आखिर ठोक ही ली ताबूत में आखिरी कील....

" विनाश काले विपरीत बुद्धि " शिवराज का अनोखा साहस
 

खबरनेशन / Khabarnation
 

मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल का विस्तार कहीं भारतीय जनता पार्टी को वनवास में ना धकेल दें। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के तीसरे कार्यकाल का बहुप्रतीक्षित दूसरा विस्तार शिव के राजनीतिक सफर के अंत का आगाज दे रहा हैं। राजनीतिक विश्लेषक इसे शिवराज के राजनीतिक सफर में ताबूत की आखिरी कील बता रहे हैं। जब मध्यप्रदेश के राजभवन में शिवराज आगामी विधानसभा चुनाव में सफलता के लिए सोशल इंजीनियरिंग के सहारे नवनियुक्त मंत्रियों की शपथ दिलवा रहे थे , तभी मध्यप्रदेश के सुदुर इलाकों में जातिगत भेदभाव का आरोप लगाकर समर्थक लामबंद हो रहे थे।

मध्यप्रदेश मंत्रिमण्डल का विस्तार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए मजबूरी बन गया था। काफी लंबे समय से जनता विधायक और पार्टी कार्यकर्ताओं में शिवराज के प्रति नाराजगी पनप गई हैं जिसके कारण मध्यप्रदेश से सत्ता जाती हुई नजर आ रही हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से भी शिवराज का तालमेल बैठ नहीं पा रहा हैं। भाजपा के मात्र संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कई आला नेता भी मध्यप्रदेश सरकार की कारगुजारियों से नाखुश नजर आ रहे हैं। जिसके चलते शिवराज को मंत्रिमंडल विस्तार करना पड़ा। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल की मध्यप्रदेश में राज्यपाल के रूप में तैनाती भी इसी कड़ी का एक हिस्सा हैं।

योग्यता के पैमाने जीत के परचम भी शिवराज का दिल नहीं जीत पाए। अगर मंत्रिमंडल की ताजा राजनैतिक स्थितियों पर चर्चा की जाए तो तीन नए मंत्री पिछड़े वर्ग को साधने के लिहाज से लिए गए हैं। बालकृष्ण पाटीदार निमाड़ क्षेत्र से विधायक हैं। मालवा और निमाड़ पाटीदार बाहुल्य है। विगत दिनों किसान आंदोलन में पाटीदारों की नाराजगी खुलकर सामने आई थी।

गुजरात के हालिया विधानसभा चुनाव में पटेल बाहुल्य ग्रामीण क्षेत्र में भाजपा को खासा नुकसान उठाना पड़ा है। गुजरात में पटेलों की राजनीति भाजपा के खिलाफ मोड़ने में अहम भूमिका निभाने वाले हार्दिक पटेल मध्यप्रदेश का रुख कर चुके हैं। संभावित नुकसान को शिवराज कितना रोक पाएंगे देखने लायक रहेगा।
 

नारायण सिंह कुशवाह चंबल का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालिया अटेर उपचुनाव में मिली पराजय से शिवराज भयभीत स्थिति में हैं। मुंगावली और कोलारस उपचुनाव में में स्थिति खराब बताई जा रही है। हाँलाकि कुशवाह समाज के वोटर ज्यादा तो नहीं हैं लेकिन थोड़े बहुत ही भाजपा को ज्यादा फायदा न पहुँचा पाएं तो नुकसान भी नहीं होने देंगे। 

सर्वाधिक चौंकाने वाला नाम जालम सिंह पटेल का रहा। मध्यप्रदेश में लोधी नेता प्रहलाद सिंह पटेल कभी शिवराज के अभिन्न मित्र माने जाते थे। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के साथ होकर प्रहलाद ने ड़पर काँड़ उजागर कर दिया। जिसके चलते उनकी शिवराज से दूरी पनप गई। बाद में प्रहलाद पटेल उमा से भी दूर हो गए। मध्यप्रदेश में परिवर्तन के सुरों की सुगबुहाट में प्रहलाद पटेल का नाम दावेदार के तौर पर उभरता रहता है। जिसकी काट के लिए जालम को मंत्री बनाया गया है। हाल ही में इंटेलीजेंस ने एक रिपोर्ट दिल्ली भेजी थी। जिसमें मध्यप्रदेश में भाजपा की स्थिति खराब बताते हुए सिर्फ ७० सीटें ही मिलने का अनुमान जाहिर किया गया है। इस रिपोर्ट के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने जिन दो नेताओं को दिल्ली तलब किया था उनमें एक प्रहलाद पटेल प्रमुख थे।
 

ताजा स्थिति के अनुसार शिवराज मंत्रिमंडल में अब 31 सदस्य हो गए हैं। शिवराज 34 मंत्री बना सकते है लेकिन उन्ही अभी चार मंत्रिपद रिक्त रखें हैं। भाजपा की विधानसभा में 166 सदस्य हैं। जिनमे 28 विधायक अनुसूचित जाति वर्ग से और 32 अनुसूचित जनजाति वर्ग से हैं। अनुसूचित जाति वर्ग से दो मंत्री लाल सिंह आर्य और गौरीशंकर शेजवार मंत्री भाजपा के विधानसभा सदस्य के लिहाज से तीन मंत्री बनाए जा सकते थे। इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति वर्ग से तीन मंत्री हैं, दो और बनाए जा सकते थे। अगर हम महिलाओं की बात करें तो वे इस लिहाज से जरुर फायदे में हैं। महिला भाजपा विधायकों की संख्या 24 हैं जिनमें से चार मंत्री हैं। सामाजिक संतुलन बनाते हुए महिलाओं की संख्या बढ़ाई जा सकती थी लेकिन यहाँ भी शिवराज महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने में कंजूसी कर गए । 

क्षेत्र के लिहाज से भी शिवराज संतुलन बनाए रखने में नाकाम रहे। इंदौर जिले में लोकसभा अध्यक्ष ताई सुमित्रा महाजन और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की लड़ाई की आड़ लेकर शिवराज लगातार नाइंसाफी करें जा रहे हैं। अगर हम योग्यता की बात करें तो बाबूलाल गौर, सरताज सिंह, कैलाश चावला, जगदीश देवड़ा, गोपीलाल जाटव, रमेश मेंदोला, महेन्द्र हार्डिया, कैलाश विजयवर्गीय, भंवरसिंह शेखावत, ओमप्रकाश सकलेचा, नानाभाऊ मोहाड़, चौधरी चन्द्रभान सिंह जैसे नाम हैं। जो कहीं योग्यता में तो कहीं जनविश्वास की कसौटी पर शिवराज सिंह चौहान से ज्यादा खरे उतरे हैं।
 

माना जा सकता हैं कि शिवराज ने इन मापदण्डों को अनदेखा कर या तो अपने अदम्य साहस का परिचय दिया हैं या फिर " विनाश काले विपरीत बुद्धि " का परिचय दिया हैं।
 

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