कैसे कैसे दावेदार ?
कभी अपनी ही सरकार को कोसते तो कभी दारू के नशे में तो कभी सोते जागते आ रहे हैं विधानसभा चुनाव टिकट के दावेदर
खबर नेशन /Khabar Nation
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 की रणभेरी बज चुकी है । विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनने के लिए टिकट के दावेदार अजब गजब किस्म के आ रहे हैं।
इन दिनों दिल्ली में कांग्रेस चुनाव समिति की बैठक में दावेदारों की स्क्रीनिंग अंतिम दौर में है। 2 दिन पहले कांग्रेश के दफ्तर में विंध्य क्षेत्र के एक नेता जी कांग्रेस के प्रमुख पदाधिकारी के कक्ष में आए और उनसे कह बैठे कि उन्हें विधानसभा चुनाव की टिकट के लिए आवेदन देना है। जब उनसे यह पूछा गया कि अभी तक कहां थे तो वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए । पदाधिकारी ने झल्ला कर कहा कि अब अगले चुनाव में टिकट मांगना।
कुछ टिकट के दावेदार तो ऐसे पदाधिकारी के पास पहुंच गए जिनकी खुद की टिकट खतरे में है वजह 22 चुनाव हारने के बाद भी संगठन में नेताजी की पूछ परख हो रही है लेकिन क्राइटेरिया के लिहाज से उक्त पदाधिकारी न तो सर्वे में है ना पार्टी नेताओं की पसंद के तौर पर । पर पदाधिकारी को अपना वर्चस्व दिखाना है सो वे दावेदार का आवेदन देकर आश्वासन दे बैठे हैं ।
ऐसे रोचक हालात भारतीय जनता पार्टी में भी है ।पिछले तीन चुनावों से अपनी दावेदारी कर रहे एक नेता मीडिया के लोगों से उनके बारे में अच्छा छापने का आग्रह कर रहे हैं । भरी दोपहर में उनके मुंह से आ रहे शराब के भभके उनकी गंभीरता को जाहिर कर रहे है ।
एक महिला अपने राजनीतिक संपर्कों का इस्तेमाल वल्लभ भवन में कर रही हैं । मंत्रालय में बैठे शिवराज के कुछ खास अधिकारियों से मिलकर टिकट के लिए उनका नाम चलाए जाने की मुहिम छेड़ने का कह रहीं है । टिकट मांगने की वजह हालिया उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख पदाधिकारियों और मंत्रियों का उनके घर जाकर भोजन करना रहा है । इस दौरान वे पार्टी की कमियों को भी उजागर करने से परहेज नहीं कर रही है ।
कुछ दावेदार नेताओं की परिक्रमा के साथ साथ प्रदेश के प्रमुख मंदिरों की भी परिक्रमा कर रहे हैं । वजह साफ है कि किसी भी तरह उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट मिल जाए ।
1-2 दावेदार तो ऐसे नजर आए कि वह उन्हीं से जाकर उन क्षेत्रों से टिकट मांगने के लिए लॉबिंग करने का कह रहे हैं जहां से खुद उक्त पदाधिकारी दावेदारी कर रहे हैं ।
ऐसे हालात सिर्फ भोपाल के नहीं है जिले के प्रमुख नेताओं से लेकर दिल्ली के दरबार तक इस तरह से भटकने वाले बहुत सारे मिल जाएंगे ।
यह हालात सिर्फ भाजपा और कांग्रेस के ही नहीं है । जाति का गणित , पैसे का रसूख इस्तेमाल कर टिकट मांगने वाले भी पीछे नहीं है । इन्हीं में ऐसे लोग भी कतार में हैं जो व्यवस्था से नाखुश है । लेकिन यह दावा करने से पीछे नहीं हटते कि वह आकर देश की और प्रदेश की राजनीतिक दशा दिशा बदल देंगे । हालांकि इनमें से कईयों के हालात अपने क्षेत्र के पार्षद बनने लायक भी नहीं है ।
कुछ तो मन बना कर बैठे हैं कि चुनाव नहीं लड़ना है लेकिन विधानसभा चुनाव में अपना नाम जरूर चलाना है । इन जैसों का गणित भी रोचक है । टिकट मिली तो ठीक वरना सरकार बनने के बाद किसी निगम मंडल या संगठन का प्रमुख पद लेकर अपनी राजनीति करते रहेंगे । दोनों राजनीतिक दलों में ऐसे लोग भी तीन चार लोगों के साथ आ रहे हैं जो अपने साथी के साथ अपना भी आवेदन वरिष्ठ पदाधिकारी या चुनाव में टिकट बांटने वालों के हाथों में यह कह कर थमा रहे हैं कि हम भी इस कतार में हैं ।