उनतीस सालों से किसी ने नहीं दिया धन्यवाद

 

अब तो मुख्यमंत्री भी नहीं पूछते आने के पहले

अर्जुनसिंह से लेकर जॉन मेज़र तक के क़िस्से

खबर नेशन /Khabar Nation

मध्यप्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर की आवभगत से प्रसन्न होकर जाने वाले शासकीय अफसर और आला दर्जे के जनप्रतिनिधियों ने 29 सालों से धन्यवाद अदा नहीं किया है। ठीक इतने ही सालों से इंदौर आने वाले केन्द्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रीयों और मंत्रियों ने प्रोटोकॉल से यह पूछना बंद कर दिया कि वे जिस कार्यक्रम में शामिल होने आ रहें हैं वह कार्यक्रम गरिमामय रहेगा या नहीं और उनकी उपस्थिति गरिमामय रहेगी कि नहीं ।

इंदौर जिले के प्रोटोकॉल अफसर अतिरिक्त कलेक्टर स्तर के अधिकारी भारत भूषण सिंह तोमर हैं । जिन्हें आवभगत का अनुभव भी लगभग पैंतीस साल का हो गया है । 

इंदौर में आवभगत पा चुके मेहमानों के रोचक किस्से भी कम ना थे । श्री तोमर ने बताया कि   कार्यक्रम में आने से पहले कार्यक्रम आयोजकों की जानकारी लेने वाले संभवतः अंतिम राजनेता मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष डॉ.राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल थे ।

इसी प्रकार आवभगत से प्रसन्न होकर धन्यवाद अदा करने वाले अंतिम मेहमान भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री सत्यम रहे। श्री सत्यम भारत शासन में सचिव रहे और वे लंबे समय तक जहाजरानी बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे। भी बी बी एस तोमर ने बताया कि जब उन्हें रिसीव करने जाते थे तो वे अपने साथ बिठाकर चाय पिलाया करते थे । अब ना तो औचित्यता पूछी जाती है और ना धन्यवाद का लेटर आता है बस आगमन की सूचना दे दी जाती है ।

अक्सर अतिविशिष्ट अतिथियों के बिल भुगतान में विवादों के किस्सों के बारे में पूछने पर श्री तोमर ने कहा कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रहे अर्जुन सिंह अपना और अपने स्टाफ का पूरा बिल स्वयं भुगतान करते थे । अक्सर भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता इंदौर रेसीडेंसी में रुका करते थे तो उनके बिलों का भुगतान भाजपा की स्थानीय इकाई किया करती थी। बिल भगतानों के विवाद पर उन्होंनें बताया कि बड़े नेता ऐसा नहीं करते लेकिन उनके समर्थक या निजी स्टाफ में शामिल एकाध व्यक्ति विवाद खड़े कर जाता था ।हांलांकि अब तो वर्ष 2009 से आवभगत के खर्चो को लेकर शासकीय व्यवस्था बना दी गई है ।

अतिथियों के व्यवहार को लेकर अपील करने बाबत व्यवहार मध्यप्रदेश के पूर्व वित्तमंत्री भाई राघवजी का बताया जो उस दरमियान मौजूद सभी अधिकारी और कर्मचारी से सौजन्य भेंट करते थे । सबसे रोचक व्यवहार पूर्व राजस्व मंत्री राजमणि पटेल का बताया । श्री पटेल मंत्री होने के बावजूद अपने संपूर्ण स्टाफ के साथ भोजन किया करते थे । जब उनसे यह पूछा गया कि क्या आपको हमारे ऊपर विश्वास नहीं है कि आपके स्टाफ को हम भोजन कराएंगे तो श्री पटेल ने कहा था कि मैं जब भोजन करुंगा तो रसोईया और वेटर मेरी व्यवस्था में लगा रहेगा और इसी बीच कहीं जाने का कार्यक्रम बन गया तो मेरा स्टाफ ढ़ंग से भोजन नहीं कर पाएगा । मैं इसलिए साथ भोजन करता हूं। अचानक आने वाले मेहमानों के किस्से बताते हुए उन्होंने कहा कि एक बार प्रोटोकाल स्टाफ किसी को छोड़ने गया था । मेहमान को विदा कर सारा स्टाफ जा चुका था । एयरपोर्ट पर सिर्फ में और तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक भास्कर दीवान नाश्ता कर रहे थे और वहां कोई और व्यवस्था नहीं थी कि अचानक अर्जुन सिंह जी आ गये । जब उनसे यह पूछा गया कि आप तो शाम को आने वाले हैं। तब उन्होंने बताया कि जहां जाना था वहां का मौसम खराब है और नजदीक विमानतल इंदौर ही था। इसलिए यहां आ गया । उस समय विमानतल पर सिर्फ मेरी पुरानी  एम्बेसडर कार थी । हमनें उनसे उनका कार्यक्रम पूछा तो उन्होंने उधोगपति रमेश बाहेती को सूचना देने का निर्देश दिया। उस समय एयरपोर्ट पर कम फ्लाइट आती थी। इसलिए कार्यालय भी बंद हो चुके थे । तब वहां सिर्फ सिक्के से चलने वाला टेलीफोन हुआ करता था । फोन से बाहेती जी को सूचना देने के साथ ही एक आग्रह किया कि पलासिया से यहां तक कार आने में समय लगेगा इसकी बजाय अगर आप कहें तो मैं अपनी कार से छोड़ दूं । अर्जुन सिंह सहर्ष तैयार हो गए । इसके बाद अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक भास्कर दीवान की गाड़ी फालो वाहन के तौर पर लगाई गई।

ऐसे ही एक बार दिग्विजय सिंह जी के साथ हुआ लगभग आधा घंटे पहले सूचना मिलने पर ताबड़तोड़ व्यवस्था की गई । जब वे आए तब तत्कालीन खाद्य अधिकारी कोई साधन ना होने पर फल धो रहे थे।वे आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने कहा कि इतनी जल्दी व्यवस्था कैसे कर लेते हैं आप । वे अक्सर नींबू की चाय पीना पसंद करते हैं ,जब उन्हें यह बताया कि इन तीन कर्मचारी की जेब में शर्तिया तौर पर एक एक नींबू मिलेगा । जब उनकी जेब में से नींबू बाहर निकलें तो वे पांच थे । दिग्विजय सिंह की एक और खासियत उन्होंने बताई कि वे नाम से सबको जानते हैं । ऐसा ही मेरे ग्वालियर पदस्थ होने के दौरान हुआ । दिग्विजय सिंह हमेशा राघौगढ़ से व्हाया रोड़ से आकर ट्रेन से जाया करते हैं ।   मैं उनके प्रोटोकॉल में गया तो वे मुझसे पूछ बैठे कि आप कहां जा रहे हैं । मैंने उन्हें बताया कि मैं यहीं पदस्थ हूं तो वे शोर में सुन नहीं पाएं और आगे बढ़ गये । कुछ दिनों बाद फिर जब ग्वालियर स्टेशन पर उन्हें लेने पहुंचा तो वे फिर कह उठे कि संयोग है आजकल आपकी और मेरी यात्राएं एक साथ ही हो रही है। जब उन्हें बताया कि मैं आजकल ग्वालियर में ही पदस्थ हूं आपको बताया भी था।वे मुस्करा कर कह उठे सुन नहीं पाया होऊंगा ।

ऐसी ही यादगार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉन मेज़र की इंदौर यात्रा की रही। जॉन मेज़र ओ डी एफ प्रोजेक्ट की प्रगति देखने आए थे बिना तामझाम के सीमित सहुलियत के निर्देश वहीं से दिए गए थे । उन्होंने बड़े चाव से एक महिला को टोकरी बनाते हुए देखा और उस महिला से दुभाषिए के माध्यम से बात की । श्री तोमर ने इस व्यवस्था का श्रेय अपने सहयोगियों को ही दिया ।

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