भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को फ्रीडम फाइटर का दर्जा देने से कतरा रही मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार

 

सोलह साल से अटका हुआ है वल्लभ भवन में प्रस्ताव

दो बार कलेक्टर ग्वालियर की अनुशंसा पर भी नहीं ले पाए निर्णय

गौरव चतुर्वेदी/खबर नेशन/Khabar Nation

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेई को फ्रीडम फाइटर का दर्जा देने से मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार कतरा रही है । स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिलाने के लिए संघर्षरत सहयोगी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मध्यप्रदेश सरकार के रवैए से नाखुश हैं । पीड़ा की वजह पिछले सोलह साल से प्रयासों को न मिल पाने वाली असफलता है।

सोलह साल का लेखा-जोखा

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का एक संगठन पिछले सोलह बरस से वाजपेई जी को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिलाने के लिए प्रयास कर रहा है।इस संगठन से जुड़े हुए लोगों का कहना है कि वाजपेई जी ने पूरा जीवन देश , मध्यप्रदेश और भाजपा के लिए दे दिया लेकिन वर्तमान सरकार वाजपेई जी को फ्रीडम फाइटर का दर्जा देने के मामले को अटकाए हुए बैठी है। ये लोग कई बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर, तत्कालीन सामान्य प्रशासन मंत्री कन्हैयालाल अग्रवाल , तत्कालीन सामान्य प्रशासन मंत्री लाल सिंह आर्य, भाजपा के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्षों सहित तमाम नेताओं से मिलते रहे हैं । पर उन्हें सफलता नहीं मिली । संगठन के लोगों का कहना है कि दो बार ग्वालियर के जिलाधीश वाजपेई जी को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिए जाने का अनुशंसित प्रस्ताव मंत्रालय वल्लभ भवन में सामान्य प्रशासन विभाग को भेज चुके हैं । इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। हाल ही में फिर सुरेन्द्र शुक्ला ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपना आवेदन दिया है।जिसे मुख्यमंत्री कार्यालय ने सामान्य प्रशासन विभाग को भेज दिया है ।

शिवराज को अटल जी ने दिया था उत्तराधिकार

मध्यप्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का गहरा नाता रहा है। उन्होंने विदिशा सीट से चुनाव जीता था साथ ही लखनऊ से भी चुनाव लड़ा था। वे विदिशा से भारी मतों से चुनाव जीत गए थे। हालांकि प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्हें एक सीट छोड़ना पड़ी थी। तो उन्होंने विदिशा लोकसभा सीट को छोड़ दिया था और शिवराज सिंह चौहान को अपना उत्तराधिकारी बना दिया था। इसके बाद शिवराज सिंह यहां से चुनाव जीते और लोकसभा पहुंचे थे।

विवादों में रही अटल बिहारी वाजपेई जी की आजादी की लड़ाई


प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को ताजिंदगी इस आरोप का सामना करना पड़ा है कि उन्होंने 1942 में अपने आपको बचाने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के ख़िलाफ़ गवाही दी थी।
पहले यह आरोप कांग्रेस लगाती रही है और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस आरोप का खंडन करते रहे हैं।
एक बार वाजपेयी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे राम जेठमलानी ने एक पत्रकारवार्ता में लीलाधर वाजपेयी को ला खड़ा किया जिनका दावा था कि अटल बिहारी वाजपेयी की गवाही पर चार स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को सज़ा सुनाई गई थी।
लीलाधर वाजपेयी आगरा के पास बटेश्वर गाँव के ही रहने वाले थे जो प्रधानमंत्री वाजपेयी का भी गाँव है।
उनका कहना है कि 27 अगस्त 1942 को कोई डेढ़ दो सौ लोग जंगल विभाग की एक बिल्डिंग पर तिरंगा झंडा फहरा रहे थे। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी और उनके भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी भीड़ से दूर खड़े हुए थे।
उन्होंने बताया कि पुलिस ने उसी समय बहुत से लोगों को गिरफ़्तार कर लिया। उनमें अटल बिहारी वाजपेयी और उनके भाई भी थे।
उनका कहना है, ''वाजपेयी जी के पिता ने अंग्रेज़ अफ़सरों से कहकर दोनों भाइयों को छुड़वा लिया और इन दोनों भाइयों ने बाद में स्वतंत्रता सेनानियों के ख़िलाफ़ अदालत में गवाही दी थी।''
अदालत के कागज़ात बाँटते हुए लीलाधर वाजपेयी ने कहा कि दोनों भाइयों की गवाही से चार स्वतंत्रता सेनानियों को जेल भी जाना पड़ा था।
उनका आरोप है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने बाद में अपने भाई को ताम्रपत्र भी दिलवा दिया।
उन्होंने कहा कि अदालत में आरोप लगाया गया था कि सरकारी इमारत को जलाया गया और गिरा दिया गया लेकिन सच यह है कि वहाँ सिर्फ़ झंडा फहराया गया था।

अटल जी ने किया था आरोपों का खंड़न

प्रधानमंत्री वाजपेयी ने इन आरोपों का खंडन करते हुए  कांग्रेस की निंदा भी की थी।

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