हमें पहचानते हो? हमको हिंदुस्तान कहते हैं

 

उम्दा शायरी से सजी मुशायरे की महफ़िल
खबर नेशन / Khabar Nation
इंदौर। मोहब्बत,जज्बात के अल्फ़ाज़ की खुशबू फ़िज़ा में बिखर रही थी।मुशायरे में उम्दा शेर सुनकर श्रोता वाह-वाह करते रहे।दरगाह मैदान खजराना पर सजी महफ़िल का आगाज़ शमां रोशन कर पूर्व विधायक सत्यनारायण पटेल,सदर अरब अली पटेल,अंसार पटेल,युनुस पटेल गुड्डू आदि ने किया।अखिल भारतीय मुशायरा में अंतरराष्ट्रीय शायर डॉक्टर राहत इंदौरी, दिल्ली से  गीता चिश्ती,उज्जैन से शबनम अली शबनम, इक़बाल अशहर,मालेगांव से मुश्ताक़ अहमद,अकोला से नईम फ़राज़,ऐटा उत्तरप्रदेश से अज़्म शाकिरी,ग्वालियर से ज्योति आज़ाद और निगार अंजुम, पंजाब से रेनू नय्यर,मैनपुरी से आरिफा शबनम, इंदौर से शरीफ कैफ,सतलज राहत,नूह आलम,उज्जैन से डॉक्टर ज़िया राना ने मौजूदा हालात पर उम्दा कलाम सुनाकर खूब दाद बटोरी। देर रात तक महफ़िल जमी रही।उर्स के मुशायरे में पहली बार इतनी भीड़ थी कि सम्भाले नहीं संभल नहीं रही थी।खजराना  स्थित हज़रत नाहरशाह वली के 71वें उर्स के तहत दरगाह ग्राउंड पर देर रात तक मुशायरे की महफ़िल सजी।
जिसमें शायर राहत इंदौरी ने अपनी शायरी से नफरत, जंग और तानाशाही पर चोट भी करते हुए सुनाया-

हमें पहचानते हो? हमको हिंदुस्तान कहते हैं
मगर कुछ लोग जाने क्यूँ हमें मेहमान कहते हैं,
मेरे अंदर से इक-इक करके सब हो गया रुख़्सत,
मगर इक चीज बाकी है जिसे ईमान कहते हैं।
उन्होंने इस तरह की उम्दा शायरी से खूब रंग जमाया।

उज्जैन की शबनम अली ने भी बेहतरीन शायरी पेश की।उन्होंने सुनाया-

मोहब्बतों के घरौंदे जलाना चाहता है / ताअल्लुक़ात के दरिया सुखाना चाहता है / दिखा रहा है हथेली में चाँद लोगों को /  सितम ये है के वो सूरज बुझाना चाहता है।

उनका यह कलाम भी पसंद किया गया-


फूलों की तरह लोग थे तलवार बनाया,
अपनो ही को अपनो का गुनहगार बनाया,
नापाक सियासत तेरा अंजाम बुरा है,
तूने यहां रिश्तों को भी बाज़ार बनाया।

खूबसूरत लबो-लहजे के शायर अज़्म शाकिरी ने तरन्नुम में ग़ज़ल पेश की-

लाखों सदमें ढेरों ग़म,
फिर भी नहीं हैं आंखें नम।
इक मुद्दत से रोए नहीं,
क्या पत्थर के हो गए हम।
यूं पलकों पे हैं आँसू,
जैसे फूलों पर शबनम।
ख़्वाब में वो आ जाते हैं,
इतना तो रखते हैं भरम।
हम उस बस्ती में हैं जहाँ,
धूप ज़ियादा साये कम।
अब ज़ख्मों में ताब नहीं,
अब क्यों लाए हो मरहम।

शायर शरीफ कैफ ने अपनी शायरी के ज़रिए ने सच और एकता का पैगाम दिया-

कर रहे हैं हम सभी को जोड़ने की कोशिशें,                                   टूट जाएंगी तुम्हारी तोड़ने की कोशिशें,
रेज़ा रेज़ा होके भी सच्चाई वो बतलाएगा,
रायग़ा (व्यर्थ) जाएंगी शीशा तोड़ने की कोशिशें।

मालेगांव के शायर मुश्ताक़ अहमद की शायरी में हालात पर नज़र मालूम पड़ती है, उन्होंने सादगी से कहा-

क्या जाने इस लड़ई का अनजाम क्या बने,
ये चाँद कितना छोटा है कितनी बढ़ी है रात,
मुश्ताक़ रोशनी से कहो मोर्चा  ना छोड़े,
लड़ती रहे के सिर्फ घड़ी दो घड़ी है रात।

नूह आलम ने मुल्क में चल रहे माहौल पर सुनाया-

ना होगा कोई भी किस्सा ना कोई बाब होगा...इंक़लाब होगा,
नये फिरंगियों से अब नया हिसाब होगा...इंक़लाब होगा...

पुलिस का ख़ौफ़ दिखा कर हमें डराएगा...हमें भगाएगा,
तेरा ख़्याल ग़लत है तू कामियाब होगा...इंक़लाब होगा...

हमारा ख़ून ज़मीनों के काम आएगा...अगर बहाएगा,
हमारे ख़ून से रोशन ये आफताब होगा...इंक़लाब होगा...

सतलज राहत ने गांधी के नाम पर सियासत करने वालों को तंज़ करते हुए उम्दा नज़्म सुनाई और खूब वाहवाही लूटी-

मैं मीम में हूँ , मैं भीम में हूँ
तामीर में हूँ , तरमीम में हूँ
एक खाना ए तकसीम में हूँ
हर पल हक़ की ताज़ीम में हूँ 

मैं गांधी जी की टीम में हूँ

सर फोड़ो मेरा नारा नही 
घर छोड़ो मेरा नारा नही 
दिल तोड़ो मेरा नारा नही 
मुँह मोड़ो मेरा नारा नही 

जो जोड़े उस स्किम में हूँ
मैं गांधी जी की टीम में हूँ

मुझे पीला हरा नही दिखता 
मुझे सिर्फ तिरंगा दिखता है 
तुझे देश प्रेम से क्या मतलब
तुझको बस दंगा दिखता है 

तू नफरत के कपड़ो में है 
मैं देश प्रेम की थीम में हूँ
मैं गांधी जी की टीम में हूँ 

कितनी नफरत तू बाटेगा
यूं थूक के कब तक चाटेगा 
मैं भारत की बुनियाद में हूँ 
मेरा नाम कहाँ तक काटेगा

मैं छत में हूँ मैं बीम में हूँ 
मैं गांधी जी की टीम में हूँ

पंजाब से पधारीं रेनू नय्यर ने उर्स की मुबारकबाद देते हुए
सुनाया-

ख़ुदा से उसे माँग कर देखते हैं,
फिर अपनी दुआ का असर देखते हैं

दिल्ली की गीता चिश्ती ने नोजवानों के दिल की बात कही-

मोहब्बत करने से अपनों का दामन छूट जाता है,
नदी का साथ देने से समंदर रूठ जाता है,
मोहब्बत पढ़ने और लिखने में आसान लगती है,
मोहब्बत को निभाने में पसीना छूट जाता है।

नाबीना शायरा आरिफा जो शायरी वो सुना रही थी उसकी दाद कौन दे रहा है यह भी वह नहीं देख सकती। बावजूद इसके वह पूरे जोश और यकीन से रूबरू हुईं और अच्छा पढ़ा-

मैंने कोई सूरज कोई तारा नहीं देखा,
 किस रंग का होता है उजाला नहीं देखा,
सुनते ही थे कि अपने ही होते हैं घर लूटने वाले, 
अच्छा हुआ कि मैंने ये तमाशा नहीं देखा”

संचालन हाशिम रज़ा ने किया। आखिर में सभी का शुक्रिया सदर हाजी अरब अली पटेल ने किया।

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