कांग्रेस में समाजवाद की उठती लहर,निशाने पर 'साम्राज्यवाद"
खबर नेशन / Khabar Nation
अर्थात/ समाजवादी 'दर्शन" का अचानक कांग्रेस के भीतर बेखौफ उभरना भले ही पार्टी के भीतर किसी नई 'क्रांति" की इब्तिदा नहीं है, लेकिन यह तात्कालिक परिस्थितियों में वैचारिक आधार पर 'संघर्ष" का सूत्रपात जरूर नजर आता है। दरअसल समाजवादी विचारधाारा के कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री राजा पटैरिया अपनी अटपटी और अतार्किक भाषणबाजी से कानूनी शिकंजे में हैं। इधर कांग्रेस के ही बहुत पुराने खांटी समाजवादी व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविंद सिंह के मन में पटैरिया के प्रति सहानुभूति का सोता फूट पड़ा है। यह बाकी हालातों में तो ठीक था लेकिन 'डाक्साब" तब फट पड़े हैं, जबकि कांग्रेस के ताकतवर प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने पटैरिया के मुताल्लिक 'एक फैसला" ले रखा है। पटैरिया के बयान से किनारा कर लिया गया है, उन पर कांग्रेस से निष्कासन की तलवार लटका दी गई है। वे जेल में हैं और कमलनाथ ने उनसे पीएम नरेंद्र मोदी को लक्ष्य करने दिये गये आपत्तिजनक भाषण पर तीन दिन के भीतर स्पष्टीकरण देने को कहा है। पटैरिया के मामले के कानूनी पहलू चाहें जो करवटें लें, लेकिन राजनीतिक पहलुओं पर काफी सरगोशी हो रही है। डा गोविंद सिंह ने अपने हाइकमान के मत को प्रकारांतर से गैरजरूरी बताकर मन से और दल से समाजवादी नजरिये को पुख्तगी से रख दिया है। हालांकि पटैरिया की वैचारिक दोस्ती डॉक्साब के अलावा ज कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय कई समाजवादी विचार के नेताओं से ज्यादा गहरी देखी जाती रही है। माना जा रहा है कि डॉक्साब ने तीन वजहों से पटैरिया के साथ हो रही 'राजनीतिक नाइंसाफी" पर आवाज उठाई है। यह है- अपना दर्शन, दलीय भावना और राजनीतिक तकाजे।
कांग्रेस के भीतर उठती इस नयी वैचारिक हवा के साथ कुछ बातें भी बहने लगी हैं। डॉक्साब यदि पटैरिया को लेकर मजबूती से मप्र पर दो दशक से शासन कर रही भाजपा सरकार से भी भिड़ रहे हैं तो अपने दल के 'नाथ" से भी। यानि 'साम्राज्यवाद" के खिलाफ उनके औचक तेवर और नए कलेवर वाले 'संघर्ष" के मूल में समाजवाद का वह बीज है जो 'बुर्जुआई प्रभुत्व" के सामने खड़ा हो जाता है। बहरहाल, यह संघर्ष भी उस वक्त उभरा है जब विधानसभा चुनाव महज दस महीने दूर हैं और कांग्रेस के भीतर नई व चुनावी जमावट होने वाली है। डॉक्साब भाजपा के धुर विरोधी तो हैं ही, अब कांग्रेस में भी नयी आवाज बन रहे हैं। हाल के अर्से में कई बार ऐसा हुआ जब कई नेता-विधायक कुछ मामलों में 'अकेले" पड़ गए। डाक्साब के पुराने साथी कहते हैं कि वे विचारधारा व दोस्तों के लिये हर जोखिम ले लेते हैं। बहरहाल जब डाक्साब बार-बार कहते हैं कि पटैरिया के उस भाषण में -इन द सेंस, शब्द पर भी गौर किया जाए, तो यह 'इन द सेंस" खुद उनके तेवरों में भी पढ़ा जाना जरूरी लगता है।
वरिष्ठ पत्रकार आशीष दुबे की कलम से साभार दोपहर मेट्रो
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