी दोस्त के रूप में देख कर उनकी आरती उतारें तो आप देखेगें कि नारी के आठ हाथ आपको दिखाई देंगे। एक हाथ में झाडू, दूसरे हाथ में बेलन, तीसरे हाथ में माँ-बाप की सेवा, चैथे हाथ में घर के पशु शाला की सफाई, पाँचवे हाथ में पशुओं के लिये चारा, छटवें हाथ में बच्चों की देख रेख, सातवें हाथ में पति, पिता, बेटे की सेवा, आठवे हाथ में परिवार की रक्षा। इस वक्त यह सभी काम करते हुए घर की महिलाऐं आपको दिखाई देगी। जब तक समाज नारी को समदृष्टि से नही देखेगा तब तक देश की बेटियाँ सुरक्षित नही होंगी। हम सबको मिलकर बेटी की सुरक्षा, स्वाभिमान और सम्मान को बचाना होगा तभी सही मायने में विवेकानन्दजी का नया भारत बनेगा। 

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