तानाशाही , नूरा कुश्ती या अज्ञानता का पहला दिन

 

मध्यप्रदेश विधानसभा में एक पल में  बदली प्रेम की बोली तकरार में

विधानसभा अध्यक्ष निर्वाचन प्रक्रिया

खबर नेशन

मध्यप्रदेश विधानसभा का पहला दिन विधानसभा अध्यक्ष की निर्वाचन प्रक्रिया में घटे नाटकीय घटनाक्रम से हंगामा बरप गया । राजनीतिक हलकों में इसे कहीं तानाशाही तो कहीं नूरा-कुश्ती कहीं अज्ञानता के तौर पर आंका जा रहा है । सवाल यह भी है कि तो विजय शाह क्यों बन रहे बलि का बकरा ।

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचन में भारतीय जनता पार्टी ने खम्म ठोककर राजनीतिक गर्माहट बढ़ा दी थी। इस दौरान संख्या बल से आश्वस्त कांग्रेस भी घबराई हुई नजर आई है।
विधानसभा सत्र के पहले दिन कांग्रेस ने नर्मदा प्रसाद प्रजापति का विधानसभा अध्यक्ष के लिए नामांकन पत्र दाखिल करवाया था । इसके तत्काल बाद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व संसदीय मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने विजय शाह का नामांकन अध्यक्ष पद के लिए दाखिल करवा दिया। संख्या बल के लिहाज से कांग्रेस के पास कांग्रेस के 114 बसपा 2 सपा 1और चार निर्दलीय विधायको के समर्थन के साथ 121 विधायक है । भाजपा के 109 विधायक हैं । संभावना जतलाई जा रही थी गुप्त मतदान में असंतुष्ट विधायक भाजपा के पक्ष में मतदान कर सकते थे । सूत्रों के अनुसार भाजपा का यह दावा अंतिम समय में फेल हो गया । आज सदन में निर्वाचन प्रक्रिया की शुरुआत होते ही कार्यसूची में शामिल चार प्रस्ताव को विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर दीपक सक्सेना ने उल्लेख करते हुए विधानसभा अध्यक्ष की निर्वाचन प्रक्रिया पूर्ण होने की घोषणा कर दी। कार्यसूची में पांचवा प्रस्ताव शिवराज सिंह चौहान का था । जिसमें विजय शाह को विधानसभा अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव था। नियमों का उल्लेख करते हुए प्रोटेम स्पीकर ने अपनी कार्रवाई को सही बताया जिसके विरोध में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने सदन में नारेबाजी और हंगामा शुरू कर दिया । शिवराज सिंह चौहान ने प्रोटेम स्पीकर के कदम को लोकतंत्र की हत्या बताते हुए सदन का  बहिर्गमन कर दिया । इसके बाद सदन के बाहर राजभवन तक पैदल मार्च कर महामहिम राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने का निर्णय लिया गया । इसी बीच सदन में सपा विधायक द्वारा मत विभाजन की मांग करते हुए प्रोटेम स्पीकर ने इस मांग को स्वीकार कर लिया । सदन से भाजपा के विधायक गैर हाजिर थे और मत विभाजन में कांग्रेस का स्पीकर चुन लिया गया ।

आखिर जनता के साथ ये कैसा मजाक ?
सवाल खड़ा होता है कि जब भारतीय जनता पार्टी के पास बहुमत नहीं था तो फिर विजय शाह को विधानसभा अध्यक्ष चुनाव लड़ाने का फैसला क्यों किया गया ?  इसी के साथ ही यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या कार्य सूची भाजपा के विधायक शिवराज सिंह चौहान और पूर्व संसदीय मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने देखी नहीं थी । जिस में कांग्रेस के चार प्रस्ताव क्रम से थे और शिवराज सिंह चौहान का प्रस्ताव पांचवें क्रम पर था । जब सदन की संचालन प्रक्रिया के नियम 7 (4) के तहत यह प्रावधान है कि प्रथम 4 प्रस्ताव मान्य किए जाएंगे और पांचवा अमान्य किया जा सकता है तो क्या इस बात की जानकारी शिवराज और नरोत्तम को नहीं थी । आज सुबह सदन शुरू होने के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के कमरे में मुख्यमंत्री कमलनाथ संसदीय कार्य मंत्री गोविंद सिंह पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा एवं अजय विश्नोई की चर्चा हुई थी । सवाल है तो इस मुद्दे पर कोई आपत्ति पूर्व में ही क्यों नहीं उठाई गई । राजनीतिक हलकों में ऐसे नूरा कुश्ती के तौर पर लिया जा रहा है ।
आखिर विजय शाह ही क्यों ?
मध्य प्रदेश के पूर्व में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विजय शाह को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया था । मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाने की वजह एक सार्वजनिक कार्यक्रम में विजय शाह की शिवराज सिंह चौहान की धर्मपत्नी साधना सिंह के साथ किया गया एक मजाक भरी टिप्पणी थी । जिसको लेकर  शिवराज कुपित हो गए थे ।बाद में बड़े ही मान मनोबल के बाद विजय शाह को मंत्री पद से नवाजा गया । यहां यह भी सवाल खड़ा होता है कि जो विजय शाह कभी मंत्री पद के काबिल नजर नहीं आ रहे थे , उन्हें शिवराज ने विधानसभा अध्यक्ष का नामांकन फार्म क्यों भरवाया ? विजय शाह का नामांकन दाखिल कराने के दौरान शिवराज और भाजपा उन्हें बार-बार आदिवासी विधायक के तौर पर स्थापित करते नजर आए । भाजपा विजय शाह के बहाने आदिवासी कार्ड का दाव खेलना चाहती थी । जो निर्वाचन के बाद यह कहते हुए खेला गया कि कांग्रेस आदिवासी नेतृत्व को लेकर के संजीदा नहीं है ।

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