जग जीते जगजीत जग सारा हारा

शख्सियत Oct 09, 2019


खबर नेशन/Khabar Nation

आर.सी.वी.पी. नरोन्हा प्रशासन एवं प्रबंधकीय अकादमी मध्यप्रदेश शासन में ओ एस डी अभय अरविंद बेड़ेकर की फेसबुक वॉल से साभार

“चिट्ठी ना कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गये...”
मेरे प्रिय ग़ज़ल गायक जगजीत की ये ग़ज़ल एक दिन उन्ही पे इस तरह फ़िट बैठेगी ये किसने सोचा था?
जगजीत  ने सचमुच जग जीत लिया था। दुनिया के कोने कोने में जैसी फ़ैन फ़ॉलोइंग जगजीत की थी वैसी ग़ज़ल की दुनिया में मेहंदी हसन या ग़ुलाम अली की भी नही रही।उन्होंने सच्चे अर्थों में ग़ज़ल को आवाम की आवाज़ बनाया और अंतिम समय तक गाते रहे।
क्या कभी ऐसा सुना है कि किसी यात्री के कारण वायुयान लेट हुआ हो और वो भी तब जब वो वायुयान में बैठा हो?
जगजीत सिंग का ऐसा ही रुतबा था और ऐसी ही थी उनकी दीवानगी।
वो वायुयान था पाकिस्तान की वायुसेवा पीआऐ का और करांची से दिल्ली आ रहा था। पायलट ने प्लेन आधे घण्टे तक हवा में घुमाया और कर्मियों तथा सह यात्रियों ने ग़ज़ले सुनी।
लंदन के विश्वप्रसिद्ध ऐल्बर्ट हॉल में सत्तर के दशक में चित्रा सिंग के साथ गायी उनकी ग़ज़ल “हम तो हैं परदेस में , देस में निकला होगा चाँद...” आज भी आँखो में आँसू ला देता है और परदेस में रहने वालों को तो फूट फूट के रोते देखा जा सकता है।
राजस्थान के श्रीगंगानगर में  8 फ़रवरी 1941 को जन्मे जगजीत जी के फ़ैन पूरी दुनिया में हैं और उनकी मख़मली आवाज़ के दीवाने हैं।
जगजीत सिंग शास्त्रीय संगीत का शौक़ रखते थे और ख़ूब रियाज़ करते थे। जालंधर में पढ़ते समय तो हॉस्टल के सभी छात्र उनके रियाज़ से परेशान रहते थे पर धीरे धीरे वो सब उनकी गायकी के मुरीद होते चले गये। जालंधर रेडीओ स्टेशन ने उन्हें शास्त्रीय संगीत हेतु ‘बी’श्रेणी में चिन्हित किया था जिसका दुःख उन्हें ताउम्र बना रहा।
1976 में आया उनका पहला ऐल्बम ‘अन फ़र्गेटबल्स’ जो चित्रा सिंग के साथ था और उसने संगीत जगत को उनका दीवाना बना दिया।
“बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी.” ऐल्बम में एक बहुत उमदा नज़्म थी जो सच में उन्हें दूर दूर तक प्रसिद्ध कर गयी।
फिर तो एक के बाद एक ऐल्बम का जो सिलसिला शुरू हुआ वो 2011 में ही रुका।

उनके सैंकड़ों अल्बम आते गये और दुनिया उनकी दीवानी होती गयी।चाहे निदा फ़ाज़ली हों या सुदर्शन फ़क़ीर। चाहे गुलज़ार हो या जावेद अख़्तर।उन्होंने सब को गाया और क्या ख़ूब गाया।
“वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी..”
“शम्मे मज़ार थी ना कोई सोगवार था..”
“तेरे आने की जब ख़बर महके तेरी ख़ुशबू से सारा घर महकें..”
लिखता जाऊँगा तो शाम हो जाएगी पर ना ग़ज़ले कम होंगी ना जुनून।
जगजीत जी ने चित्रा जी के साथ ख़ूब गाया और चित्रा जी ने भी गायकी को क्या ख़ूब निभाया।
“रात भी नींद भी कहानी भी.. हाय क्या चीज़ है जवानी भी” को कौन भूल सकता है?
फ़िल्मों में भी उन्होंने अपना योगदान दिया और साथ साथ , अर्थ, प्रेम गीत और सरफ़रोश जैसी अनेक फ़िल्मे सिर्फ़ उनके संगीत के कारण जानी जाती हैं।
“बल्लीमाराँ की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियाँ...
असदउल्लाह खाँ ग़ालिब को उन्होंने और नसीरुद्दीन शाह ने टीवी पर ज़िंदा कर दिया था । इतना कि नयी पीढ़ी नसीर को ही ग़ालिब मानती है।
फिर आया 1990 । “विवेक सिंग” जगजीत-चित्रा का एकलौता बेटा था जिसका रोड ऐक्सिडेंट में दुखद निधन हो गया। जैसे दोनों की आवाज़ ही चली गयी।
“क्या ख़बर थी इस तरह से वो जुदा हो जायेगा.. ख़्वाब में भी उसका मिलना ख़्वाब सा हो जायेगा..”-सम वन सम व्हेअर ऐल्बम से।
चित्रा तो एकदम टूट गयीं और “सम वन सम व्हेअर” ऐल्बम के बाद चित्रा ने गाना छोड़ दिया।
जगजीत जी ने अपने आपको सम्भाला और फिर गाना शुरू किया।
“अम्बे .. चरण कमल हैं तेरे..”
“चैतन्यमयी आनंदमयी....”
हरी ओम् शरण के भजनों में डूबी जनता के लिये जगजीत जी के भजन एक नयी सौग़ात ले कर आए।
जगजीत जी ने ग़ज़ल,भजन,नज़्म,गीत जो भी गाया दिल से गाया और सबको अपना दीवाना बनाया।
वो अपने 50 साल लम्बे करियर में पूरी दुनिया में घूम घूम कर गाते रहे और विवेक के बाद अपनी बाक़ी ज़िंदगी में उन्होंने गायकी को ही ज़िंदगी बना लिया।
आज जगजीत नही हैं पर लगता है अभी कही से आवाज़ आयेगी...
“तुमको देखा तो ये ख़याल आया 
ज़िंदगी धूप तुम घना साया..”
भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से नवाज़ा था पर वो भारत रत्न के हक़दार हैं।

“तड़पूँगा उम्र भर दिल ऐ मरहूम के लिये
कमबख़्त, नामुराद लड़कपन का यार था..।”
बहुत याद आते हो जगजीत !!
10 ऑक्टोबर 
-AB*®™

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