दोषी कौन? मां,बच्ची या हम


....वो सो रही थी और बच्ची रो रही थी । वडोदरा में फुटपाथ पर रहने वाली महिला की जिंदगी से जुड़ी हुई इस घटना को अजीबोगरीब करार दिया जा रहा है। गुजरात में बीते रविवार की सुबह रोटी पानी की जुगाड़ के बाद दोपहर में महिला झपकी लेने फुटपाथ किनारे पेड़ की छांव में लेटी तो नन्ही बच्ची दूर न चली जाए इसलिए उसका पैर अपने हाथ से बांध लिया। थोड़ी देर खेलने के बाद बच्ची ने जब रोना शुरू किया तब तक महिला गहरी नींद में जा चुकी थी। लोगों का ध्यान उस ओर गया तो उनमें से कुछ ने मोबाइल से इसका वीडियो बनाना शुरू कर दिया।इसी बीच एक एन जी ओ को खबर कर दी गई और पुलिस भी आ गई। इसके बाद महिला को जगाकर उसे फटकार लगाई गई।
वाकई में यह घटना अजीबोगरीब है। इस घटनाक्रम से जुड़े आम नागरिक, महिला मजदूर का नियोक्ता,एन जी ओ और गुजरात पुलिस वाकई में सब असंवेदनशील निकले।बस दोषी महिला मजदूर रही।बच्ची तो नासमझ थी ही।
घटनाक्रम से जुड़े पहलुओं पर सवाल....
(१) क्या उक्त महिला को अपनी थकान निकालने का अधिकार नहीं था।
(२) अगर बच्ची रो रही थी तो क्या राहगीर उस बच्ची को चुप कराने के लिए दो बिस्किट भी नहीं खिला सकते थे?
(३) क्या इतनी बड़ी घटना हो गई थी कि एन जी ओ और पुलिस बुलानी पड़ी?
(४) महिला मजदूर जहां काम कर रही थी क्या वहां पर नियोक्ता ने श्रम कानून के अंतर्गत आने वाले प्रावधानों का पालन किया जा रहा था ?
यह सब सवाल इसलिए क्योंकि जितनी देर राहगीरों ने वीडियो बनाने में , एनजीओ और पुलिस को बिताने में लगाई उसके भी दसवें हिस्से में बच्ची को चुप कराया जा सकता था और महिला मजदूर को सम्मान देते हुए सोने का अवसर दिया जा सकता था ।

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