विश्वविद्यालय में पढ़ाने की बजाय "बोलने" को मानी योग्यता

महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन में संघ से जुड़े व्यक्ति की नियुक्ति के लिए उच्च न्यायालय में दायर की कैवियेट

खबरनेशन / Khabarnation

अगर आप बोलना अच्छा जानते हैं तो विश्वविद्यालय में आप निदेशक पद के काबिल भी माने जा सकते हैं। बशर्ते भारत की संस्कृति की रक्षा करने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में आपके गहरे ताल्लुकात हो। उज्जैन के महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय ने अपने इन मंसूबों को पूरा करने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में एक कैवियेट भी दायर कर दी। 

महर्षि पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय संस्कृत शिक्षण-प्रशिक्षण तथा ज्ञान विज्ञान संवर्धन केन्द्र खोला जा रहा हैं। इस केन्द्र के निदेशक पद हेतु 5 फरवरी 2018 आवेदन को विज्ञापन जारी किया। आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 3 मार्च थी। जिसको लेकर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर खंडपीठ के इन्दौर ने धारा 148 व्य प्र. स के तहत एक कैवियेट दायर की गई हैं। उक्त कैवियेट को दायर करने के लिए कारण जताते हुए विश्वविद्यालय द्वारा कहा गया हैं कि उपरोक्त विषय के संदर्भ में नियम, अहर्ताएं, प्रक्रिया, समीतिगठन, नियुक्ति या संबंधित विषयों पर रिट याचिका प्रस्तुत की जा सकती हैं। जिसमें अंतिम राहत बावत प्रार्थना की जाना संभावित हैं।

सूत्रों के अनुसार विश्वविद्यालय ने निदेशक पद के लिए उच्च शिक्षा अनुदान आयोग, नेट, स्लेट के नियमों को दरकिनार करते हुए अपने नियम बना लिए हैं। सामान्यतः आयु सीमा 35 वर्ष होती हैं। विश्वविद्यालय ने अपने यहां न्यूनतम आयु सीमा 54 वर्ष रखी हैं। निदेशक पद के लिए PSC से चयन कराये जाने की बजाय विश्वविद्यालय सीधा भर्ती करे का प्रयास कर रहा हैं। इसी के साथ ही निदेशक पद के लिए अध्ययन अध्यापन की बजाय संभाषण की योग्यता आवश्यक की गई हैं। एक अन्य योग्यताके तौर पर किसी सामाजिक संस्था और न्यास में कार्यानुभव मांगा गया हैं।

उक्त योग्यताएं और अहर्ताओं को देखकर माना जा सकता हैं कि विश्वविद्यालय किसी खास व्यक्ति की नियुक्ति केलिए नियमों को दरकिनार कर रहा हैं। उक्त विश्वविद्यालय पूर्व में भी नियुक्तियों के मामले में SIT जॉच के घेरे में आ चुका हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के निर्देश पर यह ताना बाना बुना गया हैं।

जब इस संदर्भ में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रमेशचन्द पाण्डा से बात की तो उन्होंने कहा कि मैं बाहर था मुझे इसकी जानकारी नहीं हैं। इस विषय में आप कुलसचिव से बात कर लें। जब कुलसचिव से संपर्क किया तो उन्होंने विषय सुनकर कहा कि मैं एक बैठक में हूँ बाद में बात कीजिए। पुनः संपर्क करने पर उनसे संपर्क नहीं हो सका।

विश्वविद्यालय परिसर

पुराण प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी के उपान्त्य क्षेत्र में लगभग 25 एकड़ भूमि में विस्तीर्ण एक कोमल उपत्यका के क्रोड़ में अवस्थित यह महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय सम्पूर्ण भारत के केन्द्र में संस्कृत अध्ययन, अध्यापन का प्रथम संस्थान है, जहाँ न केवल भारतवर्ष से अपितु सम्पूर्ण विश्व से ज्ञान पिपासु विद्यार्थी भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान से साक्षात्कार करेंगे और आधुनिक ज्ञान आधारित समाज में देश में एक उदात नागरिक की भूमिका अदा करेंगे।

पूरी परियोजना लगभग 68 करोड़ की हैं। वास्तुशिल्पज्ञ से चर्चा कर इस परियोजना पर वर्तमान में रूपये 42 करोड़ का व्यय अनुमानित किया गया है। इसके वास्तुशिल्प में न केवल वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों को ध्यान में रखा गया है अपितु तक्षशिला प्राचीन विश्वविद्यालय तथा मालवा के शिल्प के प्रभाव को भी आधुनिक वास्तुशिल्प में संयोजित किया गया है जिससे प्राचीन अर्वाचीन के समागम का एक मनोहारी दृश्य उपस्थित करने का प्रयास किया गया है। मुख्य शैक्षणिक भवन तथा मुख्य प्रशासनिक भवन के अलावा प्रथम शैक्षणिक भवन ‘पंचवटी’, ‘भरत का रंगमंच’, ‘वैदिक उद्यान’ तथा ‘वेधशाला’ इस परिसर के विशेष आकर्षण के केन्द्र रहेंगे। शैक्षणिक उपयोगिता की पूर्ति के साथ-साथ इस परिसर के आकल्पन में विद्यार्थियों के समग्र विकास के तत्वों को भी समाविष्ट किया गया है।

प्रथम शैक्षणिक भवन ‘पंचवटी’ के शिक्षा सत्र 2012-13 में निर्माण होने की सम्भावना है।
 

 

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