अभी तो ये अंगड़ाई है,आगे और लड़ाई है...?

 

शिवराज सावधान : अब अर्जुन से अभिमन्यु बन गए हो

खबर नेशन / Khabar Nation

राजनैतिक आन्दोलन और मजदूरों के जुलूस में हमेशा "अभी तो ये अंगड़ाई है,आगे और लड़ाई है" नारा कार्यकर्ताओं और मजदूरों को जोश से भर देता है । यह नारा हमेशा सत्ता के खिलाफ विरोध में लगाया जाता रहा है । मैं पहली बार इसे सत्ता के सर्वोच्च पर बैठे सत्ताधीश के लिए माकूल मान रहा हूं । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चौथी पारी में सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन से अभिमन्यु बनते नजर आ रहे हैं । वजह वर्तमान हालातों में उनका चौतरफा दुश्मनों से घिर जाना है । डगर ख़तरों से भरी नज़र आ रही है।

गौरतलब है कि तीन माह पहले जब मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ तो खुद शिवराज भविष्य की संभावनाओं को भांप कर कह बैठे कि इस पारी में उनके अंदाज पहले से अलग नजर आएंगे । शिवराज अपने अंदाज में थे या भाजपा आलाकमान अपने अंदाज में रहे यह भविष्य के परिणामों पर निर्भर है । हाल फिलहाल शिवराज राजनीतिक बिसात पर चौतरफा घिरे हुए नजर आ रहे हैं । 

संगठन साधना मजबूरी

विगत दस वर्षों में शिवराज की सफलता का एक सबसे बड़ा कारण मध्यप्रदेश भाजपा संगठन पर उनका कब्जा होना रहा । जिस संगठन के दिशा निर्देशों को सत्ता शरणागत होकर मानती थी, वह संगठन सत्ता के शरणागत हो गया । इसका सबसे बड़ा कारण शिवराज का केन्द्र में बैठे आला नेताओं और ताकतवर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों को नजराना देकर अपने पक्ष में करना रहा । हाल फिलहाल परिस्थिति विपरीत हैं मध्यप्रदेश के संगठन पर विष्णु दत्त शर्मा पदस्थ हैं जो इन दिनों भारतीय जनता पार्टी के इतिहास की सर्वाधिक ताकतवर जोड़ी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मंसूबों को पूरा करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए हैं । गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में 2018 में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद शिवराज सिंह चौहान को पीछे धकेलने के भरपूर प्रयास किए गए । तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई । इस बीच कांग्रेस की फूट भाजपा के लिए वरदान साबित हो गई । कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन में 22 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया । केन्द्रीय नेतृत्व को मजबूरी में शिवराज को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपना पड़ी । वजह इस्तीफा दिए 22 और दो सदस्यों के निधन के कारण 24 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना है और लोकप्रियता के लिहाज से भाजपा के पास शिवराज सिंह चौहान से बड़ा चेहरा नहीं था ।

सिंधिया नीम उपर से करेला चढ़ा

कांग्रेस की राजनीति में एक बेहतर मुकाम पर रहने के बाद कांग्रेस के अन्य नेताओं पर दबाव बनाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा में भी उस मुहिम को चालू कर दिया है । समझौते के तहत सिंधिया के साथ कांग्रेस से भाजपा में इस्तीफा देकर आए विधायकों को मंत्री बनाया जाना तय था । उन्होंने मन मुताबिक मंत्री बनबाए भी लेकिन राजनीतिक निहितार्थो के चलते जिदपूर्वक उन्होंने भाजपा के तीन चार योग्य विधायकों का पत्ता कटवाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी । हाल ही में पूरे मध्यप्रदेश के सिंधिया समर्थक बड़ी तादाद में भाजपा में शामिल हुए हैं । अब इन समर्थकों का हित साधने के लिए सिंधिया भविष्य में भी शिवराज और भाजपा संगठन पर दबाव बनाते रहेंगे । जिसको लेकर यह माना जा सकता है भाजपा में वैसे ही शिवराज को दबाव में लाने वाले राजनेता नरेन्द्र सिंह तोमर ,कैलाश विजयवर्गीय,प्रभात झा , विष्णुदत्त शर्मा , नरोत्तम मिश्रा ,उमा भारती प्रहलाद पटेल ,अजय विश्नोई कम नहीं थे सिंधिया और बढ़ गये । यह ठीक वैसा ही हुआ जैसे नीम पर करेला चढ़ना ।

शिवराज से असंतुष्ट - मंत्रिमंडल में आने से रह गये कई सीनियर विधायक और उनके समर्थक राजनीतिक हालात से नाराज़ और हताश हैं । भाजपा में शिवराज के विरोधी इस हताशा और निराशा को हवा देंगे । खुद शिवराज की निजी पसंद वाले नेता गाहे-बगाहे सरकार को सांसत में डालने का काम करेंगे । शिवराज को इनसे निपटने में खासी मशक्कत करना पड़ेगी ।

विपक्ष के कड़े तेवर - सरकार गिरने से नाराज़ कांग्रेसी विधायकों की खरीद-फरोख्त को जमकर मुद्दा बना रहे हैं ।  उपचुनाव में उतरने वाले भाजपा प्रत्याशियों ने कांग्रेस शासनकाल में जमकर राजनैतिक बदले निकाले थे और जमकर भ्रष्टाचार भी किया था । जिसको लेकर जनता में खासी नाराजगी है । कांग्रेस इस बहाने सरकार को घेरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी । उपचुनाव में सकारात्मक रुख पलटने के लिए शिवराज को खासी मेहनत करना पड़ सकती है ।

आम जनता बेहाल - सरकार बनाते समय शिवराज की छवि थी लेकिन लंबे लॉक डाउन से आम जनता की आर्थिक परिस्थितियों पर विपरीत असर पड़ा है । जनता में केन्द्र के खिलाफ भी और मध्यप्रदेश सरकार के खिलाफ भी नाराजगी का भाव बना हुआ है । शिवराज को इससे भी निपटना आसान नहीं होगा ।

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