बात कुछ हजम नहीं हुई शिवराज

आखिर ये नाटक...?

खबरनेशन / Khabanation

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीते दो दिन का घटनाक्रम बड़ा अबूझ भरा रहा। आखिर क्या करना चाहते थे ? बात कुछ हजम सी नहीं हो रही हैं।

22 मार्च मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिल्ली रवाना होने के पहले मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से मिले। इसके बाद स्टेट हैंगर पर भारतीय जनता पार्टी के संगठन मंत्री सुहास भगत से चर्चा। प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार फेरबदल की अटकलों का दौर शुरू। सूत्रों के अनुसार राज्यपाल को प्रदेश के ताजा राजनैतिक हालातों का ब्यौरा देते हुए भविष्य में मंत्रिमंडल विस्तार किए जाने के संकेत भी दिए लेकिन इस शर्त के साथ कि आलाकमान की अनुमति के बाद ही शपथ ग्रहण की स्थिति घोषित करेंगे। शिवराज आश्वस्त थे कि उन्हें आलाकमान अनुमति दे देगा लेकिन अनुमति नहीं मिली।

मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान को बदला जाना हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नंदु भैय्या को बनाए रखने के पक्ष में हैं या फिर कोई मनचहा अध्यक्ष जो उनकी बात को तवज्जों दें।

अपनी इस इच्छा को लेकर शिवराज एक बार फिर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के दरबार में पहुंचे। इसी के साथ ही शिवराज ने वित्त मंत्री अरूण जेटली, कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह, विदेश मंत्री सुष्मा स्वराज संगठन एवं भावांतर के मसले पर मुलाकात करने के साथ साथ पार्टी के अन्य बड़े नेताओं से भी मुलाकात की।

सूत्रों के अनुसार दोनों ही मामलों में शिवराज को मुंह की खानी पड़ी। प्रदेश अध्यक्ष के मसले पर पार्टी आलाकमान जहां दस पन्द्रह दिन का समय देने के लिए बमुश्किल राजी हुए। वहीं भावांतर के मुद्दे पर वित्त मंत्री अरूण जेटली ने किसी भी तरह की मदद देने से स्पष्ट इंकार करते हुए भावांतर योजना को हाल फिलहाल प्रदेश में लागू न करने की चेतावनी भी दे डाली।

तत्काल दिल्ली से मंत्रियों के साथ 23 मार्च को वन-टू-वन चर्चा करने का संदेश जारी कर दिया गया। इसे भी प्रदेश में मंत्रिमंडल फेरबदल और विस्तार से जोड़कर देखा गया।

23 मार्च को मुख्यमंत्री शिवराज भोपाल लौटे और कैबिनेट बैठक में किसानों के मुद्दे अल्पकालीन फसल ऋण की देय तिथी, प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिती से दिए जाने वाले अल्पावधि फसल ऋण के बेस दर में परिवर्तन और उच्च न्यायालय के कर्मचारियों की वेतनवृद्धि के साथ साथ भावांतर और चना, मसूर, सरसों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने जैसे विषयों पर निर्णय लिया गया। उक्त मुद्दों की जानकारी देने हमेशा की तरह सरकार के प्रवक्ता और जनसंपर्क मंत्रीनरोत्तम मिश्रा जानकारी देने प्रेस के सामने आए। सी.एम इस दौरान अनौपचारिक बैठक और कुछ मंत्रियों से वन टू वन चर्चा करते रहे। नरोत्तम मिश्रा की पत्रकार वार्ता के पन्द्रह बीस मिनट बाद पुनः एक मैसेज जारी किया गया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गंभीर विषय पर पत्रकारों से चर्चा करेंगे। पत्रकारों को मात्र 5 से 10 मिनट का समय दिया गया।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्याज लहसुन की खरीदी भावांतर में और चना, सरसों, मसूर की खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किए जाने के साथ 24 मार्च को शाम 7 बजे विभिन्न समाचार माध्यमों से किसानों को संदेश रूपी बात कहने की बात कह डाली।

सवाल यह हैं कि आखिर मुख्यमंत्री कहना क्या चाहते थे ? करना क्या चाहते थे ? क्या किसी राजनैतिक सूझबूझ की कमी थी ? या प्रशासनिक विफलता ?
जब कैबिनेट में यह बात तय हो गई थी तो जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा को आधी-अधुरी जानकारी के साथ क्यों भेजा गया ? क्या भावांतर के मसले पर नरोत्तम मिश्रा पूरी बात नहीं कह सकते थे ? अगर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही सरकार के अलावा स्वयं किसानों के हितैषी बनना चाहते थे तो पूरी जानकारी देने एक बार में ही क्यों नहीं आए ? मुख्यमंत्री के राजनैतिक और प्रशासनिक सलाहकार आखिर क्यों इस तरह के कदम शिवराज को उठाने पर मजबूर कर रहे हैं ? सवाल मौजूं हैं जवाब नहीं मिलेंगे इसलिए बात हजम नहीं हुई शिवराज।

 

Share:


Related Articles


Leave a Comment