यदि आप मन से स्वतंत्र है तभी आप वास्तव में स्वतंत्र है- बाबा साहेब अम्बेडकर

एक विचार Apr 13, 2020

बाबा साहेब अम्बेडकरजी की 129वीं जयंती पर किसान संघर्ष समिति द्वारा सादर श्रृद्धान्जली 
बाबा साहेब अम्बेडकर जी का जन्म 14 अप्रैल 1891 में मध्यप्रदेश के महू में हुआ था। बचपन मे ही माता का देहांत हो जाने के कारण जीवन और भी कष्टप्रद हो गया था। चुंकि वे महार जाती में पैदा हुए थे इस कारण उन्हें स्कूल में कक्षा से बाहर बैठाला जाता था। एक बार शिक्षक ने एक सवाल के उत्तर लिखने के लिये कक्षा के अन्दर बुलाया तो कक्षा के विद्याथियों ने शिक्षक से कहा मास्टर जी आपको मालूम नही ये महार जाती का लड़का है। ये भंगी है इसके कक्षा के अन्दर आने से हम सब अपवित्र हो गए, हमारा भोजन भी अपवित्र हो गया, उन्हे कुएँ से पानी भी पीने का अधिकार नही था। छुआछूत, भेदभाव की दर्द की पीड़ा उनके दिमाग के अन्दर कोंद रही थी। वे विद्ववान एवं विलक्ष्ण प्रतिभा के व्यक्ति थे। समाजवादी विचार यात्रा के दौरान सांगली में हमने उनके उस स्कूल को देखा जहाँ पर उन्होंने कक्षा चैथी तक अध्ययन किया था उस कक्षा को भी देखा जहाँ पर वे पढ़ते थे। स्कूल के प्रचार्य ने हमें मूल रजिस्टर भी दिखाया जिस पर बाबा साहेब अम्बेडकरजी का नाम भीमराव अम्बेडकर के नाम पर दर्ज था। मैट्रिक की परीक्षा उन्होंने मुम्बई से की थी और अमेरिका में पढ़ाई करने जब वे पहुँचे तो बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से उन्हें मासिक स्कालरशिप दी जिसके कारण उनकी पढ़ाई सम्भव हो सकी। यह बात मैं इसलिये लिख रही हूँ ताकि लोगों तक यह बात पहुँचे कि प्रतिभा किसी चीज की मोहताज नही होती। उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर भारत रत्न की उपाधि प्राप्त की।
बाबा साहेब अम्बेडकर कानून के ज्ञाता, राजनैतिक, समाजशास्त्री तथा समाज सुधारक थे। उन्हें नो भाषाओं का ज्ञान हिन्दी, पाली, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, मराठी, पर्शियन, जर्मन और गुजराती भाषाओं का ज्ञान था। वे 64 विषयों के ज्ञाता थे उन्होंने 21 साल तक विश्व के सभी धर्मो का तुलनात्मक रूप से पढ़ाई की थी। उनकी लाईब्रेरी में पचास हजार पुस्तकें थी आज तक किसी के निजी लाईब्रेरी में इतनी अधिक पुस्तकें नही थी। वर्तमान में भारत में बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा लिखी हुई पुस्तकों की ही सबसे अधिक बिक्री हुई और गिनीज बुक में यह दर्ज किया गया। उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक ह्यह्यजाती का उच्छेद है।
15 वर्ष की उम्र में 9 वर्ष की रमा बाई के साथ उनका विवाह सम्पन्न हुआ शादी के पश्चात् उनकी 5 संताने हुई जिसमें से ईलाज के अभाव में 4 संतानों की मौत हो गई और ईलाज के अभाव में ही सन् 1935 में रमा बाई की भी मृत्य हो गई। बाबा साहेब अम्बेडकर लगातार पढ़ने लिखने का काम करते उनके स्वास्थ्य की तरफ किसी और का ध्यान ना जाने के कारण स्वास्थ्य बिगडने लगा वे मधुमय तथा उच्च रक्तचाप की बीमारी की चपेट में आ गये। प्रकृतिक चिकित्सा करवाने पर भी लाभ नही हुआ। 1947 में भारत के संविधान को तैयारी करने वाली कमेटी में उन्हें रखे जाने का प्रस्ताव दिया तो उन्होंने कहा कि मेरा स्वास्थ्य ठीक नही रहता मैं यह काम नही कर पाऊँगा तब  उनके कुछ मित्रों ने बम्बई अस्पाताल में ईलाज करवाने की सलाह दी। वहाँ पर उनकी मुलाकात डॉ. शारदा कबीर से हुई बाबा साहेब अम्बेडकर ने उनके समक्ष शादी का प्रस्ताव दिया उम्र में वे बाबा साहेब अम्बेडकर से लगभग 22 वर्ष छोटी थी पर उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार किया तथा दिल्ली के तत्कालीन कलेक्टर रधांवा द्वारा विवाह सम्पन्न कराकर शादी का रजिस्टेशन किया, 15 लोगों की उपस्थिति में सादगी के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। शारदा कबीर जाती से ब्राम्हण थी, पुना के उच्च ब्राम्हण परिवार में उनका जन्म हुआ था उसके पश्चात भी वे बाबा साहेब अम्बेडकर के साथ ब्राम्हण धर्म को भूलकर उनके सभी कामों में हाथ बटाने लगी उनके स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखती तथा बाबा साहेब जहाँ भी जाते वे साथ मे जाती। नेपाल, वर्मा, भूटान के धार्मिक सम्मेलनों में भी वे साथ गई। 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर के दीक्षा भूमि में उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। बाबा साहेब ने जब डॉ. शारदा कबीर से शादी की तो अम्बेडकरवादी  तथा ब्राम्हणों ने उनके दलित राजनीति और विचारधारा पर सवाल उठाये कई लोगो ने तो इसे ब्राम्हण की साजिश कहा, कुछ ने खिल्ली उडाई। विवाह के बाद डॉ. शारदा कबीर का नाम डॉ. सविता अम्बेडकर कहा जाने लगा। एक बार बाबा साहेब ने बड़े भावुक अंदाज में पत्नी से मदद् मिलने का उल्लेख किया और कहा सविता अम्बेडर की सेवा वा देखरेख के कारण उनकी उम्र लगभव 10 वर्ष बढ़ गई है। उनकी मौत के बाद उनके अनुयायियों ने डॉ. सविता अम्बेडकर को भगवान बुद्ध और उनका धम्म से हटा दिया। बाब साहेब के निधन के बाद कुछ अम्बेडकरवादियों ने उनकी हत्या करने का आरोप भी सविता जी पर लगाया। उन्हें ब्राम्हण बताकर अम्बेडकर आन्दोलन से अलग कर दिया। तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एक कमेटी बैठाई उस जाँच कमेटी में सविता जी को अरोप से मुक्त किया। बाबा साहेब अम्बेडकर अंतिम समय तक अपने विचार लिखते रहे और लिखते लिखते ही उनकी मृत्यु हुई।
संविधान विशेषज्ञ विधि ज्ञाता जब जवाहर लाल नेहरू के मंत्री मण्डल में कानून मंत्री थे तब महिलाओं के हित में हिन्दू कोड बिल प्रस्तुत किया, ताकि महिलायें आर्थिक और लेंगिक रूप से मजबूत बने, किन्तु वह बिल पास नही होने दिया गया, इस पर उन्होने विधि मंत्री के पद से स्तीफा दिया। दलित महिलायें घुटने के उपर साड़ी पहने यह प्रथा के विरोध में उन्होंने आवाज उठाई उसके पश्चात् दलित महिलायें घुटने के नीचे साड़ी पहनने लगी। उन्होंने भारतीय समाज में घर और बाहर दोनों जगह स्त्रीयों की बराबरी के लिये संघर्ष किया। संविधान के नीति निर्देशक तत्व में नशीली वस्तु रोकने का उल्लेख भी करवाया। वे समाज की प्रगति को प्रगतिशील तब मानते थे जब महिलाओं की प्रगति हो, महिलाओं की प्रगति को देखकर हि वे समाज की प्रगति का अन्दाज लगाते थे। वे संविधान को वकीलों का दस्तावेज नही मानते थे किसानों पर अंग्रेज सरकार द्वारा टेक्स लगाने पर भी अपने विचार रखे और कहा खेत के रकबे पर नही जो फसल पैदा होती है उस पर टेक्स लिया जाये।
प्रजातंत्र को मजबूत करने के लिये राज के तीन अंगों न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को स्वतंत्र और पृथक रखने की बात कही। आज बाबा साहेब अम्बेडकर सरकार के लिये वोट बैंक की वस्तु बनकर रह गये है। बाबा साहेब अम्बेडकर को सच्ची श्रृद्धान्जली तभी दी जा सकती है जब न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका स्वतंत्र और पृथक पृथक हो। आज हम देख रहे है न्यायपालिका स्वतंत्र नही है, कार्यपालिका धारा 144 लगाकर काम कर रही है, विधायिका का काम किसी से छुपा हुआ नही है। मध्यप्रदेश का सत्ता परिवर्तन इस बात का जीता जागता उदाहरण है।
सरकार की स्थापना जन कल्याण के लिये की गई है, और इस लॉक डाऊन के समय हमें सरकार की तस्वीर जन कल्याण के रूप में काम करती दिखाई दे रही है। सरकारी अस्पाताल खुले है डॉक्टर  अपनी जान की परवाह किये बगैर भारतवासियों का ईलाज कर रहे है। कार्यपालिका सरकार के आदेशों का पालन करती दिखाई दे रही है। हमारे घरेलु बाजार आज हमारे घर तक हमारे आवश्यकता की वस्तुऐं लाकर उपलब्ध कर रहे है, गली मोहल्लों में फेरी लगाकर सामान बेचने वाले लोग आज हमारी सेवा मे लगे हुए है। भारतीय रेल्वे मालगाड़ी चलाकर आवश्यक वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर सामान पहुँचाने का काम कर रहे है। बाबा साहेब अम्बेडकर को सच्ची श्रृद्धान्जली यही होगी की अब हम प्राईवेट अस्पाताल, प्राईवेट स्कूल, प्राईवेट परिवहन, प्राईवेट बाजार, का बहिस्कार करें क्योंकि हमारे आपातकाल में इनकी कोई भूमिका दिखाई नही दे रही है। ह्यह्ययदि आप मन से स्वतंत्र है तभी आप वास्तव में स्वतंत्र हैह्णह्ण महान प्रयासों को छोड़कर इस दुनिया में कुछ भी बहुमूल्य नही है यदि हम आधुनिक विकसित भारत चाहते है तो सभी धर्मो को एक होना पड़ेगा। तभी भारत की छवि पूरी दुनिया के साथ धर्म निरपेक्ष राष्ट्र की होगी। लॉक डाऊन के समय आप लोग अम्बेडकर जी की पुस्तकों को पढ़कर उनका मनन करके उनके विचार को इस धरती पर आगे बढ़ाने का काम करेंगे इसी आशा और विश्वास के साथ आपको बाबा साहेब अम्बेडकर जी की 129वीं जयंती पर शुभकामनाऐं देती हूँ।

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