जब एक महिला साहित्यकार ने कहा आशुतोष राना लिखना सीखो

यूं ही Sep 08, 2020

 

फिल्म अभिनेता,लेखक वक्ता की जुबानी

खबर नेशन / Khabar Nation
पूरा नाम तरुण बघेल, लेकिन इस नाम से उन्हें सिर्फ़ सरकारी काग़ज़ ही जानते हैं, मित्र परिवार और घर संसार में वे मधु या मधु भाई के नाम से जाने जाते हैं। मधु, मुझसे मात्र नौ माह २१ दिन छोटे हैं, मेरे मित्र हैं लेकिन मुझे बड़े भाई के जैसा मान देते हैं, वे इंटिरीअर डिज़ाइनर कम कॉंट्रैक्टर हैं लोगों के घर बनाते ही नहीं सजाते भी हैं। कोरोना काल में वे आज पहली बार मुंबई से भोपाल हवाई जहाज़ से यात्रा कर रहे थे, एर्पॉर्ट से मुझे विडीओ कॉल किया और बोले- बड़े भाई, बड़ा तमाशा है। 

मैंने पूछा- क्यों क्या हुआ ? 
उन्होंने विडीओ कॉल पर हवाई अड्डे का नज़ारा दिखाते हुए कहा- पहले आप ये सब देखो। 

मैंने देखा कई सारे लोग अपने कपड़ों के ऊपर PPE किट पहन रहे हैं सर से पैर तक सफ़ेद सूट में ढँके हुए हेलमेट के साथ वे सभी अंतरिक्ष यात्रियों के जैसे लग रहे थे। मैंने कहा- मधु, ये सुरक्षा के लिए ही किया जा रहा है, आवश्यक है। 

मधु बोले- सुरक्षा है तो सबको PPE किट दें ना बड़े भाई ! बोर्डिंग गेट पर कुछ लोगों को ये PPE किट दिए गए पहनने के लिए, मैंने अटेंडेंट से कहा की आपने मुझे किट नही दिया ? 

अटेंडेंट बोला- आपकी सीट विंडो है सर तो विंडो और आइल सीट वालों को किट नही पहनना है, आप दोनों के बीच में जो बैठेगा सिर्फ़ उसे ही किट पहनना ज़रूरी है। 

मधु ने चकित होते हुए कहा- कमाल है ! फ़्लाइट की सीट्स इतनी छोटी होती हैं की तीन लोग बिलकुल चिपके ही रहते हैं। क़ायदे से बीच वाली सीट ख़ाली रखनी चाहिए आप लोगों को और हम सभी यात्रियों को PPE किट मिलना चाहिए, सिर्फ़ बीच वाला किट पहन लेगा तो इससे प्रटेक्शन हो जाएगा ? 

अटेंडेंट ने कहा- सर हम गाइड लाइन फ़ॉलो कर रहे हैं इसे फ़ॉलो करने से हमारी कम्पनी का लाइसेन्स ज़रूर प्रोटेक्टेड रहेगा। 

मधु जब मुझे फ़ोन पर यह बता रहे थे तब मैंने देखा की PPE किट में सर से पाँव तक लिपटी हुई एक मूर्ति ने उनसे पूछा- आशुतोष राना से बात कर रहे हो ? मैंने देख लिया है उसको तुम्हारी स्क्रीन पर। 

मधु हकबका गए, अंतरिक्ष यात्री जैसी दिखने वाली उस महिला मूर्ति ने कहा- लाओ मेरी बात करवाओ ज़रा। 

मधु ने उनसे पूछा- आप कौन हैं ? आप उनको जानती हैं क्या ? 

उस अंतरिक्ष यात्री ने कहा- अरे फ़ोन दो ना यार, मैं कोई फ़ोन लेकर भाग थोड़ी जाऊँगी मैं भी भोपाल चल रही हूँ और तुम्हारे साथ वाली सेंटर सीट पर मैं ही बैठी हूँ। मधु कुछ समझ पाते इससे पहले ही उन्होंने मधु के हाथ से साधिकार फ़ोन लेते हुए मुझसे कहा- कैसे हो आशुतोष ? मुझे पहचाना ? 

ये निहायत ही बेतुका प्रश्न था क्योंकि उस पोशाक में उन्हें पहचान पाना मेरे लिए क्या उनके अपने घर वालों के लिए भी मुश्किल था, एक बार मेरा मन में आया की मैं कह दूँ- जी पहचान गया आप ‘कोई मिल गया की जादू हैं।’ लेकिन अपरिचित व्यक्ति से परिहास करना शिष्टता की श्रेणी में नहीं आता इसलिए रुक गया और उनकी आवाज़ से उन्हें पहचानने का प्रयास करने लगा ये सोचकर कि हो सकता है कोई परिचित हों ? 

तभी हेलमेट के अंदर से घों-घों करती हुई वे बोलीं- क्यों पहचानोगे, तुम्हारी FB पोस्ट पर पाँच दस हज़ार लाइक आते हैं इसलिए हमें भूल गए !! बड़े आदमी हो, हम छोटे साहित्यकारों को क्यों पहचानोगे ?

मैंने कहा- क्षमा चाहता हूँ लेकिन मुझे नही लगता की मैं आपसे कभी मिला हूँ ! आप अपना परिचय देंगी, मुझे याद कराइए मैं कब और कहाँ आपसे मिला हूँ ? 

वे बोलीं- FB पर मिले हो। मैंने तीन साल पहले एक बार तुम्हारी पोस्ट पर कॉमेंट किया था कि ‘अच्छा लिखा है।’ लेकिन तुमने मेरे कॉमेंट को सिर्फ़ लाइक करके छोड़ दिया कोई जवाब नही दिया तो मैं समझ गयी की तुम बहुत घमंडी आदमी हो इसलिए उसके बाद ना तो कभी तुम्हारी पोस्ट को लाइक किया और ना ही कभी कॉमेंट नही किया। 

लेकिन तुम्हारी पोस्ट पढ़ती ज़रूर हूँ, अभी शिक्षक दिवस वाली तुम्हारी पोस्ट पढ़ी जिसकी तुम्हारे FB फ़्रेंड्ज़ ने ख़ूब तारीफ़ की लेकिन मुझे लगता है तुमको अपना स्तर सुधारना चाहिए.. तुम्हारी कविताएँ, कहानियाँ बहुत लम्बी और उबाऊ होती हैं बिना मतलब की। मैं एक साहित्यकार हूँ, उस नाते मैं कह सकती हूँ तुममें पॉसिबिलिटी है, संक्षेप में बात करना सीखो, इतनी फुर्सत नहीं होती हम लोगों को। मैं तुमको अपनी एक कविता सुनाती हूँ शिक्षक दिवस पर लिखी थी.. सुनो, थोड़े में गहरी बात कहने का तरीक़ा.. 

“शिछक, शिछक, शिछक। 
तुमसे- सीखा, सीखा, सीखा। 
माता माता माता। 
तुमसे- सीखा सीखा सीखा। 
तुमको नमन नमन नमन। 
ये है मेरा कथन।” 

बताओ कैसी है ? 

उनकी रचना सुनकर मुझे उनपर दया आयी, मैं देख रहा था कि वे स्वयं को साहित्यकार, अत्यंत प्रबुद्ध व्यक्ति मानने का वहम पाले बैठी हैं। वहम से उत्पन्न अहंकार के गुब्बारे को पिन मारकर नहीं पम्प मारकर फोड़ना नीतिपूर्ण होता है तो मैंने आदरपूर्वक कहा- अद्भुत लिखा है आपने, मैं भविष्य में ध्यान रखूँगा.. आप कृपया मधु भाई को फ़ोन दीजिए और साथ ही अपना नम्बर भी उन्हें दे दीजिए जिससे मैं समय-समय पर आपसे मार्गदर्शन लेता रहूँ। 

मधु ने जैसे ही फ़ोन लिया मैंने कहा- मधु यदि आप चाहते हैं की आपकी भोपाल यात्रा शुभ हो तो रिक्वेस्ट करके अपनी सीट तत्काल बदलवा लीजिए अन्यथा आप पागल हो जाएँगे, आपने देख ही लिया कोरोना से ज़्यादा घातक कोरोना की दहशत और फुर्सत है इसने लोगों के दिमाग़ को डैमिज कर दिया है।
आशुतोष राना

सबकी जय हो सबका शुभ हो

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