शोभा ओझा सिलेक्टर एण्ड डिक्टेटर
खबर नेशन / Khabarnation
मध्य प्रदेश की राजनीति में इन दिनों शोभा ओझा का नाम बढ़ा चर्चित है। शोभा ओझा कहने को तो कांग्रेस मीडिया सेल की चेयर पर्सन है, लेकिन सुरेश पचौरी की अत्यंत करीबी मानी जाती हैं। पचौरी की रहमों करम पर नियुक्त ओझा अपने आप को मुख्यमंत्री कमलनाथ का खास बताने से नहीं चूकती है । हाल ही में शोभा ओझा ने एक फरमान जारी किया कि मीडिया चैनलों पर जिसे हम कहते हैं इलेक्ट्रॉनिक चैनल उसमें वहीं पत्रकार बैठेंगे जिनको वह पसंद करती हैं । यह फरमान मुख्यमंत्री कमलनाथ का है या किसी और नेता का, लेकिन कांग्रेस सरकार में अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाने की यह परंपरा प्रारंभ हो रही है क्या ? इस पर सवाल खड़े होना शुरू हो गये हैं ।
इससे पूर्व भी अगर कालांतर में जाकर देखा जाए तो वामपंथियों पर भी प्रतिबंध लगा था, लेकिन ऐसा प्रतिबंध नहीं था। जैसा आज मध्य प्रदेश में परिलक्षित हो रहा है। भाजपा सरकार में भी ऐसा नहीं हुआ। शिवराज सरकार कहें या मोदी सरकार हो, पत्रकारों की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाने की चेष्टा देखने को तो नहीं मिली है। उदाहरण के तौर पर रविश कुमार, हरिशंकर व्यास, वेद प्रताप वैदिक जैसे तमाम कहें या ऐसे कई सारे पत्रकार हैं जिन्होंने सत्ता और विपक्ष को अपनी लेखनी के माध्यम से सीख और समझ बताई और बताते चले आ रहे हैं। लेकिन इस बार मध्य प्रदेश की राजनीति में यह रणनीति पत्रकारों को लेकर न्याय संगत नहीं मानी जा रही है। पत्रकार अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करते समय बहुत अच्छी तरह से जानता है कि वह जो बोल रहा है या कह रहा है उसके मायने क्या है?
राजनीतिक दलों को इससे ऊपर उठना चाहिए किसी की अभिव्यक्ति पर अगर आप अपनी सोच या अपने विचार थोपना चाहते हैं तो क्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सवालिया निशान नहीं होगा?
बात की जाए पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक की तो सरकार रहने के दौरान इन नेताओं ने पत्रकारों पर दमन चक्र नहीं चलाया । शोभा ओझा ने किस मानसिकता या किसके कहने पर यह फरमान जारी किया है, यह सोचने वाली बात है । जिन पत्रकारों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही जा रही है। उन्हें राष्ट्रवादी विचारधारा के चलते भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा हुआ माना जा रहा है । उनकी आवाज दबाई जा सकती है लेकिन कलम को तोड़ा नहीं जा सकता और कलम तोड़ने का काम कम से कम कांग्रेस की सरकारों में बैठे हुए लोगों को तो नहीं करना चाहिए ।
दिग्विजय के खिलाफ भी चला चुकी हैं मुहिम
कांग्रेस के भोपाल से लोकसभा प्रत्याशी और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ भी अपने समर्थकों के माध्यम से शोभा ओझा दुष्प्रचार की मुहिम चला चुकी हैं। जब दिग्विजय सिंह नर्मदा परिक्रमा के दौरान मध्यप्रदेश में वापस लौटे थे और परिक्रमा अंतिम दौर में थी तब एक पुराने मामले को उछालकर दिग्विजय सिंह की प्रतिष्ठा बिगाड़ने का काम किया गया था ।
इंदौर में संघवी के पक्ष में काम करने वाले समर्थकों से नाराज़
इंदौर लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी पंकज संघवी के पक्ष में काम करने वाले समर्थकों पर शोभा ओझा इन दिनों अपना गुस्सा उतार रही है।ये समर्थक खासकर विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 5 के हैं , जहां से शोभा ओझा विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं और वे चुनाव हार गई थी।