वैक्सीन : तमगा देशभक्ति का... अपराध-बोध की नई परिभाषा !

 

नाज़नीन नकवी / खबर नेशन /Khabar Nation
( लेखक मध्यप्रदेश के रीजनल चैनल IND24 में एसोसिएट एडिटर हैं )

प्रेम एक भाव है..प्रेम एक आस्था है। प्रेम विश्वास है..प्रेम को प्रमाण की आवश्यकता नहीं। क्योंकि वो आपके हाव-भाव.. आपके व्यवहार में झलकता है। फिर वो प्रेम इंसान के प्रति हो या राष्ट्र के प्रति। भारत भूमि पर जन्म लेने वाला..देश से प्रेम करने वाला..शायद ही कोई ऐसा होगा.. जिसका रोम-रोम राष्ट्रगीत सुनकर न गौरान्वित होता हो। लेकिन अब बदलते वक्त के साथ इसे साबित करना पड़ रहा है। 
अब देश प्रेम को अलग अलग मापदंडों पर तौला जाता है। और आपके खरे और खोटे होने का पैमाना कोई और तय करता है। ये पैरामीटर व्यक्ति विशेष के हिसाब से बदल भी सकते हैं। 
दरअसल राष्ट्रप्रेम अब विकास है...यूं कहे कि उसका पर्यायवाची है। सब्सिडी छोड़े जाने से लेकर नोटबंदी के फैसले तक और भी बहुत कुछ। 
कोरोना विभिषिका के चक्रव्यूह से बाहर आने के बीच जूझ रहे आम आदमी को जहां वैक्सीन की दरकार है। वहां उसकी मुश्किलों को हल करने की बजाय उसे शर्मसार करने का काम किया जा रहा है। तस्वीर मप्र के निवाड़ी से सामने आई है। निवाड़ी जिले की पुलिस जागरुकता अभियान चला रही है। गले में अलग अलग पैम्पलेट लगा पुलिस वैक्सीन लगवाने वालों को एक विशेष अंदाज में तिरंगा का प्रतीक लगाकर सम्मानित कर रही है तो वहीं दूसरी ओर न लगाने वालों को डेंजर साइन के पोस्टर गले में लटका रही है..दरअसल ये मान लिया लगा है कि जो काम किसी तरह नहीं हो सकता वो राष्ट्रप्रेम से जोड़कर कराया जा सकता है।..लेकिन अभियान के जरिए लोगों को देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांटना कितना सही है। 
टीके पर टिप्पणी कितनी सही ? 
जानना होगा कि वैक्सीन न लगवाने वालों का प्रतिशत कितना है? साथ ही ये भी कि जो लोग वैक्सीन लगवाने के लिए सरकार के कोविन एप पर लगातार प्रयास के बाद भी स्लॉट नहीं ले पा रहे उनका दोष क्या ? केंद्र सरकार के सभी को मुफ्त वैक्सीन के फैसले के बाद राज्य सरकारों की निश्चिंतता का क्या ? 18 साल के ऊपर के कई लोगों को वैक्सीन का पहला डोज भी नहीं लग सका है। इंदौर में केवल दूसरे डोज ही लगाए जा सकेंगे वजह है वैक्सीन की कमी। ऐसे में आम जन को वैक्सीन न लगवाने के लिए दोषी ठहराना कितना जायज है? देशभर में वैक्सीन की कमी देखी जा रही है कई राज्यों और केंद्र के बीच इसे लेकर तकरार भी देखने को मिल रही है..
 


आइना दिखाते आंकड़े !
देश में कोरोना से बचाव के लिए तेजी से वैक्सीनेशन कराने को कहा जा रहा है। तो दूसरी तरफ कई हिस्से ऐसे भी हैं जहां अब तक लोगों ने वैक्सीन नहीं लगवाई। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में ही 47 गांव ऐसे हैं जहां अब तक एक भी व्यक्ति ने वैक्सीन नहीं लगवाई है. बैतूल के ये गांव आदिवासी बाहुल्य हैं। बुन्देलखण्ड के पिछड़े जिलों की करें तो यहां भ्रांतियों के चलते लोग कोरोना वैक्सीन लगवाने से कतरा रहे हैं।  वही अलग अलग जगह से वैक्सीन के डोज खराब होने और कालाबाजारी की खबरें सामने आईं। राजस्थान के चुरू जिले में सबसे ज्यादा कोरोना टीके की बर्बादी की बात सामने आई। 

डिजिटल और नॉन डिजिटल के बीच की खाई 
गांव में बसने वाले भारत के बारे में भी सोचिए। वैक्सीनेशन को लेकर देश में दो खेमे साफ तौर बंटे हैं, कुछ जगह पर आसानी से टीके लग रहे हैं तो कहीं वैक्सीन और रजिस्ट्रेशन के लिए कई-कई दिनों तक जद्दोजहद करनी पड़ रही है। कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सरकार को कहा था कि आपको जमीनी हालात देखने की जरूरत है और ‘डिजिटल इंडिया' की वास्तविक स्थिति को ध्यान में रखना चाहिए। 
लेकिन कमियों को दूर करने की जगह लोगों को शर्मसार कर अपनी गलती पर पर्दा डाला जा रहा है। देखना होगा कि कब खुद का गिरेबां झांका जाएगा।

Share:


Related Articles


Leave a Comment