शिवराज, सिंधिया और कमलनाथ के मंत्रियों की सरकारी बंगलों से बेदखली , वजह?


ना हममें संवेदना है और ना तुमको नियमों से चलने की आदत
मध्यप्रदेश के सरकारी बंगलों से पूर्व मंत्रियों की बेदखली कितनी उचित और अनुचित ?
खबर नेशन /Khabar Nation

कोरोना लॉक डाउन 4.0 देश की जनता घरों में बंद है और मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में राजनीति चरम पर । मुद्दा भोपाल के सरकारी बंगलों का है। जो कांग्रेस शासनकाल में मंत्रियों को आवंटित हुए थे । हालिया शिवराज सरकार ने इन बंगलों को खाली कराने की कवायद शुरू कर दी है । पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोत के बंगले को सील कर दिया गया है । पन्द्रह साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस के मंत्रियों ने दिल खोलकर इन बंगलों पर निर्माण कार्य और साज सज्जा कराई थी । अधिकांश मंत्रियों ने अपने बेहतर भविष्य के लिए वास्तु अनुरूप निर्माण कार्य कराए थे,इन विधायकों का तो नहीं पर कमलनाथ सरकार का ही भविष्य खत्म हो गया ।एकाध मंत्री तो अपने नवसुसज्जित बंगलों में प्रवेश  ही नहीं पाए।
बहरहाल क्या इन मंत्रियों को सरकार जाने के बाद इन बंगलों में रहने का अधिकार है ?
आखिर सरकार को इन बंगलों को खाली कराने की इतनी जल्दी क्या पड़ गई ? जब मध्यप्रदेश का पूर्ण मंत्रिमंडल आकार ही नहीं ले पाया है ?
आखिर विपक्षी दल के रसूखदार नेता किस आधार पर लंबे समय तक इन बंगलों में रहते आए हैं ?
अगर नैतिकता की बात करें तो सरकार बदलने के बाद इन मंत्रियों को सरकारी बंगलों में रहने का अधिकार नहीं है । इसकी वजह है कि राजधानी में सरकारी आवासों की कमी रहती है । जब भी नई सरकार बनती है तो उसके मंत्रियों को आवास की आवश्यकता होती है । जो इनके खाली कराने पर ही पूरी की जा सकती है । अगर नैतिकता की बात करें तो हाल ही में एक बेहतर उदाहरण स्थापित किया था मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के पूर्व सांसद आलोक संजर ने जिन्होंने लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम आने के तत्काल बाद उन्हें आवंटित सरकारी आवास खाली कर दिया ।
कांग्रेस प्रवक्ता अविनाश बुंदेला के अनुसार नियमत: सरकार भी पूर्व मंत्रियों से 90 दिन के भीतर आवास खाली नहीं करवा सकती है । इस बीच अगर इन बंगलों में रहने वाले नेता कुछ अतिरिक्त समय की मांग करते हैं तो यह मुख्यमंत्री के विवेक पर निर्भर करता है कि वे उन्हें इसमें रहने दें या नहीं ।
अब बात सरकार की आखिर सरकार को ऐसी कौन सी अहम आवश्यकता आ पड़ी कि इन बंगलों को ताबड़तोड़ खाली करवाना पड़ रहा है । जबकि मध्यप्रदेश के मंत्रिमंडल का पूर्ण गठन भी नहीं हुआ है । कांग्रेस शासनकाल में भाजपा के कई कद्दावर नेता और भाजपा शासनकाल में कांग्रेस के कई कद्दावर नेता पद से हटने के बाद सरकारी बंगलों में रहते आए हैं । सरकारी बंगलों में रहने की आजादी राजनैतिक सौजन्यतावश प्रदान की जाती थी । जिसका दूसरा नाम सौदेबाजी कहा जाता है । विपक्ष के प्रमुख नेताओं और सत्ता शीर्ष के गठजोड़ की अनेक कहानियां राजनैतिक वीथिकाओं में सुनी जाती रही है । आंशिक बहुमत के आधार पर बनी भाजपा को चौबीस सीटों पर विधानसभा उपचुनाव में जाना है । ऐसे में यह कदम नयी राजनैतिक दोस्ती के लिए मुफीद माना जा सकता है । इसके अलावा भी एक वजह और नज़र आती है ।
विदित हो कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद सरकारी बंगलों को लेकर काफी खींचतान मची थी । उस दौरान तब कांग्रेस के बड़े और वर्तमान में भाजपा के चमकदार चेहरों में शुमार नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी भोपाल में एक अदद बंगले की गुहार मुख्यमंत्री कमलनाथ से लगाई थी । चिन्हित बंगला चार इमली का था जिसमें पहले भाजपा के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह रहा करते थे । उक्त बंगला सिंधिया को अलाट होते होते कमलनाथ के सांसद पुत्र नकुलनाथ को अलाट हो गया । सड़क पर उतरने की तनातनी कहीं कमलनाथ गुट को ही सड़क पर लाने की तो नहीं । हो सकता है शिवराज सरकार सिंधिया गुट की प्रसन्नता के लिए यह कदम उठा रहा हो ।

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