सत्ता का वनवास

शख्सियत Apr 06, 2020

 

 

खबर नेशन / Khabar Nation

सत्ता हमेशा खुशी से नहीं देती। सत्ता से लड़ना पड़ता है, मांगना पड़ता है या गिड़गिड़ाना पड़ता है। ज्यादातर मांगने और गिड़गिड़ाने से ही मिलता है। कुछ एक लड़कर लेने की कोशिश करते हैं, लेकिन अंततः उन्हें भी गिड़गिड़ाने पर ही मजबूर होना पड़ता है। ऐसे हालात में शुरू होता है सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठे व्यक्ति का वनवास जो मांगने, लड़ने और गिड़गिड़ाने का दान करते हुए एकाकी हो जाता है। भीड़ रहती है लेकिन अपने समझ नहीं पाते हैं और पराएं अपने लोभ लालच के चक्कर में उसे अपना नहीं मान पाते हैं। सत्ता का वनवास कुछ ऐसे ही लोगों का आत्म संस्मरण है जो सत्ता से हटते ही समाप्त हो जाता है।क्योंकि अब वो उस भीड़ में शामिल हैं जिसे अपने हक़ के लिए लड़ना है मांगना है और गिड़गिड़ाना है।

एक नेता एक अफसर जनता के हक के लिए लड़ रहा है लेकिन असल में वह स्वयं के लिए लड़ रहा है। एक बेटा,पत्नी, मां -पिता,भाई- बहन,नातेदार- रिश्तेदार अपने परिवार के हक़ के लिए लड़ रहे हैं।असल में वे खुद के लिए लड़ रहे हैं। मंदिर में बैठा पुजारी भक्तों के लिए लड़ रहा है लेकिन असल भक्त तो वो खुद है,जो खुद के लिए लड़ रहा है। ऐसे में सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठा व्यक्ति, नहीं उसे भगवान कहना ज्यादा उचित होगा । अपनी ही बनाई दुनिया के लोगों को देखकर उदास है और यही वनवास है। कई बार यह वनवास भले 14 सेकैंड का हो या 14 मिनट, घंटे या दिन का हो लेकिन यह वनवास उन लोगों को भगवान राम के 14 साल के वनवास से भी भारी लगता है।

इस कहानी का हर किरदार योद्धा और भिखारी हैं और किरदार अपनी अपनी सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठा भगवान। एक कोशिश अपने आस पास के किरदारों में उतरने की और उनके वनवास को नजदीक से जानने की।जो बन पड़ा है वह वैसा का वैसा ही रख रहा हूं आपके सामने एक नये प्रयोग के साथ वेबसीरिज के तौर पर प्रस्तुत है

वो पुजारी है लेकिन लोकतंत्र के मंदिर का, जनता को भगवान भगवान कहते नहीं थकता। वो करोड़ों लोगों का भगवान बन बैठा है। सारा प्रशासनिक और राजनीतिक तंत्र उसे घेरे हुए है। जो नातेदार रिश्तेदार उसे भुला चुके थे वो आज उसके पहरेदार हैं। जो कभी उसकी राजनीतिक हत्या की फ़िराक में थे वो आज उसके हिमायती बनकर अकेला नहीं छोड़ रहे हैं । क्या परिवार क्या नातेदार रिश्तेदार दोस्त अफ़सर और उसके संगठन के लोग,हर हाथ में एक कागज़ है और हर कागज़ में उसके मालिक की उम्मीद की किरण । वो सबकी उम्मीद की किरण को देखता है, तौलता है और परखता है।जो उसकी नज़र में उचित है उसे पूरा कर देता है।वो इस एक पल में अपने सारे नफा नुकसान का आकलन कर लेता हैऔर वसूल भी लेता है । बस इसी एक पल के बाद उसका वनवास शुरू होता है । जिसे खुश कर दिया है वो अपनी कीमत चुकाकर चला गया है और जिनकी उम्मीद की किरण बुझ गई है वो घात प्रतिघात की तैयारी में लग चुके हैं , क्योंकि जब उन्हें लड़ना है मांगना है गिड़गिड़ाना है। जमकर छीछालेदार हो रही है । तीखी नजरों के व्यंगबाण उसके चेहरे पर गड़ रहे हैं ।उलाहने कानों में पड़ रहे हैं। उधर उसके आकाओं को इस पुजारी की हरकत की भनक लग गई है । फोन आता है और फरमान भी आता है कि फलांना व्यक्ति आ रहा है, फलां मदद कर देना। असल में यह मदद नहीं है कीमत है जो उसे भगवान बने रहने की चुकाना पड़ रही है। 

फोन क्रेडल पर रख देता है और उदास निगाहें सूनसान तकती है। तभी टेबल पर पड़े कागज़ दिखाई देते हैं और वह उनको पढ़ने की तैयारी शुरू करता है।तभी उसका बालसखा आते हुए दिखाई देता है।वो अपने सखा को लेकर अंदरखाने में चल देता है । इधर उधर देखकर लिपट जाता है और कह पड़ता है कि यार मैं अकेला पड़ गया हूं । किसको खुश करुं किसको नाराज़ ? यही उसका वनवास है ।

किरदार आप सब जानते हैं ? एक नये किरदार के साथ कल मिलेंगे ?

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