लक्ष्य से पिछड़ती भाजपा - कांग्रेस


समर्पण निधि का टारगेट पूरा करने भाजपा सरकारी अफसरों के सहारे
सदस्यता को लेकर कांग्रेस नेताओं की कसौटी दावं पर

 नाज़नीन नकवी /  खबर नेशन /Khabar Nation

हमेशा चुनावी मोड में रहने वाली भारतीय जनता पार्टी को यह झटके के समान है कि इसके नेता और कार्यकर्ता समर्पण निधि के लक्ष्य को प्राप्त करने में नाकाम सिद्ध हो रहे हैं । दूसरी ओर कांग्रेस के हालात तो और ही ज्यादा खराब नज़र आ रहे हैं । सदस्यता को लेकर चलाया जा रहा अभियान सुपर फ्लॉप साबित हो गया है। आखिर क्यों एक विश्लेषण

राजनीति की पटरी पर सरपट दौड़ने के लिए बैलेंस बनाए रखना जरूरी है। ये बैलेंस नेतृत्व का कार्य़कर्ताओं के साथ , संगठन का नेतृत्व के साथ, नेताओं का जनता के साथ होना जरूरी है। समय समय पर सियासी दल इसके लिए रणनीति तैयार कर सामने आते हैं। पिछले दिनों भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साधे। अभियान शुरू किया समर्पण निधि...देखा जाए तो इसका दोहरा लाभ पार्टी लेना चाहती थी। एक तो आर्थिक रूप से मजबूती तो वही दूसरी ओर जनता के साथ कनेक्शन।  कांग्रेस भी कुछ इसी तरह के नक्शे कदम पर चलती दिखी। कांग्रेस ने अपना कुनबा बढ़ाने का मन बनाया। शुरूआत की एमपी सदस्यता अभियान की। कांग्रेस की कोशिश कि आगामी विस चुनाव के पहले वो अपने सिपहसालार तैयार कर ले। 

टारगेट अधूरा, सपना कैसे होगा पूरा ? 

बॉलीवुड के किंग शाहरुख ने अपनी फिल्म में कहा कि किसी चीज को शिद्दत से पाने की कोशिश करो तो सारी कायनात उसे आपसे मिला देती है। शायद एमपी कांग्रेस के दिग्गजों ने 2018 में इसे सीरीयसली लिया भी। नतीजों में इसकी झमक भी दिखी। लेकिन उसके बाद अंदरुनी बनते बिगड़ते समीकरण, बयानबाजी कहीं न कहीं सामने ला देती है। कि घर में चार बर्तन में होने वाली खटपट नहीं, बल्कि घर के मुखिया की कमजोरी है और उस पर उठते सवाल भी। कभी अरुण यादव का दर्द..तो कभी अजय सिंह राहुल भैया की संगठन में कोई जिम्मेवारी न मिल पाने की टीस। जाहिर है नेता जनता के बीच नहीं तो कैसे कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़ पाएंगे और वो भी तब जब कांग्रेस विधानसभा चुनावों में अपना बेस्ट तो छोड़िए साख बचाने में भी नाकाम रही हो। यही वजह रही कि सदस्यता के लिए रखी अंतिम तारीख तक कांग्रेस 50 लाख सदस्य बनाने का टारगेट का बीस फीसदी 10 लाख के आंकड़े को भी नहीं छू सकी। पिछली बार 2011 से 2017 के बीच सदस्यता अभियान चला था। उस समय 2017 के सदस्यता अभियान में 20 लाख सदस्य बने थे और यही पार्टी ने टारगेट भी रखा था। हालांकि अधूरे टारगेट को पूरा करने की उम्मीद लगाए कांग्रेस ने एक बार फिर तारीख  बढ़ा दी। लेकिन सवाल ये कि क्या इसके लिए जी जान लगा खाटी नेता कांग्रेस के अपने कदम भी बढ़ाएंगे।

 भारतीय जनता पार्टी को यह झटके के समान
बात कांग्रेस के बाद भाजपा की भी, जो जितनी उत्साहित अपनी बेहतर परफॉर्मेंस से है उतना ही चार्ज उसे कांग्रेस की कमजोर नीतियां करती है। भाजपा क्योंकि एक फ्लो में आगे बढ़ रही है ऐसे में उसका कॉन्फिडेंट होना लाजिमी है। लिहाजा समर्पण निधि का 150 करोड़ का एक बड़ा लक्ष्य तय कर दिया गया। एक शेर भाजपा के लिए याद आता है। कि कितना बेहतर हूं मैं खुद को बेहतरीन करने को जानिब..मेरे मुकाबिल मैं खुद जो खड़ा हूं। कांग्रेस से कहीं ज्यादा एक्टिव भाजपा का मुकाबला अब दिन ब दिन खुद से होता दिख रहा है। लगातार होती चुनावों में जीत और बेहतर काम का टारगेट सामने हैं। लेकिन जनता को हर समय खुद से बांधे रखना किसी चुनौती से कम नहीं। समर्पण निधि के बड़े लक्ष्य को हासिल करने में भाजपा भी पिछड़ती दिखी है। लेकिन संगठन की बैठक में समन्वय और लक्ष्य हासिल करने को लेकर मंथन-चिंतन कर लिया गया। अब सफलता समय और कार्यकर्ताओं की मेहनत  पर निर्भर होगी । लगातार चुनावी मोड में रहने वाली भाजपा के कार्यकर्ता और नेता अत्याधिक सक्रियता की वजह से थक चुके हैं । समर्पण निधि में लक्ष्य प्राप्त ना कर पाने की एक और वजह है । पार्टी के द्वारा विभिन्न मसलों को लेकर कार्यकर्ताओं और नेताओं को तन मन से धन एकत्रीकरण अभियान में झोंक देना । लिहाजा मध्यप्रदेश के व्यापारी भी परेशान हो गए हैं । भारी भरकम राशि के समर्पण निधि के लक्ष्य को प्राप्त कर पाने में जब संगठन असफल साबित हुआ तो सरकार आगे आई। अब सरकारी अफसर समर्पण निधि अभियान में अघोषित रूप से सहयोग प्रदान कर रहे हैं । अगर भाजपा संगठन को प्राप्त होने वाले बड़े चंदे की राशियों का आकलन किया जाए तो छोटे बड़े उद्योगपति और व्यापारीयों द्वारा समर्पण निधि में सहयोग अफसरों के माध्यम से पहुंचाया गया है।
चलते-चलते
एंटरटेंटमेंट के साथ काम भी  
मध्यप्रदेश विस चुनाव में डेढ़ साल का समय बाकी है। चुनावी मोड में रहने वाली भाजपा हर कार्य़क्रम के जरिए जनता से जुड़ रही है। फिर चाहे बीमा राशि का वितरण हो। ब्याज की राशि माफ करना हो या फिर कुछ और..लेकिन कांग्रेस तमाम मुद्दों के ढेर के बावजूद कांग्रेस प्रहार करने में नाकाम सी दिख रही है। फिल्म हो या सियासत इसमें सबसे जरूरी है जनता। जिसे रिझाने के लिए जितना काम चाहिए उतना ही एंटरटेंटमेंट..अब देखना होगा कि कौन सा सियासी दल जनता की उम्मीद पर रखा उतर पाएगा।

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