दिग्विजय नहीं चिनॉय सेठ कहिए

सामंतवाद का निशाना कहीं ब्राह्मण नेताओं पर तो नहीं

कमलनाथ इन दिनों सब नेताओं को दे रहे हैं बराबर बराबर महत्त्व
 दिग्विजय की चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी से नाराजगी की वजह कहीं यही तो नहीं
खबर नेशन /KhabarNation
चिनॉय सेठ, जिनके अपने घर शीशे के हों, वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते । 1965 के दौर की फिल्म वक्त का डायलॉग आज पचपन साल बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस के अंदरूनी हालात को देखकर याद आ रहा है । चिनाय सेठ की भूमिका में मध्य प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह नजर आ रहे हैं तो यह डायलॉग अदायगी करने वाले अभिनेता राजकुमार की भूमिका में मध्यप्रदेश विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष रहे चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी नजर आ रहे हैं । मामला 2 दिन पहले दिग्विजय सिंह की पत्रकार वार्ता का है । जिसमें वे चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को मेहगांव विधानसभा उपचुनाव में प्रत्याशी बनाए जाने पर आपत्ति जताते हुए अपना विरोध जता गए। इसके पहले विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल ने भी पार्टी फोरम पर यह कहते हुए विरोध जताया था कि वे चौधरी राकेश को प्रत्याशी बनाए जाने पर पार्टी छोड़ सकते हैं  । पार्टी की बैठक में अजय सिंह का कहना रहा कि वे दलबदलूओं को टिकट देने के खिलाफ है । पार्टी में अजय सिंह राहुल के विरोधियों का कहना है कि  अजय सिंह पहले उस इतिहास को खंगाले जब राजनैतिक कारणों को लेकर मध्यप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय अर्जुन सिंह कांग्रेस छोड़कर चले गए थे और जब उन्हें कांग्रेस में अनुकूल वातावरण दिखाई दिया तो वे वापस कांग्रेस में शामिल हो गए । उस समय भी कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने स्वर्गीय अर्जुन सिंह की कांग्रेस वापसी का विरोध किया था लेकिन आलाकमान के निर्णय के बाद सबने राजनैतिक विरोध के बावजूद उस निर्णय का स्वागत किया । अजय सिंह को पार्टी नेतृत्व को धमकी देने की बजाय एकजुटता के लिए काम करना चाहिए ।
इधर दिग्विजय सिंह चौधरी राकेश सिंह के विरोध में आ गए । गौरतलब है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी और उपेक्षा से परेशान चौधरी राकेश सिंह उस वक्त कांग्रेस को अलविदा कह भाजपा में शामिल हो गए जब विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ अविश्र्वास प्रस्ताव पेश कर रहे थे । मध्यप्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर थी और कांग्रेस जबरदस्त तरीके से कमजोर । राजनैतिक लड़ाई व्यक्तिगत लड़ाई में बदल गई ।
नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने इसे व्यक्तिगत अपमान के तौर पर ले लिया । लड़ाई संसदीय ज्ञान और सरकार को घेरने के मुद्दों को लेकर थी । चौधरी राकेश सिंह संसदीय ज्ञान और राजनीतिक समझ के अच्छे जानकार होने के साथ-साथ प्रखर वक्ता के तौर पर जाने जाते हैं । वे उस समय विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष हुआ करते थे । दिग्विजय सिंह के विरोध को देखते हुए कल चौधरी राकेश सिंह भी खुल कर मैदान में आ गए और उन्होंने दिग्विजय सिंह से यहां तक पूछ लिया कि वह किस हैसियत से उनका पार्टी में आने का और मेहगांव विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाए जाने का विरोध कर रहे हैं। चौधरी राकेश सिंह ने यह भी तर्क दिया कि उनका भविष्य कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी राहुल गांधी और कमलनाथ तय करेंगे । दिग्विजय सिंह कौन होते हैं ? गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच वैसी प्रगाढ़ता नजर नहीं आ रही है जैसी प्रगाड़ता मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में रहने के दौरान नजर आती थी । दिग्विजय सिंह की तूती कमलनाथ सरकार में बोल रही थी। दिग्विजय सिंग के क्रियाकलापों को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया  काफी असहज महसूस कर रहा थे। अंततः सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों ने कांग्रेस को अलविदा कह कर विधायक दल से इस्तीफा दे दिया । 22 विधायकों के इस्तीफे से कमलनाथ सरकार गिर गई । कांग्रेस के  खेमों में यह चर्चा जोर पकड़ गई कि इसकी सबसे बड़ी वजह दिग्विजय सिंह की दखलंदाजी रही । सार्वजनिक तौर पर कमलनाथ के मुख से भी इस प्रकार की  बात निकल गई लेकिन बाद में उन्होंने इसे संभाल लिया । सरकार से बाहर होने के बाद कमलनाथ फूंक-फूंक पर कदम रख रहे हैं और पार्टी के अन्य बड़े नेताओं को भी एक समान तवज्जो दे रहे हैं । चाहें सुरेश पचौरी हों या अरुण यादव या फिर अजय सिंह राहुल या कांतिलाल भूरिया । यही बात दिग्विजय खेमे को परेशान किए हुए है । संभवतः इसी कारण से दिग्विजय विरोध कर बैठे ।
कांग्रेस में ब्राम्हण नेताओं और सामंतवादी नेताओं के बीच लड़ाई परंपरागत तरीके से चली आ रही है। चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी वापस कांग्रेस में आ गए हैं और उन्हें मेहगांव विधानसभा उपचुनाव लड़वाया जा सकता है । 
गौरतलब है कि चौधरी राकेश सिंह मध्यप्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल की उंगलियों को पकड़कर राजनीतिक ककहरा सीखें हैं । बाद में वे सुरेश पचौरी गुट के साथ हो गये । हालांकि इस दौरान भी वे अन्य नेताओं को बराबर सम्मान देते रहे ।
 कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार रहे चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी लगभग सात साल भाजपा में रहने के बाद इन दिनों कांग्रेस में हैं ।  चौधरी राकेश का पलटवार इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि अगर परिस्थिति को छोड़ दिया जाए तो दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे और लोकसभा का चुनाव लड़ें थे । हालांकि लक्ष्मण वापस कांग्रेस में आ गए और इन दिनों विधायक हैं । इसलिए यह माना जा सकता है कि बात मुद्दे की नहीं अस्तित्व की है । कहीं ना कहीं सामंती नेताओं के बीच एकजुटता को बनाए रखने चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी का विरोध किया जा रहा है ताकि ब्राम्हण क्षत्रपों के असर को सीमित रखा जा सके ।
उधर पार्टी के अंदरूनी हालात से दुखी एक नेता का कहना है कि मध्यप्रदेश में लंबे अरसे तक ठाकुर ब्राम्हण की राजनैतिक लड़ाई का असर चंबल में भी पड़ता रहा है ।जिसका बड़ा खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा है । ज्यादा बेहतर होगा कि पार्टी के सभी वर्गों के नेता आपसी असहमति और मतभेद भुलाकर काम करें।

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