तेजस’ ट्रेनों का बहिष्कार की अपील अन्दरूनी सिस्टम सुधारें जाएं

 


शिक्षा, स्वास्थ्य, सार्वजनिक परिवहन और मूलभूत जरूरतों को पूरा करने  का जिम्मा सरकार का है।                                                         

      खबर नेशन / Khabar Nation  / आराधना भार्गव
            मेरे दिमाग में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर सरकार अपनी जिम्मेदारियों से भाग क्यों रही है ? निजी करण की दौर को आगे बढ़ाने से पहले जरूरत इस बात कि है कि सरकार अपने अन्दरूनी सिस्टम को सुधारने की ठोस पहल करें। हमारे देश में नई नई ट्रेने चलाई जाती रही है जिन्हें सजाकर एक स्थान से दूसरे स्थान हरी झण्डी दिखाकर रवाना करते देखा है। ट्रेन के प्रचार के लिए युवा महिलाओं का सहारा लेते दिल्ली और लखनऊ के बीच शुरू हुई देश कि पहली काॅरपोरेट ट्रेन ‘तेजस’ को देखा ना तो फूलों से सजी दिखी और न ही कोई हरी झण्डी दिखा रहा था। युवतियों के सहारे ट्रेन आगे बढ़ेगी यह संदेश अखबारों की कटिंग देखकर लगा। ‘तेजस’ कि विशेषता यह है कि इसकी टिकिट रेल्वे के काऊन्टर पर नही मिलेगी स्पष्ट है कि टिकिट रेल्वे नही बेच सकता आई.आर.सी.टी.सी. टिकिट बेचकर लाभ कमायेगा। जरा सोचों जमीन हमारी पेड़ हमारे काटे गए, पटरियाँ हमारे पैसों से बनाई गई ट्रेन हमारे पैसे से बनी हमारे पैसे जो बैंक में जमा है उन्ही पैसे से फाईनेंस कराकर कम्पनी कैसे मुनाफा कमा रही है? अब भारतीय रेल निजीकरण के निशाने पर है। रेल्वे ने उन सभी मार्गो कि सूची मांगी है, जहाँ काॅरपोरेट कम्पनी कि मदद् से ट्रेन संचालित की जा सके। यात्री भाड़े कि आड़ में घाटा दिखाया जा रहा है हमें यह सोचना होगा कि हम टेक्स भी दें और संसाधनों पर अपना हक भी ना जता पाऐं। अन्र्तराष्ट्रीय स्तर का स्टेशन बनाने के नाम पर हबीबगंज स्टेशन का प्रबंधन निजी हाथों में दे दिया गया ‘‘बिल्ट एण्ड ऑपरेट’’ माॅडल में कम्पनी स्टेशन को बनाएगी। और फिर यहाँ पर अपने चार्ज लगाकर पैसा कमाएगी।  
          मैं कई बार ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों, मजदूरों, महिलाओं को लेकर दिल्ली, बम्बई, भोपाल गई उनमें से कई साथी ऐसे थे जिन्होंने जीवन में पहली बार रेल यात्रा कि थी, और पहली बार ही दिल्ली, बम्बई, भोपाल देखा था। निजी करण की दौड़ में उस सामान्य तबके के लिए जगह कहाँ है? उन साथियों के लिए भी जगह कहाँ है जो अपने सिर पर 20 किलों कि बोरी रखकर चलते है। आज के इस दौर में सरकार अपनी सामाजिक कार्यो से दूरी बनाते तथा काॅरपोरेट के लिए ‘‘पलक पावड़े’’ बिछाते दिख रही है। आईये हम सब मिलकर ‘तेजस’ जैसी ट्रेनों का बहिस्कार करें तथा रेल के निजीकरण के खिलाफ सड़कों पर उतरें ताकि काॅरपोरेट रूपी रावण को जलाया जा सके इन्ही शब्दों के साथ दशहरा पर्व की शुभकामनाऐं।

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