वक्त के पहिए पर सियासी दलों की चाल ! कौन करेगा मंगल, किसका अमंगल ?
नाज़नीन नकवी/खबर नेशन/Khabar Nation
( लेखक मध्यप्रदेश के रीजनल चैनल IND24 में एसोसिएट एडिटर हैं )
सियासत की धुरी लगातार तेजी से घूमती है। इस धुरी पर टिके रहने के लिए बैलेंस बनाए रखना जरूरी है। लेकिन शायद कांग्रेस इसी बैलेंस, तालमेल और समन्वय से दूर हो गई है। यही वजह रही कि धीरे धीरे सत्ता से पतन की ओर जाती कांग्रेस के लिए अस्तित्व बचाए रखने की लड़ाई बड़ी हो गई है।
घर में चार बर्तन खड़कने की कहावत तो सबने सुनी होगी..पर आवाज पर घर के बाहर शोर मचाने लगे..तब जो होता है वही कांग्रेस के हालात है। पंजाब हो या छत्तीसगढ़ या फिर राजस्थान...आपसी तूफान कांग्रेस की चूले हिला रहा है। कांग्रेस हाईकमान को चाहिए कि वक्त रहते इसे रोक ले..या फिर नजर का उतारा करा ले। कांग्रेस में इन दिनों बगावत, अदावत का खेल जारी है। पंजाब में पंजे की पकड़ ढीली तो छत्तीसगढ़ में छत्तीसी का आंकड़ा..सियासी चौसर पर कांग्रेस की चाल को कमजोर कर रहा है। पंजाब में कैप्टन और नवजोत सिंह के बीच जारी घमासान हर दिन नया ट्विस्ट पैदा कर रहा है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की राजनीति पटरी से उतरती दिख रही। हालांकि उसे सही सिग्नल मिले इसके लिए हाईकमान की कोशिश जारी है। लेकिन कांग्रेस नेताओं के बीच पद की इस जद्दोजहद में कहीं कोई अमंगल न हो जाए। इसका डर कांग्रेस को लगा हुआ है। वही दूसरी तऱफ बीजेपी को इस अमंगल में अपना सियासी मंगल दिख रहा है। उसकी माने तो घर संभाल पाने में अब कांग्रेस कमजोर है।
क्या ‘बूढ़ी’ हो गई कांग्रेस.. ?
तंज हो, तकरार हो या फिर सियासी वार। कांग्रेस में जैसे अब उबाल ही नहीं। क्या कांग्रेस बूढ़ी हो गई है..? ये सवाल इसलिए कि कुछ नया, तीखा, जुझारुपन कांग्रेस में नजर नहीं आता। जमीन पर सुस्त और सदन में अमर्यादित होती कांग्रेस में तर्जुबा जैसे इस्मेताल ही नहीं हो रहा है। सरकार से सवाल पूछने की बजाय कांग्रेस गृह क्लेश में उलझी है। लेकिन कहीं ये क्लेश घर की शांति को ही भंग न कर दे। क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो कहीं इसकी कीमत हाथ से सत्ता छूटना न हो।
वैचारिक मतभेद और अवसरवाद से घिरा ‘हाथ’
सत्ता से इतर भी कांग्रेस को राजनीतिक लिहाज से चिंतन-मनन की आवश्यकता है। आखिर क्यों लगातार वो देश के नक्शे पर सिमटती जा रही है? गौर हो कि शायद 2023 और 2024 के चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने इस पर आंशिक ही सही लेकिन गौर किया। बीते दिनों हुई विपक्षी दलों की बैठक में इसकी झलक तो दिखी लेकिन आधी अधूरी...
साम दाम दंड भेद कब तक ?
साम दाम दंड भेद राजनीति के लिए नया नहीं...लेकिन चिंता का विषय यह कि एक स्वस्थ राजनीति का न होना कितना सही है? राजनीतिक दलों पर लगातार लगते खरीद-फरोख्त के आरोपों के बाद ये सवाल मौजूं है। सत्ताधारी भाजपा के साथ-साथ कुछ विपक्ष के नेता भी यह तंज कसने लगे हैं कि जब कांग्रेस खुद अपना घर नहीं ठीक कर पा रही है तो वह राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक विपक्षी एकता कैसे बनाएगी?
कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रह चुकी कांग्रेस सियासी पटरी से उतर सी गई है। बड़े नेताओं की आपसी लड़ाई और भितरघात न सिर्फ पार्टी को कमजोर कर रही है, बल्कि केंद्र की राजनीति में उसके शीर्ष नेतृत्व की अहमियत और हनक को भी कम कर रही है...वही हिंदुस्तान की पटल पर तेजी से भगवा लहराती भाजपा को भी विपक्ष को नेस्तनाबूद वाली सोच से बाहर आना चाहिए, ताकि स्वस्थ लोकतंत्र की नींव पर नव भारत का निर्माण हो सके