टिड्डियों का हमला और जीप पर सवार इल्लियां

 

 भारतीय रक्षा प्रणाली की खामी या सरकारी तंत्र की लालफीताशाही और केंद्र सरकार का रवैया ?
खबर नेशन / Khabar Nation
हाल ही में भारत के कृषि क्षेत्र  टिड्डियों के हमलों से भयाक्रांत हैं । लाखों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फसलें चौपट होने की कगार पर हैं । यह मामला सिर्फ कृषि और खाद्यान्न सुरक्षा से ही जुड़ा हुआ नहीं है । भारतीय रक्षा तंत्र की सूचनाओं को किस गंभीरता के साथ केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अमल में लेती है उसकी खामियों की ओर इशारा कर रही है ।
मध्य प्रदेश के अंदरूनी हिस्सों सहित विंध्य क्षेत्र तक टिड्डियों का दल पहुंच गया है । भारत में लगभग 28 साल बाद टिड्डियों का इतना बड़ा हमला हुआ है । इसके पहले 1993 में टिड्डियों का इतना बड़ा हमला हुआ था ।मध्यप्रदेश में ही लगभग ₹8000 करोड़ रुपए की मूंग की फसल चौपट होने की कगार पर है । गांव गांव में किसान और परिजन चिलचिलाती धूप में टिड्डियों को भगाने का जतन कर रहे हैं । इस जतन में हाल-फिलहाल थाली कनस्तर, शंख और घर के बर्तन ही किसानों का सहारा बने हुए हैं।  कोरोना लॉक डाउन के चलते टिड्डियों पर असर करने वाला कीटनाशक फटाके बाजार में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है । इसलिए आशातीत सफलता सरकारी तंत्र से भी किसानों को मिलने की उम्मीद कम नजर आ रही है ।
 आखिर चूक कहां हुई है ? विश्लेषणात्मक रिपोर्ट... सामान्यतः सरकारी वेबसाइट के मुताबिक टिड्डियों का खतरा जुलाई से नवंबर माह तक ज्यादा रहता है । इसकी वजह है टिड्डियों का प्रजनन काल मानसून के दरमियान रहता है ।  जिसकी प्रजनन क्षमता की दर 20 गुना तक रहती है । इस बार टिड्डियों का दल अफ्रीकी देशों से पाकिस्तान होते हुए भारत में आया है । हालांकि कृषि विभाग सारी तैयारियां जुलाई के बाद ही तैयार रखा है बदलते पर्यावरणीय हालातों के चलते पिछले 2 साल से टिड्डियों के दल अप्रैल-मई माह में देखे गए हैं । इसके बाद भी पर्याप्त संसाधन का उपयोग ना करना सरकार की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है । 
मुख्यत: भारत के पंजाब राजस्थान और गुजरात के पाकिस्तानी सीमा से सटे क्षेत्रों में टिड्डियों के हमले ज्यादातर होते हैं । जिसके चलते पाकिस्तान राष्ट्रीय आपातकाल तक लगा चुका है । यह हमला पहली बार नहीं हुआ है । इसको लेकर भारत-पाकिस्तान की सरकार सामूहिक तौर पर रणनीति बनाकर काम करती आई है ।

 क्यों और कैसे ?... भारत के कृषि मंत्रालय के अधीन वर्ष 1946 से टिड्डी चेतावनी संगठन कार्य कर रहा है । इस संगठन का मुख्यालय फरीदाबाद में है । इस संगठन के सहयोगी के तौर पर सीमा सुरक्षा बल, रक्षा मंत्रालय, विमानन मंत्रालय ,संचार मंत्रालय ,राज्य सरकारें ,निजी विमान सेवा कंपनियां और कीटनाशक निर्माता कंपनियां मिलजुल कर काम करती है । जिस प्रकार की कार्य पद्धति का विवरण कृषि मंत्रालय के अधीन टिड्डी चेतावनी संगठन की वेबसाइट पर दिया गया है । वह इस प्रकार है सीमा सुरक्षा बल टिड्डियों के हमले की जानकारी जनसंख्या और कितने दल में हैं सहित टिड्डी चेतावनी संगठन को देगा । रक्षा मंत्रालय और संचार मंत्रालय इस कार्य के लिए संगठन और बीएसएफ को हाई फ्रिकवेंसी के वायरलेस सेट और टेलीग्राफिक नेटवर्क उपलब्ध कराएगा । इसी के साथ ही विमानन विभाग और निजी एयरक्राफ्ट कंपनियां संगठन के निर्देश पर तत्काल विमान उपलब्ध कराएगी । जिससे टिड्डियों के दल पर तत्काल कीटनाशक दवाओं का छिड़काव किया जा सके । कीटनाशक तत्काल उपलब्ध कराने के लिए कीटनाशक कंपनियों को सीधे-सीधे निर्देश दिए गए हैं । इन हालातों में एल डब्ल्यू ओ जिसे टिड्डी चेतावनी संगठन कहा जाता है राज्य सरकार के सचिवों के साथ टेलिफोनिक तौर पर सतत् संपर्क में रहेंगे । इसी के साथ ही टिड्डियों की रोकथाम के लिए अधिकारियों का एक दल साल में दो बार पाकिस्तान के अधिकारियों के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेगा । 
टिड्डियों का दल भारत की आंतरिक सीमा में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाकों में असर कर रहा है । टिड्डियों का दल राजस्थान की बाड़मेर से सटी पाकिस्तानी सीमा के रास्ते आया है । जो देश के आंतरिक हिस्सों में हवाई दूरी के हिसाब से लगभग  850 किलोमीटर अंदर तक फैल गया है । लगभग 10 दिन हो गए हैं एक जिला दूसरे-तीसरे जिले को सचेत ही कर रहा है । किसानों को चेतावनी जारी की जा रही है इस समस्या से स्वयं जूझें ।
 सवाल है कि 10 दिन में केंद्र सरकार ,राजस्थान सरकार, मध्य प्रदेश सरकार कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा पाई ?  क्या टिड्डी चेतावनी संगठन और कृषि मंत्रालय को बीएसएफ से इस बात की सूचना प्राप्त नहीं हुई थी ? अगर प्राप्त हुई थी तो उस पर अमल क्यों नहीं हुआ ?  अगर अमल हुआ था तो सरकारी उपायों को धत्ता बताकर टिड्डियों का दल आंतरिक भारत में कैसे आ गया ? 
सरकारी संगठन की कार्य पद्धति और मैदानी हालात देखकर सरकार को भविष्य के लिए सचेत होना पड़ेगा । केंद्र सरकार के अधीन पर्यावरण मंत्रालय से जुड़े रहे एक उच्च स्तर के अधिकारी ने बताया कि पर्यावरण विभाग सेटेलाइट उपग्रह के माध्यम से प्राप्त होने वाली जानकारियों के आधार पर कदम उठाता आया है । अंतरिक्ष में स्थापित रूस और अमेरिका के उपग्रह जमीनी हालातों के सूक्ष्म और सटीक जानकारियों एवं वस्तु स्थिति से अवगत कराता है । ऐसे में हमने इन संस्थाओं की जानकारियों पर अध्ययन कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले वैज्ञानिकों को स्पष्ट रूप से निर्देश दिए हुए हैं कि वातावरण में उत्पन्न होने वाली घटना और उसके आने वाले दिनों में भविष्य के परिणामों से संबंधित जानकारी 7 दिन से 1 दिन पहले तक आवश्यक तौर पर उपलब्ध कराई जाए । जिससे कड़े कदम उठाए जा सकें उन्होंने कहा कि आजकल नासा से जो मौसम की जानकारियां प्राप्त होती है वे इतनी सटीक होती है कि आने वाला तूफान किस दिन किस समय धरती के किस स्थान को छुएगा यहां तक बता देता है ।
उपरोक्त तर्कों के आधार पर और टिड्डियों के हमलों से उपजे हालातों के चलते राष्ट्रीय सूचना प्रणाली की खामियों को ठीक करने और कार्यशैली को सुधारने की आवश्यकता है । वरना हालात जीप पर सवार इल्लियां की कथा से मिलते-जुलते ही नजर आ रहे हैं ।

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