शिवराज खेलेंगे 5000 करोड़ का दॉव
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव 2018 पर खर्च होंगे लगभग 8 हजार करोड़
खबरनेशन / Khabarnation
मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव 2018 में लगभग दस हजार करोड़ रूपए का खर्च किया जाएगा। येन-केन-प्रकारेण बाजी अपने हाथ में रखने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भारतीय जनता पार्टी पॉच हजार करोड़ रूपए खर्च कर सकती हैं। चुनावी खर्च में वैध-अवैध दोनों तरीके के खर्चे शामिल हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो इस दिशा में कदम भी उठाना शुरू कर दिया हैं। अगर सरकार के क्रियाकलापों पर नजर डाली जाए तो विगत एक डेढ़ माह से शिवराज चुनावी मोड में हैं। मतदाताओं को लुभाने-मीडिया को अपने पक्ष में करने और कार्यकर्ताओं को आर्थिक लाभ पहुंचाने के जतन शुरू भी कर दिये गये हैं। अपनी इस इच्छा को पूरा करने सरकारी संसाधनों का दुरूपयोग भी शुरू कर दिया गया हैं। भाजपा और उससे जुड़े हुए नेता यह मानते हैं कि आचार संहिता के दौरान होने वाले खर्चों पर चुनाव आयोग सख्त नजर रखेगा इसलिए अभी से राजनैतिक बिसात को अपने पक्ष में कर लिया जाये।
इस मामले में कांग्रेस ने अभी चुनावी शुरूआत नहीं की हैं। लेकिन कमलनाथ के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद यह माना जा रहा हैं कि शिवराज अपने चुनावी खर्च की सीमा को और अधिक बढ़ा सकते हैं। राजनैतिक हलकों में माना जा रहा हैं कि चूंकि कमलनाथ उद्योगपति हैं और उनके उद्योग जगत से काफी घनिष्ठ संबंध हैं लिहाजा वे भी चुनावी खर्च में पीछे नहीं रहने वाले हैं। एक अनुमान के अनुासर कांग्रेस लगभग पन्द्रह सौ करोड़ रूपए तक खर्च करने की स्थिति में होगी तो ही विधानसभा चुनाव में दमदार परिस्थिती में अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाएगी।
विधानसभा चुनाव को निर्विघ्न संपन्न कराने सरकारी मशीनरी पर लगभग एक हजार करोड़ का खर्च अनुमानित माना जा रहा है। कई खर्चे तो प्रशासन की विभिन्न मदों से व्यय कर दिए जाते हैं जिसका हिसाब चुनावी खर्च में नहीं जुड़ पाता हैं।
चुनाव आचार संहिता के नियम 90 में परिवर्तन कर मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी अब 16 लाख रूपए की बजाय 28 लाख रूपए तक खर्च कर सकता हैं। विगत चुनाव में विजयी प्रत्याशियों ने औसतन 8.5 लाख रूपए खर्च किया था। जो निर्धारित सीमा का लगभग पचास प्रतिशत था। सूत्रों के अनुसार कई प्रत्याशियों ने अवैध तरीके से लगभग डेढ़ दो करोड़ रूपए तक खर्च किये थे। इस बार कई दावेदार प्रत्याशी बनने के लिए ही एक डेढ़ करोड़ रूपए सामाजिक, धार्मिक कार्यों पर खर्च कर चुके हैं। इसके अलावा भी प्रमुख दल भाजपा कांग्रेस से टिकिट लाने में सफल रहने वाले कई प्रत्याशी तो अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को करोड़ो रूपए देकर विधानसभा चुनाव का टिकिट हासिल करते हैं। पिछले चुनाव में भाजपा कांग्रेस के कई प्रत्याशियों पर पैसे देकर टिकिट खरीदने का आरोप कार्यकर्ताओं ने लगाया था। कई स्थानों पर मजबूत प्रत्याशी अपनी जीत को सुनिश्चित करने सहयोगी राजनैतिक दलों के या निर्दलीय प्रत्याशी खड़े कर उस प्रत्याशी और सहयोगी राजनैतिक दल को आर्थिक मदद करते हैं। ऐसे प्रत्याशी जातिगत समीकरणों को प्रभावित करने वाले होते हैं या फिर अपने मूल राजनैतिक दल से टिकिट ना मिलने पर बागी प्रत्याशी के तौर पर खड़े हो जाते हैं।
चुनाव के होने वाले सामान्य खर्चे कौन-कौन से हैं- चुनाव के दौरान हर पार्टी को प्रतिदिन डीजल, पेट्रोल, बैनर, होर्डिंग्स, पर्चे, और अन्य प्रचार सामग्री, वाहन किराया, टीवी और अखवारों में मार्केटिंग पर होने वाला खर्च पार्टी कार्यालय पर कार्यकर्ताओं के खाने पीने का खर्च, और कुछ मामलों में तो मतदाताओं को सीधे तौर पर नकदी भी उपलब्ध करायी जाती है और अब तो फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से भी प्रचार शुरू हो गया है| कई राजनीतिज्ञ इस बात को स्वीकार करते हैं कि इन चुनावों में मुख्य खर्च बूथ प्रबंधन (booth management) पर होता है यहाँ पर मतदान केंद्रों पर पार्टी कार्यकर्ताओं के ऊपर बहुत बड़ी मात्रा में रुपया खर्च किया जाता हैं।
I. चुनाव प्रचार के दौरान वाहनों पर खर्च = 34%
II. अभियान सामग्री पर खर्च=23%
III. सार्वजनिक जन सभाओं पर खर्च= 13%
IV. इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पर खर्च=7%
V. बैनर, होर्डिंग्स, पर्चे पर खर्च =4%
VI. चुनाव क्षेत्र भ्रमण पर खर्च =3 %
मध्यप्रदेश में विगत 2013 के विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रचार गतिविधियों में पारंपरिक एवं गैर पारंपरिक गतिविधियां शामिल हैं। इस चुनाव में चौड़े पर्दे पर प्रदर्शन और वीडियो वैन समेत प्रिंट एवं इलैक्ट्रोनिक सामग्री पर ही 600-900 करोड़ रपये खर्च हुए. सर्वेक्षण कहता हैं, डाले गए हर मत पर करीब 750 रुपये खर्च आए।
सर्वेक्षण कहता हैं कुछ निर्वाचन क्षेत्रों, जहां मुकाबला कड़ा था, मतदाताओं की संख्या और मतदाता की भूमिका को प्रभावित करने के हिसाब से लोगों के बीच 500 से लेकर 2000 रुपये तक बांटे गए। दो तिहाई मतदाताओं के हिसाब से उम्मीदवारों ने पहले से ज्यादा खर्च किए।
हाल ही में गुजरात - उत्तर प्रदेश के चुनावों में यह बात सामने आई कि विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा गुजरात-यूपी में अलग अलग लगभग 5500 करोड़ रूपए खर्च किया गया था। जिसमें से 1000-1000 करोड़ रूपए वोट के बदले नोट के तौर पर खर्च किए गए।
चुनाव आयोग की सख्ती - चुनाव आयोग चुनावों को लोकतांत्रिक तरीके से संपन्न कराने के लिए सख्ती बरतने के उपाय कर रहा हैं लेकिन यह उपाय प्रभावी नहीं हो पा रहे हैं। अब प्रत्याशी को प्रतिदिन खर्च का ब्यौरा देना होगा और इसी के साथ ही उम्मीदवार को एक चुनावी खाता भी खुलवाना होगा। हाल ही में चुनाव आयोग ने मध्यप्रदेश के जनसंपर्क मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया हैं।
हालांकि फौरी तौर पर मिश्रा को कोर्ट से राहत मिली हुई हैं। मिश्रा पर 2008 के विधानसभा चुनाव में समाचार पत्रों में पैसे देकर समाचार प्रकाशित करवाने का आरोप था। जिसे खर्चे में नहीं जोड़ा गया था।
चुनाव लड़ने की लागत बढ़ने के क्या नुकसान हैं?- भरत का सुप्रीम कोर्ट भी इस बात पर सख्त नाराज हैं कि भारत में चुनाव लड़ने की लागत साल दर साल बढती ही जा रही हैं। इसका सबसे बुरा असर उन प्रत्याशियों पर पड़ता हैं जो कि गरीब हैंं लेकिन जनता की सेवा सच्चे मन से करना चाहते हैंं परन्तु अधिक रुपया नही होने के कारण चुनाव में अपना प्रचार लोगों तक नही पहुंचा पाते हैं फलस्वरूप ऐसे लोग चुनाव नही जीत पाते हैं और जनता के प्रतिनिधि ऐसे लोग बन जाते हैं जो कि जनता की समस्याओं के प्रति बिलकुल भी गंभीर नही होते हैं। इसलिये अब भारत के चुनावों को money, muscles and mind का संयोजन कहा जाने लगा हैं।