जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे...

शख्सियत Apr 20, 2018

- राजीव शर्मा 

डाली पर खिला फूल और शाख पर टिका फल किसे अच्‍छा नहीं लगता? मगर इन दिनों ऐसे लोगों की तादाद काफी कम होती जा रही है जो बाग में फूलों के खिलने और फलों के फलने की फिक्र करे। ऐसे में यदि कोई व्‍यक्ति अपने विवेक से गुलशन की फिक्र करे तो सुखद कल की आश्‍वस्ति होती है। ऐसा ही भरोसा जगा रहे हैं राजधानी परियोजना भोपाल के उप प्रशासक राजीव शर्मा। आईएएस राजीव शर्मा एक ओर सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक अधिकारी कर्मचारी संस्था (सपाक्स) के झंडे तले पदोन्‍नति में आरक्षण के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं तो दूसरी तरफ भोपाल के उद्यानों के संरक्षण तथा विकास की चिंता कर रहे हैं। इस फिक्र में वे तड़के जाग कर पार्क में जाते हैं तथा वहां मार्निंग वॉक करने आए लोगों से मिल कर उद्यानों का चेहरा चमकाने की जुगत कर रहे हैं।

हर शहर के पार्कों की तरह भोपाल के उद्यानों की भी सूरत संवरनी चाहिए क्‍योंकि इन पार्कों में सुबह-सुबह सैर करने वालों का जमावड़ा होता है। ये पार्क गुलजार रहेंगे तो न केवल शहर की आबोहवा बल्कि यहां के बाशिंदें भी सेहतमंद रहेंगे। यही कारण है कि पिछले कुछ बरसों से हर कॉलोनी में पार्क के विकास के लिए काफी मोटी राशि खर्च की गई। इस राशि से पौधे जरूर लगाए गए लेकिन अधिकांश व्‍यय पेव टाइल्‍स लगाने तथा बच्‍चों के मनोरंजन के लिए झूले लगाने में हुआ। पार्षदों की रूचि तो इन पार्कों में अधिक ऊंचा गेट लगवाने में ही ज्‍यादा रही ताकि प्रचार से उनकी राजनीति चमक सके।

इस तामझाम में असल मुद्दे पीछे छूट गए। जैसे कि पार्क में फलदार, फूल वाले और खूबसूरती बढ़ाने वाले पौधे लगाए गए मगर इन पौधों की सिंचाई के लिए पानी बरसों से ‘आउट सोर्स’ किया जा रहा है। किसी ने ध्‍यान नहीं दिया कि 20 से 40 हेक्‍टेयर क्षेत्र में फैले पार्क में अपना स्‍वयं का जलस्रोत भी हो सकता है। यहां छोटे तालाब, कुएं, जलकुंड जैसी संरचनाएं बना कर वर्षा जल को संचित किया जा सकता था। इससे न केवल पौधों को सींचने में होने वाला खर्च की घटता बल्कि पार्क की जमीन भी भूजल से सम्‍पन्‍न होती।

देर आए, दुरूस्‍त आए कि तर्ज पर अब राजीव शर्मा ने इस तथ्‍य को समझा है और पार्क की सूरत के साथ उसके संसाधन सम्‍पन्‍न होने की भी चिंता की है। वे सुबह अपनी टीम के साथ राजधानी परियोजना द्वारा देखरेख किए जा रहे हर पार्क में जा रहे हैं। अपनी पैनी दृष्टि से वहां की कमियों और खूबियों को जांच परख रहे हैं। उन्‍होंने पार्कों में बेतरतीब निर्माण पर तत्‍काल प्रभाव से सख्‍ती से प्रतिबंध लगा दिया है। वे सैर पर आने वाले लोगों से फीडबैक ले रहे हैं और फिर पार्क के लिए रोडमैप बना रहे हैं। इस संपर्क तथा सोशल मीडिया पर जानकारी देने का असर यह हुआ कि लोग खुल कर सुझाव दे रहे हैं। इस कवायद के परिणाम स्‍वरूप अब इन पार्कों में न केवल बुनियादी सुविधाएं होगी बल्कि जल्‍द ही हर पार्क की अपनी जल संरचना होगी। हर पार्क में स्‍वच्‍छता बनाए रखने के प्रयासों के तहत शौचालय भी होगा तथा पीने के पानी का प्रबंध भी। तब शायद करोड़ रूपए खर्च कर बना गए स्‍वर्ण जयंती पार्क में हमें इंसान और सुअर एक साथ तफरीह करते न दिखें। तब शायद टूटी बागड़ में से घुस आए मवेशी फूलों की बगिया नष्‍ट न करें। तब शायद गिट्टी बिछाने फिर पेव ब्‍लॉक लगाने तथा ब्‍लॉक के उखड़ जाने के बाद फिर सीमेंट कांक्रीटीकरण कर रुपए बनाने का खेल न चले। तब शायद बुर्जुगों को सैर के समय प्‍यासा न रहना पड़े या प्राकृतिक वेग न रोकना पड़ें। तब पार्क हमारे फेफड़ों को स्‍वच्‍छ वायु दे सकेंगे।

ऐसा होने तक जिम्‍मेदार अधिकारियों को राजीव शर्मा जैसा चैतन्‍य बने रहना होगा जैसा कि निदा फ़ाज़ली अपने एक शेर में कहते हैं -

गुज़रो जो बाग से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे।

 


(खबरनेशन / Khabarnation)

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