क्या करें हौसला नहीं होता ।

यूं ही Aug 05, 2018

 


पुण्य प्रसून बाजपेयी पर विशेष

खबर नेशन / Khabar nation


एबीपी न्युज से एंकर पुण्य प्रसून वाजपेयी के बाहर जाने के बहुत सारे मतलब निकाले जा सकते है और जा रहेे हैैं। इस बात की सब से बडी वजह यह है ना तो एबीपी का प्रबंधन और ना ही खुद वाजपेयी इस बारे में कुछ कह रहे हैं। इस वक्त तो दोनों ही खामोश है और यह खामोशी किसी के लिये भी अच्छी नहीं हो सकती है। आखिरकार आम लोगों को यह तो जानने का हक है ही कि अंत में क्या हुआ। क्या वाजपेयी को निकाला गया या कि उन्होंने खुद ही इस्तीफा दे दिया। वैसे यह तो सब का पता ही है कि एबीपी न्युज में आने के पहले वाजपेयी आज तक मैं थे और उस से भी पहले कई चैनलों में काम कर चुके हैं। कुछ लोगों का यह कहना है कि ना तो वाजपेयी को निकाला गया और ना ही उन्होंने अपना कोई इस्तीफा ही दिया। यह बताया जा रहा है कि उन से केवल यह कहा गया कि वो अब से काम पर ना आयें। यह भी कहा जा रहा है कि वाजपेयी को सरकार के दबाव में जाना पडा क्योंकि वो उस के कार्यक्रम मास्टर स्टोक से नाखुश थी। अगर ऐसा हुआ है तो यह कोई बहुत बडी बात नहीं है।चाहे किसी की भी सरकार हो वो कभी भी हर खबर से खुश नहीं हो सकती है।वैसे तो कोई भी सरकार केवल यही चाहती है कि उस की तारीफ ही होती रही और मीडिया और पत्रकार उस की आलोचना करने से बचे या दूर रहें।। इस माहौल में जब कोई भी पत्रकार इस बात के आडे आता है तो सरकार को बुरा लगना एक तरह से स्वाभाविक ही होता है। तो यहां पर सवाल सरकार की सहनशीलता का आ जाता है।कांग्रेस की सरकारें अपनी आलोचना के खिलाफ इतनी जल्दी कभी भी परेशान नहीं होती हैं।

उन का यह मानना होगा कि पत्रकार या मीडिया तो आलोचना करेंगे ही और इस बात से नाराज होने से कोई फायदा नहीं होता।हो सकता है कि इस मामले में भाजपा सरकार कुछ तो अलग हो। वैसे भी अगले लोक सभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं और ऐसे में सरकार अपनी बुराई सुनने को जरा भी तैयार ना हो। किसी ने यह भी कहा है कि अब लोगों को एबीपी न्युज को देखना बंद कर देना चाहिए। पर ऐसा करने से क्या होगा यह अपने आप में एक सवाल ही है। आज कल हमारे देश मे एक ऐसा मीडिया बन गया है जिस की नजर में मोदी सरकार ने कुछ भी गलत नहीं किया है। इस तरह के मीडिया को गोदी मीडिया का नाम दे दिया गया है। और बहुत सारे लोग इस मीडिया को बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते हैं। वाजपेयी को एबीपी न्युज में बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ था। इस कारण से भी उन का वहां से ऐसे चले जाना कोई अच्छी बात नहीं है। अब तो यह भी कहा जा रहा है कि आने वाले समय मे उन पत्रकारों के लिये भी कठिन समय आ सकता है जो कि आज कल सरकार की आलोचना करते हैं।

 

हर बार की तरह आज का अंत भी एक बेहतरीन शेर के साथ

 

जी बहुत चाहता है सच बोलें

क्या करें हौसला नहीं होता।

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