सुमित्रा ताई...इतने भी सीधे नहीं मोदी और शाह


क्या होगा ताई सुमित्रा महाजन के बलिदान के प्रयासों का परिणाम ऐ
 ताई गलत या सलाहकार गलत या फिर मोदी-शाह की गलती
खबर नेशन / Khabar Nation
भाजपा ने आज दिनांक तक इंदौर से अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। यह अनिर्णय की स्थिति क्यों है ? संभव है कि पार्टी को निर्णय लेने में संकोच हो रहा है, हांलांकि मैंने पार्टी के वरिष्ठों से इस संदर्भ में बहुत पहले ही चर्चा की थी और निर्णय उन्हीं पर छोड़ा था। लगता है उनके मन में अब भी कुछ असमंजस है। इसलिए मैं यह घोषणा करती हूं कि मुझे अब लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना है। पार्टी अपना निर्णय मुक्त मन से नि: संकोच होकर करें। पार्टी जल्द ही अपना निर्णय करें, जिससे आने वाले दिनों में सभी को काम करने में सुविधा होगी और असमंजस की स्थिति समाप्त होगी।
सुमित्रा महाजन 

देश की सर्वोच्च संस्था लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन ने शुक्रवार को चुनाव ना लड़ने की घोषणा संबंधी पत्र संगठन को लिखते हुए देश की राजनीति में भूचाल ला दिया। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के लगभग 18 लोकसभा क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं । इंदौर को लेकर होल्ड की स्थिति निर्मित बनी हुई है । हमेशा से भारतीय जनता पार्टी की पहली सूची में ही इंदौर का उम्मीदवार घोषित करने की परंपरा रही है। ताई के पत्र लिखते ही इंदौर भाजपा लामबंद होने लगी और आज ताई के निवास पर सारे कार्यकर्ता एकत्रित होकर ताई से चुनाव मैदान में डटे रहने का आग्रह करने जा रहे हैं । गौरतलब है कि ताई इंदौर से 8 बार की सांसद है और लोकसभा की वरिष्ठतम सदस्य हैं । देश की राजनीति में साफ-सुथरी और शालीन राजनीति के पर्याय के रूप में जाने जाने वाली ताई का यह कदम भी एक प्रकार से शालीन ही नजर आ रहा है । लेकिन राजनीतिक हलकों में इसे अलग अलग नजरिए से देखा जा रहा है । कोई इसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के दबाव के चलते रणनीति के तौर पर बता रहा है ।तो कोई ताई के आहत और व्यथित होकर पत्र लिखने की बात कर रहा है। बताया जाता है कि भारतीय जनता पार्टी ने इस बार 75 पार नेताओं के टिकट ना देने का फार्मूला तय किया है। जिसके चलते पहले लालकृष्ण आडवाणी मुरली मनोहर जोशी का टिकट काटा गया । अब इस सूची में नया नाम सुमित्रा महाजन ताई के तौर पर सामने आ रहा था। हालांकि ताई लोकसभा की स्पीकर भी है ।इसलिए उनके नाम पर भाजपा सोच समझ कर विचार करना चाहती है। लेकिन जो हालात बन रहे हैं उसमें इस बात के पुख्ता संकेत है कि शायद ताई इस बार इंदौर से चुनाव नहीं लड़ेगी । आखिर असल वजह क्या है ?क्या पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के इशारे पर ताई ने पत्र लिखा है? या फिर ताई ने स्वयं यह पत्र लिखकर पार्टी को दवाब में लाने का काम किया है । कहीं यह उन वरिष्ठ नेताओं की सलाह तो नहीं जिन की टिकट पार्टी पूर्व में काट चुकी है ।और वे अब ताई के बहाने मोदी और शाह के खिलाफ लामबंद होने की कोशिश कर रहे हैं ।बहरहाल जो भी हो स्थिति रोचक बन गई है ।और देखना है की पार्टी ताई को टिकट देती है या नहीं ।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व मोदी और शाह इतने सीधे भी नहीं है कि ताई के इस कदम को ना समझ पाए। इसलिए भी मामला रोचक रहने की संभावना है। चलते चलते एक छोटी सी कहानी जो भाजपा की हालत को बयां कर रहे हैं। एक गांव में बारात जाने को तैयार खड़ी थी। दूल्हा एवं उसके साथी इस बात पर अड़े थे कि बारात में कोई बुजुर्ग नहीं जाएगा। इसकी वजह सिर्फ इतनी थी की युवा अपनी मस्ती में किसी भी प्रकार का खलल नहीं चाहते थे ।यहां तक कि युवाओं ने दूल्हे के पिता को भी बारात में ले जाने से मना कर दिया ।  एक बुजुर्ग इस बात पर अड़ गए कि वे हर हाल में बारात में जाएंगे ।दूल्हा और उसके साथी बुजुर्गों को इस शर्त पर ले गए कि बुजुर्ग एक बक्से में बंद रहेंगे । बुजुर्ग की शर्त के अनुसार मुसीबत आने पर वे उनकी मदद करेंगे। वधु के घर बारात में किसी बुजुर्ग को ना देख कर गांव वालों को अचरज हुआ। लेकिन उन्होंने मुहूर्त के अनुसार अपनी परंपराएं पूरी की ।जब बारात को भोजन कराने का समय आया तो वधू पक्ष के लोग इस बात पर अड़ गए कि बारातियों के हाथ में बांस की खप्पचिंया बांध दी जाएंगी और उसके बाद उन्हें बिना हाथ मोड़े भोजन करना होगा । बाराती परेशान तभी उन्हें बक्से में बंद बुजुर्ग की याद आई तो वे भागे भागे बुजुर्ग के पास पहुंचे । बुजुर्ग ने कहा कि कुछ मत करो पंगत में आमने सामने बैठो और एक दूसरे को खाना खिलाओ । बारात को खाना खाते देख कर वधू पक्ष के लोगों ने खाना बीच में रोक दिया ।और यह पूछा कि यह तो किसी बुजुर्ग ने ही  बताया होगा।हो ना हो इस बारात में एक बुजुर्ग जरूर है । इस कहानी का सार सिर्फ इतना है कि कहीं यह बुजुर्ग ताई कोम मददगार तो नहीं।  या फिर मोदी-शाह  उन बारातियों की तरह है । जो अपने साथ बुजुर्ग को ले जाना नहीं चाहते। 

 

 एक बात तो तय हो गई कि सुमित्रा महाजन ने यह पत्र लिखकर अपने दोनों हाथों में लड्डू रखने का जतन कर डाला है। अगर पार्टी टिकट काट देती है तो वे बलिदानी की श्रेणी में आ जाएंगी और अगर टिकट देती है तो जैसा वे या उनके सलाहकार चाहते थे वैसा हो जाएगा। लेकिन जैसा कि शीर्षक में मैंने लिखा है कि सुमित्रा ताई मोदी और शाह इतने सीधे भी नहीं। तो माना जा सकता है कि निर्णय रोचक ही होगा।

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