वचन पत्र से मुकरते कमलनाथ

खबर नेशन / Khabar Nation

मध्यप्रदेश में जोर-शोर से वादा कर सत्ता में आई कांग्रेस अब अपने वचन पत्र से मुकरती नजर आ रही है। इसकी शुरुआत खनिज विभाग से की गई है । हालिया कैबिनेट बैठक में नई रेत नीति को मंजूरी देते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनकी सरकार ने रेत माफिया के आगे घुटने टेक दिए हैं।

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस के घोषणापत्र जिसे वचन पत्र के तौर पर प्रचारित किया गया था के बारहवें बिन्दू में खनिज विभाग को लेकर आठ महत्वपूर्ण घोषणाएं थी । वचन पत्र में नई खनिज नीति बनाने और गौण खनिज ग्राम पंचायतों के अधिकार क्षेत्र में रखने का वचन दिया गया था । इसी के साथ ही खनिज विकास निगम के अंतर्गत आने वाले खनिजों एवं उनके खदान के आवंटन की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने, रेत खदानों के आवंटन की नई नीति बनाने, एवं रेत नीलामी को खनिज निगम से पृथक करने,रेत की ठेकेदारी प्रथा को समाप्त करने, रेत खदानों के आवंटन में सहकारिता क्षेत्र एवं वर्षों से निवास कर रहे स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने के वचन सहित कई अन्य मुद्दों को शामिल किया गया था।

गौरतलब है कि खबर नेशन ने लोकसभा चुनाव के दौरान इस बात के संकेत देते हुए  " शिवराज के नक्शे-कदम पर कमलनाथ " शीर्षक से खबर जारी करते खुलासा भी किया था ।

सर्वप्रथम रेत नीति को लेकर बनाई गई मंत्रिमंडल उपसमिति में ऐसे मंत्री को अध्यक्षता सौंप दी गई थी जिन्हें सदस्य के तौर पर भी शामिल नहीं किया जा सकता है । इस समिति का अध्यक्ष वित्त मंत्री तरुण भनोत को बनाया गया था। जिनके निकट परिजन खनिज व्यवसाय से जुड़े हुए हैं । यह पूर्णतः " कंफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट " के तहत नैतिक तौर पर बंधनकारी है ।

हालिया रेत नीति में पुनः रेत खदानों के नीलामी का निर्णय लेते हुए इस खनिज विकास निगम को सौंप दिया गया है ।

वचन पत्र में उल्लेख किया गया है कि समस्त गौड़ खनिज पंचायतों को सौंपेंगे । मध्यप्रदेश में 38 गौड खनिज पाये जाते है । जिसमें पत्थर गिट्टी,
 रेत,मार्बल, ग्रेनाइट,मुरम, आदि महत्वपूर्ण खनिज पाये जाते हैं । इन 38 गौड खनिजों में रेत खनिज पूर्व में ही भाजपा की शिवराज सरकार पंचायतों को सौंप चुकी थी । उसे तरूण भनोत की अध्यक्षता वाली समिति ने पंचायतों से वापस छीनने की अनुशंसा कर दी ।

खनिज मंत्री प्रदीप जायसवाल का कहना है कि रेत माफियाओं के दबाब में रेत नीति नहीं आई है । उल्टा सरकार के हालिया निर्णय से रेत माफिया परेशान हो गए हैं। उन्होंने कहा कि तकनीकी कारणों से पंचायतें रेत खदानों का संचालन करने में रूचि नहीं ले रही थी । वचन पत्र से मुकरने का सवाल ही नहीं उठता है।

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