मौत या रिहाई .... कौन पहले ?


संदेही आधार पर बंद जेल में 90 वर्षीय, शारिरिक दयनीय के परिवारजनों की पीड़ा

खबरनेशन / Khabarnation
 

शारीरिक  तौर पर दयनीय और पर्किन्सन एवं शतप्रतिशत अंधत्व 90 वर्षीय वृद्ध की रिहाई या मौत क्या पहले होगी का इंतजार कर रहे हैं परिजन। गौरतलब हैं कि 1992 में हुए एक हत्या के मामले में जेल में बंद शिवनारायण शर्मा को संदेह के आधार पर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई हैं। जिनका नाम गॉव वालों ने हत्या में शामिल ना होने बाद भी एफ आय आर में लिखवा दिया था।

गौरतलब हैं कि नब्बे वर्षीय शिवनारायण शर्मा केन्द्रीय जेल ग्वालियर में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं। मेडिकल बोर्ड ने 100 प्रतिशत अंधत्व का प्रमाण पत्र जारी किया हैं। इसी के साथ ही बंदी पर्किन्सन नामक बीमारी से जूझ रहे हैं। बंदी के परिजनों ने शासन से शारीरिक स्थिति को आधार बनाते हुए अपील की हैं कि उन्हें रिहा कर दिया जाए।

जब इस प्रकरण के संबंध में बंदी के पुत्र राजीव शर्मा से चर्चा की तो उन्होंने बताया कि जिस मामले में उनके पिता सजा भुगत रहे हैं। उस मामले में उनके पिता का नाम एफ आय आर में झूठा लिखवाया गया था। क्योंकि उस समय पिताजी की उम्र 62 वर्ष की थी और वे शारीरिक तौर पर बीमार होने के चलते बन्दूक नहीं चला सकते थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी एक ही गोली की जानकारी आई थी। लेकिन मृतक के परिजनों ने बयान में दो अलग अलग व्यक्तियों द्वारा अंतराज में गोली चलना और घायल होना बताया था। इसी प्रकार डॉक्टर ने भी बयान में पर्किन्सन बीमारी के चलते यह बयान दिया था कि गोली चला भी सकते हैं और नहीं भी। संदेह के इन्हीं कारणों के चलते बंदी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई हैं।
 

रूऑसे स्तर में राजीव शर्मा ने बताया कि जेल नियमावली के नियम 363 एवं अनय के तहत शासन उन्हें रिहा कर सकती हैं। हमें डर हैं कि किसी दिन जेल से हमें बुरी खबर सुनने ना मिल जाए क्योंकि ना तो वे अपने दम पर चल पाते हैं और ना ही बाकी काम कर सकते हैं।


 

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