भाजपा प्रदेश कार्यालय को सरकार ने अवैध तरीके से किराए पर दिया भवन मामला सरकारी नियमों के उलंघन का
सुप्रीम कोर्ट पहले भी ऐसे ही एक मामले में मध्यप्रदेश सरकार और भाजपा संगठन के खिलाफ दे चुका है फैसला
गौरव चतुर्वेदी/ खबर नेशन/ Khabar Nation
मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी को प्रदेश कार्यालय संचालित करने शिवराज सरकार ने नियमों को ताक पर रख भोपाल में आर.टी.ओ कार्यालय किराए पर दे दिया। इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ड्रीम विभाग लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग की भी कोई राय नहीं ली गई। पूर्व में मध्यप्रदेश सरकार और भाजपा को कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट को 20 एकड़ ज़मीन आवंटन के मामले में मुंह की खानी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट का जमीन आवंटन रद्द कर दिया था।
गौरतलब है कि भाजपा प्रदेश कार्यालय को तोड़कर नया भवन बनवाया जा रहा है। ऐसी परिस्थिति में भाजपा को प्रदेश कार्यालय के लिए जगह की आवश्यकता है। इसे देखते हुए भाजपा कार्यालय के ठीक सामने परिवहन विभाग के खाली पड़े दफ्तर को किराए पर लेने के लिए परिवहन विभाग को आवेदन दे दिया। सूत्रों के अनुसार परिवहन आयुक्त मध्यप्रदेश मुकेश जैन ने कलेक्टर भोपाल को किराया निर्धारण के निर्देश दे दिए।
कलेक्टर भोपाल ने भी एक समिति बनाकर किराए पर देने की अनुशंसा कर दी।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश सरकार ने 'लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग' बनाया है। विभाग संपत्ति के रखरखाव के साथ उसके औचित्य का निर्धारण भी करेगा। लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग सभी सरकारी संपत्तियों का रजिस्टर तैयार करेगा। संपत्ति के बारे में नीति और गाइडलाइन तैयार करता है।
उल्लेखनीय पहलू यह है कि
सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल में कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट को 20 एकड़ भूमि का आवंटन गैरकानूनी बताते हुए रद कर दिया था। ट्रस्ट को यह जमीन 2004 में उमा भारती सरकार ने बहुत सस्ती कीमत पर आवंटित की थी। इस ट्रस्ट में लालकृष्ण आडवाणी, वेंकैया नायडू, संजय जोशी और कैलाश जोशी जैसे भाजपा के कई वरिष्ठ नेता ट्रस्टी हैं।
न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व न्यायमूर्ति ए.के. गांगुली की पीठ ने कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट को भूमि आवंटित किये जाने को चुनौती देने वाली गैर सरकारी संस्था अखिल भारतीय उपभोक्ता कांग्रेस की याचिका स्वीकार करते हुए ट्रस्ट को जमीन देने के लिए डेवलपमेंट प्लान में संशोधन करने वाली की अधिसूचनाएं भी रद कर दी। पीठ ने भोपाल के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग कमिश्नर को जमीन पर कब्जा लेकर भूमि का कानून के मुताबिक उपयोग करने का निर्देश दिया था। इतना ही नहीं कोर्ट ने राज्य सरकार को 15 दिन के भीतर ट्रस्ट को आवंटन राशि वापस करने का निर्देश दिया था। मालूम हो कि ट्रस्ट को 25 लाख रुपये पर भोपाल में बावड़िया कला गांव में 20 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी जबकि जमीन की वास्तविक कीमत करोड़ों में थी।
कोर्ट ने अपने 59 पृष्ठों के विस्तृत फैसले में कहा था कि राज्य सरकार या उसकी एजेंसी राजनीतिक हस्तियों या राज्य के अधिकारियों की इच्छा से किसी व्यक्ति के प्रति उदारता नहीं दिखा सकते। सरकार या सरकारी एजेंसी का हर काम या निर्णय तर्कसंगत, पारदर्शी और भेदभाव रहित नीति पर आधारित होना चाहिए। अदालत का मानना था कि राज्य और उसकी एजेंसियों को जमीन, कोटा, परमिट या लाइसेंस के आवंटन में हमेशा समानता व निष्पक्षता बरतनी चाहिए। विवेकाधिकार से लिया गया निर्णय पक्षपात या भाई भतीजावाद से प्रभावित नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार शिक्षा, संस्कृति, दर्शन व समाजिक संस्थाओं को बिना नीलामी के जमीन नहीं आवंटित कर सकते लेकिन ऐसे संगठन को जमीन देने से पहले उसका विज्ञापन दिया जाना चाहिए। आवंटन में समानता का सिद्धांत अपनाया जाना चाहिए।
शासन ने इस तरह की किसी भी प्रक्रिया को नहीं अपनाया।
जब इस बारे में परिवहन आयुक्त मध्यप्रदेश मुकेश जैन से चर्चा की तो विषय सुनकर उन्होंने कहा कि आपने गलत व्यक्ति को को फोन लगा लिया। जबकि किराए पर भवन दिए जाने का निर्णय उनके कार्यकाल में लिया गया था। वर्तमान में जैन को परिवहन आयुक्त के पद से हटा दिया गया है।
जब इस बारे में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा से चर्चा की तो उन्होंने कहा कि हमने विधिवत आवेदन देकर आर.टी.ओ कार्यालय का भवन किराए पर लिया है। शासकीय प्रकिया में पालन शासन की जबाबदारी है।
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गौरव चतुर्वेदी
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