जब जागो..तब सबेरा..

राहुल गांधी कब करेंगे युवा नेताओं के साथ इंसाफ

 नाज़नीन नकवी/खबर नेशन/Khabar Nation
( लेखक मध्यप्रदेश के रीजनल चैनल IND24 में एसोसिएट एडिटर हैं )

कहते है कि जब जागो..तब सबेरा...लेकिन सियासत में न तो सोने का समय होता है, न ही सुस्त होने का...हालांकि 15 साल बाद एमपी कांग्रेस में हलचल हुई। कांग्रेस नेता एक्टिव हुए तो, साल 2018 में 15 महीने का सत्ता सुख कांग्रेस ने भोगा। लेकिन अपने चिर परिचित रवैये और अहम की लड़ाई में उलझे नेता इसे संभाल न सके और जो हुआ वो पूरे प्रदेश ने देखा।गौर करने वाली बात ये कि सबक लेने की बजाय कांग्रेस नेता इसके दोहराव की ओर बढ़ते दिख रहे हैं और ये होने की संभावना बार बार कांग्रेस शासित प्रदेशों राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ में नजर आई। ये बात और है कि दिल्ली दौड़ के बाद उसे साधा गया। लेकिन सवाल यह कि इसके पीछे कि वजह है क्या?

 

 

कब जवां होगी सियासत !

 

बीते कई दशक से देखे तो कांग्रेस के अंदर युवा जोश और जूनून फ्रंट फुट जब-जब खेलता दिखा, उसे उतनी ही तेजी के साथ पवेलियन भेज दिया गया। युवा खिलाड़ी को खेलने का मौका न देने वाला कोई और नहीं बल्कि उसकी अपनी ही पार्टी का शीर्ष नेतृत्व रहा। साल 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान अलग-अलग राज्यों की बात करें, तो मध्यप्रदेश में ग्वालियर चंबल में चेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया का आगे रहा। तो वही अजय सिंह और अरूण यादव की मेहनत रंग लाई। राजस्थान में कांग्रेस का विमान बिन पायलट इतनी ऊंचाई पर नहीं जा पाता। लेकिन टेक ऑफ के बाद पायलट को जो मिला उससे बैचेनी लगातार ऐसी रही, जैसे ऊंचाई के बाद ऑक्सीजन का न मिल पाना और वही छटपटाहट बार बार दिल्ली दौड़ की वजह रही। दिल्ली तक ये मैराथन सिर्फ राजस्थान और पंजाब में तक सीमित नहीं रहा। बल्कि ओलंपिक खेलों की मशाल की तरह एक के बाद एक दूसरे खिलाड़ी ने उसे थाम लिया। कांग्रेस नेताओं की महत्वाकांक्षी रूपी ये मशाल देर सबेर छत्तीसगढ़ के नेताओं ने भी थामी। लेकिन सवाल यह कि बार-बार इसकी जरूरत क्यों आन पड़ी है। क्यों राष्ट्रीय नेतृत्व इनको संभालने में कमजोर और लाचार दिखता है। भरोसे की कसौटी पर क्यों बार बार युवा नहीं बल्कि वो चेहरे ही दिखते हैं जिनकी तेवर तेज हैं और चेहरे पर अनुभव की झुर्रियां। जिनको आज के युवाओं के लिए ब्रांड एम्बेस्डर बना कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व खुद की मार्केटिंग करना चाहता है। लेकिन मेहनतकश, जुझारू और चार्मिंग चेहरों की अनदेखी कर रहा है। और इस अनदेखी में मध्यप्रदेश में सत्ता गंवाना कांग्रेस का एक बड़ा लॉस रहा। कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंककर पीता है। लेकिन कांग्रेस इसे मानने को तैयार नहीं। अब ये बात और है कि राहुल गांधी बार-बार युवा नेताओं को तरजीह दिए जाने की पैरवी भले करते रहे हो। लेकिन इस पर सुनवाई भी होगी कहना मुश्किल है। राहुल गांधी खुद अध्यक्ष पद से दूरी बनाए हुए हैं। ऐसे में वो कैसे युवा नेताओं के साथ इंसाफ करेंगे?

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