धर्म का सियासी इस्तेमाल कर कांग्रेस ने अपनी धर्म निरपेक्षता बेनकाब की
भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद नंदकुमार सिंह चौहान ने कहा कि कर्नाटक में सियासी खुदगर्जी के लिए कांग्रेस ने धर्म को औजार बनाकर अपनी छदम धर्मनिरपेक्षता को बेनकाब कर दिया हैं। भारतीय संविधान ने राजनीति में धर्म के उपयोग की वर्जना की हैं। धार्मिक आधार पर जहा भी आरक्षण दिया गया और विधानसभाओं ने विधेयक पारित किया वह न्यायालय की कसौटी पर कभी और कही भी खरा नहीं उतरा सर्वोच्च न्यायालय ने उसे ठुकरा दिया। ऐसे में कांग्रेस यदि कर्नाटक में आगामी मई में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिंगायत और वीर शैव सम्प्रदायों को स्वतंत्र धर्म मानने की अवधारणा का प्रतिपादन करती हैं, तो यह संविधान की अवहेलना और लोकतंत्र का मखौल उड़ाना होगा। इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा।
चौहान ने कहा कि कर्नाटक में इन समुदायों की आबादी कमोवेश 19 प्रतिशत हैं। लिंगायत और वीर शैव का पृथकता की विशिष्टता प्रदान करके कांग्रेस यदि इसे अपना वोटबैंक बनाना चाहती हैं तो जनता में यही संदेश जायेगा कि कांग्रेस अपना समर्थन जुटाने के लिए सामाजिक ताने बाने को आघात पहुंचा रही हैं।
उन्होंने कहा कि यह बात किसी से छिपी नहीं हैं कि धार्मिक आधार पर किसी वर्ग को विशेष पहचान देकर उसे संवैधानिक मान्यता देने के लिये न्यायालय की सहमति, न्याय की कसौटी पर खरा उतरना आवश्यक हैं जिसकी इस मामले में कतई उम्मीद नहीं की जा सकती। अलबत्ता कांग्रेस का यह दांव उल्टा पड़ सकता हैं। बहुसंख्यक समाज इसे सामाजिक समरसता में बाधक मानकर इसका विरोध भी कर सकता हैं। स्वामी नारायण सम्प्रदाय और रामकृष्ण मिशन को पृथक पहचान देने की कोशिश को सर्वोच्च न्यायालय पहले ही ठुकरा कर एक स्वस्थ संदेश दे चुका हैं। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में कांग्रेस का यह सियासी पैतरा कांग्रेस की सलीब में अंतिम कील का काम करेगा। (खबरनेशन / Khabarnation)