किसानों का शोषण..... केन्द्र और राज्य सरकार की आय पर डाका...भू-भवन माफियाओं को खुली छूट.....पंजीयन विभाग के अधिकारियों द्वारा अवैध उगाही

 

मध्यप्रदेश में गाइड लाइन घोटाला

भू-भवन माफिया की गिरफ्त में सरकार

केन्द्र और राज्य के अरबों रुपए की कर चोरी

गौरव चतुर्वेदी / खबर नेशन / Khabar Nation

देश में पेट्रोल-डीजल , सब्जी अनाज , कपड़े , इलेक्ट्रॉनिक आइटम भवन निर्माण सामग्री हर साल महंगे हो रहे हैं। मंहगाई की दर लगभग आठ प्रतिशत के आसपास है। इसके बावजूद मध्यप्रदेश का पंजीयन एवं मुद्रांक शुल्क विभाग अपनी गाइड लाइन को वर्षो से स्थिर रखे हुए हैं।
जिसके चलते मध्यप्रदेश के किसानों का शोषण हो रहा है। इसी के साथ ही केन्द्र और राज्य सरकार को मिलने वाले राजस्व पर जबरदस्त डाका डाला जा रहा है। इस डाके की खुली लूट भू-भवन माफिया कर रहे। इस सबके पीछे पंजीयन एवं मुद्रांक शुल्क विभाग के अधिकारियों द्वारा अवैध उगाही किया जाना है।

हाल ही में मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों से जिला मूल्यांकन समिति द्वारा गाइड लाइन को तैयार कर भोपाल भेजा गया है। इसी बीच बिल्डर और कालोनाइजरों की एक लॉबी ने उच्च अधिकारियों एवं राजनेताओं से मिलकर गाइड लाइन में अचल संपत्तियों के भाव ना बढ़ाने को लेकर कवायद की है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भोपाल में बैठे अधिकारी जिलों में पदस्थ अधिकारियों को फोन पर गाइड लाइन परिवर्तित करने के मौखिक निर्देश दे रहे हैं। 

कैसे तैयार होती है गाइड लाइन
कलेक्टर की अध्यक्षता में पंजीयन एवं मुद्रांक शुल्क विभाग , राजस्व , और नगरीय निकायों के अधिकारियों की समिति बाजार के वास्तविक मूल्य के आधार पर गाइड लाइन तैयार करती है। वास्तविक मूल्य में चाहे किसी क्षेत्र में बाजार मूल्य कम हो या ज्यादा शामिल किया जाता है। पूर्व में आई जी के पी सिंह ने इंदौर के एक क्षेत्र में 200 प्रतिशत तक दर बढ़ाई थी।

किसानों के साथ छल

कभी सड़क तो कभी अस्पताल, स्कूल,बांध, औधोगिक क्षेत्र , सरकारी आवासीय कालोनी,  तालाब के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहित की जाती है। पंजीयन एवं मुद्रांक शुल्क विभाग द्वारा उक्त क्षेत्र की गाइड लाइन के अनुसार किसानों को भुगतान किया जाता है। न्यायालयीन प्रक्रिया में किसान और सरकार दोनों का काफी वक्त बर्बाद हो जाता है।


भू-भवन माफिया की गिरफ्त में सरकार

खासकर महानगरों से जो प्रस्ताव तैयार करवाए जा रहे हैं उनमें काफी झोल नजर आ रहा है। सरकारी स्कीमों और स्कीमों से मुक्त कालोनियों की दरों में जबरदस्त फर्क नजर आ रहा है। उदाहरण बतौर इंदौर के प्रस्ताव पर जो आपत्तियां आई हैं उनमें प्रमुख तौर पर निम्न हैं

मास्टर प्लान में शामिल गांवों की जमीन आवासीय, व्यावसायिक, औधोगिक ही रहेगी, कृषि भूमि,हरित भूमि आरक्षित नहीं होगी। ग्रीन बेल्ट व आवासीय जमीन की समान दर क्यों ? 

टी एण्ड सी पी में मंजूर प्लाट अगर व्यावसायिक है तो ही व्यावसायिक दर लगेगी,इसका पालन क्यों नहीं किया जा रहा ? 

इंदौर में तीन मंजिल से ऊंची मल्टी बन रही है तो चौथी,पांचवी आदि का भाव तीसरी के बराबर ही क्यों ? 

कृषि जमीन दर परिवर्तित क्यों नहीं की जा रही है। जो सरकारी योजना के तहत अधिग्रहित होना है, सरकार की नीयत स्पष्ट नहीं ? 

आपत्तियों का निराकरण प्रत्यक्ष सुनवाई के आधार पर हो ।

उदाहरण बतौर इंदौर शहर के मास्टर प्लान में शामिल किए जा रहे 78 गांवों की कृषि भूमि में किसी भी प्रकार या मामूली मूल्य वृद्धि के प्रस्ताव जोड़े गए हैं । नर्मदा क्षिप्रा लिंक के आसपास के गांवों की भी यही स्थिति है। 
भोपाल में सीहोर रोड़ , होशंगाबाद रोड सहित न्यू मार्केट , हबीबगंज रेलवे स्टेशन के आसपास के महंगे इलाकों में भी नाममात्र दर वृद्धि के प्रस्ताव हैं।
ग्वालियर में नये शहर के तौर पर विकसित हो रहे नवीन कलेक्ट्रेट परिसर के आसपास के इलाकों में भी यही पैटर्न अपनाया गया है।
बुंदेलखंड महाकौशल के ग्रामीण महानगर के रुप में स्थापित जबलपुर में भरपूर संभावना के बाबजूद बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं किया जा रहा है। 
इसी प्रकार इंदौर के समीपवर्ती देवास और धार जिले की भरपूर औधोगिक संभावना के बाद भी कोई खास परिवर्तन नजर नहीं आ रहा है।

 

अगर इन उल्लेखनीय तथ्यों को देखा जाए तो भू भवन माफियाओं की गिरफ्त में सरकारी अमला नजर आता है।

छोटे यूजरों की परेशानी

आम निवेशक जब अपने घर के सपने को साकार करने बैंक में लोन लेने जाता है तो बाजार दर पर बैंक लोन देने तैयार नहीं है और गाइड लाइन के हिसाब से वह लोन नहीं ले सकता। मजबूरन निजी फायनेंसरों से वह ऊंची दर पर ब्याज लेकर मकान लेने मजबूर हो जाता है।

केन्द्र और राज्य के अरबों रुपए की कर चोरी

गाइड लाइन में फर्क से जहां राज्य सरकार को बड़े राजस्व का नुक़सान हो रहा है ,वहीं केन्द्र को मिलने वाले कैपिटल गेन टैक्स अपेक्षित नहीं मिल पा रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ब्लैक मनी रोकने के प्रयासों पर भी जबरदस्त धक्का लग रहा है।

गाइड लाइन घोटाला करने की तैयारी

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भोपाल में बैठे अधिकारी जिलों में पदस्थ अधिकारियों को फोन पर गाइड लाइन परिवर्तित करने के मौखिक निर्देश दे रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार गाइड लाइन में भाव 5 से 10 प्रतिशत इलाकों में ही सीमित दर बढ़ाने के सुझाव दिए जा रहे हैं । भू भवन माफियाओं ने दर न बढ़ाने के पीछे तर्क कोरोना संक्रमण काल में आम आदमी की वित्तीय परेशानी को लेकर दिया जा रहा है।

इस मामले में पंजीयन एवं मुद्रांक शुल्क महानिरीक्षक एम सेलवेन्द्रेन का कहना है कि गाइड लाइन जिला मूल्यांकन समिति तय करती है और गाइड लाइन को कम या ज्यादा रखने को लेकर भोपाल मुख्यालय से किसी भी प्रकार का फोन नहीं किया जा रहा है। अगर ऐसी कोई जानकारी आएगी तो दोषी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

हांलांकि पंजीयन एवं मुद्रांक शुल्क महानिरीक्षक एम सेलवेन्द्रेन इस मामले में भोपाल मुख्यालय से फोन नहीं किए जाने का दावा कर रहे हैं लेकिन आई जी पंजीयन सहित मुख्यालय के अन्य अधिकारियों और जिला पंजीयकों के काल डिटेल रिकार्ड निकलवा लिए जाएं तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

 

 

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