व्यावसायिक लोन के नाम पर जिला सहकारी केंद्रीय बैंक होशंगाबाद के सौ करोड़ डकार गए राजनेता -व्यापारी

 

प्रशासक बन कलेक्टर ने ठानी वसूलेंगे डूबत ऋण

शिवमोहन सिंह / होशंगाबाद / खबर नेशन / Khabar Nation

नर्मदा पुरम । बिन सहकार नहीं उद्धार की तर्ज पर मध्यप्रदेश में शुरू हुए सहकारी आंदोलन का राजनीतिज्ञों ने अपने अपने हिसाब से उसका कैसा अर्थ निकाला इसका सबसे अच्छा उदाहरण तत्कालीन होशंगाबाद जिला सहकारी केंद्रीय बैंक का दोहन है । अब कलेक्टर नर्मदा पुरम  द्वारा इस बैंक का प्रशासक बनने के बाद बैंक के  हित में कड़ा संदेश देने के बाद बैंक का दोहन करने वालों की परतें अब धीरे धीरे खुलेगी। वैसे शासन ने इस बैंक की स्थापना किसानों के कल्याण के लिए की थी लेकिन राजनीतिज्ञों की पंजों में फंसी हुई यह बैंक भी जिला भूमि विकास बैंक की तर्ज पर अपना अस्तित्व खोने की तैयारी करने लगी थी । ज्ञातव्य हो कि जिला सहकारी भूमि विकास बैंक का गठन भी बिन सहकार नहीं उद्धार की तर्ज पर किया गया था लेकिन यह बैंक भी बाहुबलियों के आगोश में फङफङाते हुए दम तोड़ चुकी है । जिसका खामियाजा आम किसानों को उठाना पड़ रहा है।  यदि सरकार अपनी राजनीतिक मजबूरियों को दरकिनार करते हुए कुछ सख्त कदम उठाती तो किसानों की इस बैंक को भी बचाया जा सकता था। 
 खैर देर आयद दुरुस्त आयद की तर्ज पर जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के प्रशासक कलेक्टर होशंगाबाद नीरज सिंह द्वारा निरंतर घाटे की ओर बढ़ रही इस बैंक को बचाने के प्रयास प्रारंभ कर दिए गए हैं । यदि धरातल पर यह प्रयास फलीभूत हुए तो किसानों की इस बैंक को जीवनदान मिल सकता है।  भारतीय किसान संघ समय-समय पर ज्ञापनों  के माध्यम से निरंतर प्रशासन का ध्यान इस ओर आकर्षित कर रहा था और मांग कर रहा था की इस बैंक को डूबने मैं महत्वपूर्ण कारक साबित हो रहे उस ऋण को जो किसानों की बैंक से राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए व्यावसायिक लोन के नाम पर राजनीतिज्ञों और प्रभावशाली लोगों को बड़ी बेदर्दी के साथ बांट दिया गया था । उसे सख्ती के साथ वसूल किया जाए लेकिन बिन सहकार नहीं उद्धार के नाम पर सिर्फ अपना उद्धार करने वालों ने इसको कभी गंभीरता के साथ नहीं लिया और बैंक शनै शनै बांटे गए व्यवसायिक लोन के कारण दम तोड़ने की कगार पर पहुंच गई है। व्यवसायिक लोन की लगभग एक अरब की राशि यदि बैंक को वापस प्राप्त हो जाती है तो बैंक की आर्थिक स्थिति में तो सुधार होगा ही साथ ही यह प्रकरण प्रदेश में एक नजीर का काम भी करेगा।  क्योंकि अमूमन मध्य प्रदेश की सहकारी बैंकों की यही हालत है । क्योंकि राजनीतिज्ञों बाहुबलियों के आगोश में जकड़ी हुई इन बैंकों का दोहन अपने निजी स्वार्थ बस करते हुए उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया गया है । सुशासन की स्थापना के परिपेक्ष्य में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चाहिए कि नर्मदा पुरम कलेक्टर की ङूबत खाते ऋण की सख्ती के साथ वसूली योजना को पूरे प्रदेश में लागू करें । इसके साथ ही डूबतं खाता लोन के अभिशाप के कारण समाप्त हुई भूमि विकास बैंक के ऋणी तथाकथित खातेदारों से भी शक्ति के साथ वसूली प्रारंभ की जाए । वहीं भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रामभरोस वासोदिया ने किसान हित में उठाए गए नर्मदा पुरम कलेक्टर नीरज सिंह के इस कदम की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए आशा व्यक्त की है कि उनके प्रशासनिक काल में बैंक किसान हित में निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर होगी।

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गौरव चतुर्वेदी
खबर नेशन
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