सवा सौ करोड़ भारतीय की हैसियत नहीं एक ग्राम सोना खरीदने की

यह कैसा मजाक ?

फिर कहां गया 15 हजार करोड़ का सोना

खबर नेशन / Khabar Nation
अक्षय तृतीया पर पन्द्रह हजार करोड़ रुपए का सोना चांदी बिकने को लेकर आम गरीब भारतीय की मजाक उड़ाई जा रही है। कहा जा रहा है कि नींबू, पेट्रोल और मंहगाई की बात करने वाले देश में एक दिन में पन्द्रह हजार करोड़ रुपए का सोना बिक गया।
उपहास उड़ाने वालों से निवेदन है कि जरा हिसाब लगाकर देखिए प्रति व्यक्ति ने कितना सोना खरीदा। 2021 की जनगणना के मान से 139 करोड़ देश के लोगो ने मात्र प्रति व्यक्ति 107.91 पैसे मतलब 108 रुपए का सोना खरीदा। अब इतना तो हर कोई जानता है कि 108 रुपए में एक पिज्जा भी नहीं आता तो क्या आज की दर के 5254 रुपए प्रति ग्राम के हिसाब से कितना सोना एक आदमी ने खरीदा होगा। जबकि अक्षय तृतीया से शादी विवाह का सीजन शुरू होता है।
अब दूसरा गणित भी लगा लीजिए। एक परिवार की यूनिट पांच लोगों की मानी जा रही है। जनसंख्या के मान से 27.8 करोड़ परिवार होते हैं । प्रति परिवार भी आंका जाए तो 108 रुपए के मान से 540 रुपए का ही सोना खरीद सकता है। जिसमें भी एक ग्राम सोना नहीं आ सकता । आज की दर के हिसाब से जब दस परिवार मिलकर खरीदें तभी यह संभव है और भारत में यह संभव इसलिए भी नहीं है कि इतनी एकता अब बची नहीं।
2013 में लागू किया गया राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य-आधारित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम है जो 80 करोड़ व्यक्तियों (ग्रामीण आबादी का 75% और शहरी आबादी का 50%) को कवर करता है। मतलब इनकी भी इतनी हैसियत नहीं है जो सोना खरीद सकें। कुल जमा अब 59 करोड मतलब 12 करोड़ परिवार ही बचते हैं जो सोना खरीद सकते हैं। इस मान से भी प्रति परिवार 2190 रुपए का सोना खरीद सकता है। जिसमें भी 1 ग्राम सोना नहीं आएगा।
अगर एक ग्राम सोना खरीदने की हैसियत का आकलन करें तो मात्र दो करोड़ पचासी लाख उनचास हजार छह सौ छिहत्तर लोगों की हैसियत ही निकलेगी। प्रति परिवार यूनिट के मान से मात्र सवा चौदह करोड़ भारतीय के हिस्से में ही प्रति व्यक्ति 1000 रुपए का सोना खरीदा गया होगा। 
यह आकलन आर्थिकी के आंकड़ों पर आधारित है। अगर सही मायनों में देखा जाए तो सोना खरीदने वालों की आबादी और कम निकलेगी पर यह तो तय है कि सवा सौ करोड़ भारतीय 1 ग्राम सोना खरीदने की हैसियत भी नहीं रखते हैं। फिर क्या अधिकार मिल जाता है उन राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को जो नींबू न खरीद सकने की हैसियत रखने वालों का इस तरह मजाक उड़ा रहे हैं ।

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