हाथ से फिसली जीत 

चूके रणनीतिकार
 

मैच विनर शिवराज और मैनेजमेंट के दिग्गजों को असफलता ?

तो क्या भाजपा भाजपा से चुनाव लड़ेगी ?

खबरनेशन / Khabarnation
 

आखिरी दम पर बाजी पलट देने के हुनर के काबिल मैच विनर जैसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। मैनेजमेंट के सहारे सत्ता पर कब्जा बनाये रखने वाले हुनरमंद। दिल से जुट कर काम करने वाले दुर्लभ कार्यकर्ता। फिर क्या वजह रही मुंगावली-कोलारस उपचुनाव भाजपा के हारने की । भाजपा हारी या हरवाई गई। विश्लेषण -
 

गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र के मुंगावली और कोलारस विधानसभा उपचुनाव के परिणाम मध्यप्रदेश की सत्ता के सेमीफायनल के तौर पर माने जा रहे ते। भारतीय जनता पार्टी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूरी ताकत सारे संसाधन झौक रखे थे, इधर क्षेत्र से कांग्रेस के सांसद महराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। कांग्रेस सफल रही दोनों जगह पर चुनाव जीत गई। जीत का अंतर कम हुआ और भाजपा के वोटों में इजाफा फिर भी मार्जिनल वोटो से हार। सबक सिंधिया को भी और सबक शिवराज को भी।

दशा-दिशा बदलेंगे चुनावी रणनीतियों की
 

सामान्यतः मध्यप्रदेश की राजनैतिक तासिर जातिगत लिहाज से न्यूनतम रही हैं पर इस बार कोशिश की इसे आजमाया जाए। परिणाम भले ही असफल भरे हो पर अक्टूबर 2018 में मध्यप्रदेश की राजनीति में जाति आधार जड़े जमा चुका होगा। जो सामाजिक और राजनैतिक विद्धेष को बढ़ावा देगा। कांग्रेस ने भी जमकर जाति कार्ड खेला तो भाजपा ने भी।

जोर अजमाईश
 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित 19 मंत्री कोलारस और मुंगावली में प्रत्यक्ष तौर पर डेरा डाले हुए थे। केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा की उपस्थिति दमदार रही। भाजपा के पार्टी पदाधिकारी और पगविधायक दिन रात एक किये रहे। कांग्रेस से जहां सिंधिया ने मुंगावली  और कोलारस नहीं छोड़ा तो पार्टी के वरिष्ठ नेता कमलनाथ, सत्यव्रत चतुर्वेदी, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अरूण यादव सहित कांग्रेस के सारे विधायकों ने सौंपे गए हिसाब से अपनी भूमिका निभाई।
 

परिणाम
 

मुंगावली में कांग्रेस के प्रत्याशी बृजेन्द्र सिंह यादव जहां 2123 वोटों से जीते वही कोलारस में कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र सिंह ने 8086 वोटों से जीत दर्ज कराई। पिछले चुनावों में जीत का अंतर कोलारस 24953 और मुंगावली में 20765 रहा था।
 

चुनाव परिणाम देखकर भले ही यह लगें कि कांग्रेस ने महज कम वोटों से जीत हासिल की हैं। लेकिन बसपा और सपा के वोट जोड़ लिए जाएं तो भाजपा को लगभग दोनों स्थानों पर 40-45 हजार वोटों का इजाफा हुआ हैं। भाजपा अगर थोड़ी सी मेहनत और रणनीति में चूक नहीं करती तो यह दोनों सीटें जीती जा सकती थी।
 

भाजपा की रणनीतिक भूल
 

कांग्रेस ने जहां इस चुनाव को माईक्रो मैनेजमेंट के सहारे लड़ते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेताओं पर चुनाव आयोग की तलवार लटकाए रखी। वहीं माईक्रो मैनेजमेंट में माहिर भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार इस मामले में चूक गए। सोशल मीडिया के प्रचार में भारी भाजपा को कांग्रेस ने सोशल मीडिया के सहारे ही मात दे दी। नगरीय प्रशासन मंत्री माया सिंह और खेल एवं युवक कल्याण मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया मतदाताओं को प्रलोभन और धमकी देते हुए पकड़ी गई। आयोग की फटकार के बाद कांग्रेस ने इसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पेज प्रमुख के सहारे कांग्रेस ने मतदाता की सूची की गड़बड़ी उजागर करवाकर चुनाव आयोग के माध्यम से अशोकनगर कलेक्टर को हटवाने में सफलता प्राप्त की। पेज प्रमुख अभी तक भारतीय जनता पार्टी ही नियुक्त करती आई थी। पहली बार कांग्रेस ने इस प्रयोग को अपनाया। इसी प्रकार आचार संहिता लागू होने के दरमियान भाजपा के बाहरी विधायक शैलेन्द्र जैन और नरेन्द्र सिंह कुशवाह को घेरने में कांग्रेस सोशल मीडिया के सहारे सफल रही। जिसके चलते आयोग ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी फटकार लगाई।
 

मंत्रियों का स्वच्छंद व्यवहार
 

उपचुनाव में तैनात सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग, नगरीय प्रशासन मंत्री माया सिंह और खेल एवं युवक कल्याण मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा, विधायक नरेन्द्र सिंह कुशवाह की बयानबाजी भाजपा को नुकसान पहुंचा गई। पिछले उपचुनावों में भी नरेन्द्र सिंह कुशवाह  की बयानबाजी के चलते भाजपा को खामियाजा उठाना पड़ा। चाहे बात अटेर की हो छिन्दवाड़ा में पूर्व मुख्यमंत्री सुन्दर लाल पटवा के उपचुनाव की। कुशवाह जहां भी जाते हैं विवाद खड़े करने में पीछे नहीं रहते हैं। अगर इन विवादों का काउंटर समय रहते कर लिया जाता तो परिणाम भाजपा के पक्ष में रह सकते थे। 
वजह-

 

इस उपचुनाव के दौरान मध्यप्रदेश में व्याप्त सरकार के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी, किसानों और सरकारी कर्मचारियों में सरकार के प्रति जबरदस्त नाराजगी, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे से उकताहर और व्यवहार में झूठ को लेकर सरकार के खिलाफ वातावरण था। यहां तक कहा जा रहा था कि इस उपचुनाव में जीत का अंतर 20 से 25 हजार वोटों तक रहेगा। इसके बावजूद लीड अगर कम हुई हैं और वह भी 40-40 हजार वोटों के इजाफे की तो सीधा सीधा इसका महत्व शिवराज को ही दिया जाना चाहिए। क्योंकि भाजपा का असंतुष्ट तबका तो चाहता ही था कि ये दोनों उपचुनाव भाजपा हारे। अब 2018 भी भाजपा को कांग्रेस से नहीं बल्कि भाजपा से ही चुनाव लड़ना हैं। 

यह बात इसलिए मौज़ू हैं क्योंकि मुंगावली और कोलारस में मतदान होने के बाद भाजपा के एक कद्दावर नेता का कहना था कि हम दोनों जगह हारेंगे। इसलिए क्योंकि अभी तक शिवराज पर लगे गम्भीर आरोपों के बाद भी अंसतुष्ट उन्हें हटाने में सफल नहीं हो पाये। और इसका असर 2018 में भी देखने को मिल सकता हैं। क्योंकि शिवराज को ऐसे ही घर बिठाया जा सकता हैं। यह बात उस कद्दावर नेता की हैं जो स्वयं भाजपा में शिवराज से असंतुष्ट नेता के तौर पर जाने जाते हैं। 
 

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