मध्यप्रदेश पुलिस के डी जी पी सुधीर सक्सेना के साथ यह जुल्म क्यों ?

मुख्यमंत्री की नाराज़गी या वजह कुछ और

गौरव चतुर्वेदी/ खबर नेशन/Khabar Nation

मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक सुधीर सक्सेना का विधिवत आदेश छह माह से अटका हुआ है। मध्यप्रदेश सरकार ने श्री सक्सेना को डीजीपी नियुक्त कर दिया था लेकिन उनका  अप्रूवल आदेश अभी तक जारी नहीं हुआ है। सूत्रों के अनुसार मामला मुख्यमंत्री सचिवालय में अटका हुआ है। आदेश होल्ड करने की वजह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अरुचि है या तकनीकी यह आदेश जारी होने के बाद ही पता चल सकेगा।

हालांकि मध्य प्रदेश के नए डीजीपी की रेस में सक्सेना के अलावा पवन जैन और राजीव टंडन के नाम शामिल थे। इनमें से सक्सेना के नाम पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सहमति दी थी।

सूत्रों के अनुसार केन्दू से अप्रूवल आ चुका है पर मुख्यमंत्री ने इस अप्रूवल को अभी तक मंजूरी नहीं दी है। संभावना जताई जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट की दो साल से पहले तबादला या हटाएं जाने की रोक की गाइड लाइन के चलते डीजीपी का आदेश जारी नहीं किया जा रहा है।इसके चलते डी जी पी सुधीर सक्सेना अपनी मनपसंद टीम नहीं बना पा रहे हैं।

पुलिस पर राजनीतिक दबाव में काम करने के आरोप लगते रहे हैं। यहां तक कि डीजीपी भी सत्ताधारी दल के आगे नतमस्तक दिखते हैं। कई बार बदले की राजनीति के तहत विरोधी दलों के उत्पीड़न में भी पुलिस का औजार की तरह इस्तेमाल होता है। इसी सूरत को बदलने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक पुलिस सुधार का आदेश दिया था। ठीक 15 साल पहले 22 सितंबर 2006 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में 7 मुख्य निर्देश दिए थे

सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले पर अब तक पूरी तरह अमल नहीं हुआ है। पुलिस की छवि 'पब्लिक पुलिस' की बने और वह राजनीतिक दबावों से मुक्त हो इसके लिए बड़े सुधारों की दरकार है। राजनीतिक दबाव का आलम यह है कि नेता बड़े पुलिस अधिकारियों तक को 'औकात दिखाने', 'वर्दी उतारने' जैसी धमकियां दे देते हैं। सांसद, विधायक तो दूर की बात, छुटभैये नेता तक एसएसओ को धमका देते हैं। नेता अगर सांसद या विधायक है तब तो उसे जैसे पुलिस अफसरों को बात-बात पर धमकाने का जैसे लाइसेंस मिल गया है।

सुप्रीम कोर्ट का सबसे पहला और अहम निर्देश डीजीपी की नियुक्ति को लेकर था। यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन (UPSC) की तरफ से 3 सीनियरमोस्ट आईपीएस अधिकारियों के पैनल से ही किसी एक को डीजीपी बनाया जा सकता है। इसका मकसद कुछ ही महीनों में रिटायर होने रहे पसंदीदा आईपीएस अफसर को एक्सटेंशन देकर डीजीपी बनाने के ट्रेंड पर रोक लगाना था।

फैसले की दूसरी सबसे अहम बात अधिकारियों के लिए एक न्यूनतम तय कार्यकाल तय करना था ताकि राजनीतिक दखल और दबाव कम से कम हो। फिक्स्ड कार्यकाल से अधिकारी निश्चिंत रहेंगे कि कोई नेता बीच कार्यकाल में ही उनका तबादला नहीं करा सकेगा।

पुलिस राजनीतिक दबाव की एक बड़ी वजह ट्रांसफर-पोस्टिंग में राजनीतिक दखल का होना है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस इस्टेब्लिशमेंट बोर्ड (PEB) बनाने का निर्देश दिया, जिसमें डीजीपी और दूसरे वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे। डीएसपी रैंक से नीचे के सभी अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का PEB के स्तर पर हो। डीएसपी और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों के भी तबादले को लेकर PEB के प्रस्तावों को अहमियत देने का निर्देश था।

 

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गौरव चतुर्वेदी
खबर नेशन
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