शिव उपासना के साथ साथ कृष्ण कथा मर्मज्ञ पंडित देव प्रभाकर शास्त्री

खबर नेशन के लिए

रिज़वान अहमद सिद्दीक़ी

ग्रुप एडिटर

डिजिआना मीडिया ग्रुप

(न्यूज़ वर्ल्ड , डीएनएन न्यूज़ , डिजिआना न्यूज़)

 

पंडित देवप्रभाकर शास्त्री दद्दा जी सामान्य कद काठी और असाधरण व्यक्तिव दद्दा जी को देख और सुनकर सहज ही यह विचार आना स्वाभाविक है सामान्य लेकिन अदभुत अनुकरणीय है उनका जीवन और जीवन दर्शन बहुत सहजता से अपनी बात दूसरे तक पहुंचाने और उसे अपना बना लेने की विलक्षण क्षमता थी उनमें कोई भी विशेषण लगाते समय लगातार लग रहा है मानो सूरज को दिया दिखाने की चेष्टा कर रहा हूँ।

           दद्दा के अवस्थ्य होने और देवलोक गमन की दुखद सूचना ने सबको शोकमग्न कर दिया है दद्दा अब कभी साक्षात नही मिलेंगे न यह विश्वास हो रहा है और न ही सहन हो रहा है । आज दद्दा के पूरे विश्व भर मे लाखों अनुयायी हैं लेकिन मुझे उनका स्नेह तब से प्राप्त है जब मै 7 वर्ष का रहा होऊंगा। पहली बार मैने उन्हें उनके पैतृक ग्राम कूड़ा में देखा था मेरे पिता फ़ॉरेस्ट ऑफ़िसर थे और उनके कोई अधिकारी आये थे जो शास्त्री जी के दर्शन करना चाहते थे तो हम भी साथ हो लिये रास्ते भर उन अधिकारी से दद्दा की प्रशंसा सुनते बीता लगा कोई बहुत बड़ी हवेली होगी कोई बहुत रोबीले व्यक्ति होंगे लेकिन जब देखा तो वहाँ एक सामान्य से व्यक्ति मिले जिनके पास जाकर हम सब बैठ गये मै सोचता रहा यह वही हैं जिनके बारे में इतनी बातें हो रही थीं यह तो बिल्कुल आम इंसान की तरह मिली जुली क्षेत्रीय भाषा मे बोल रहे हैं ऐसे पहली बार मिला था मै शास्त्री जी से पंडित जी से।

                 वापसी के समय जब पापा अकेले मिले तो मैने कौतूहलवश धीरे से अपने मन मे उठ रहे सारे सवाल कर डाले उन्होंने कहा बेटा इंसान के कपड़े और उसकी बोली से नही क़ाबलियत और गुण और अच्छाई से उसे पहचाना जाता है यह बहुत पहुंची हुई हस्ती हैं इनकी लोग इज़्ज़त करते हैं यह बहुत पढ़े लिखे इंसान हैं उस उम्र में पिता यदि किसी की प्रशंसा कर दे तो बच्चे के लिये वह बहुत महत्वपूर्ण होता है हमने भी मान लिया अच्छे इंसान ऐसे भी होते हैं फिर यह सिलसिला चलता रहा । कालांतर में उनकी ख्याति बहुत दूर दूर तक पहुंच गई अब उनके शिष्य उन्हें दद्दा जी कहने लगे पंडित देवप्रभाकर शास्त्री बचपन से मन मे थे मुझे तो वो देवदूत और प्रकाश पुंज ही लगते रहे ।

            उन्होंने पार्थिव शिव लिंग निर्माण का संकल्प लिया और पहले अपने गुरु आदेश को पूरा किया फिर स्वप्रेरणा से नया लक्ष्य लिया और फिर शिष्यों के आग्रह पर निर्माण कार्य जारी रखा 131 सवा करोड़ शिवलिंग निर्माण महायज्ञ का उन्होंने आयोजन किया जो असम्भव सा लगता है जिसे उन्होंने पूरा कर दिखाया । सिंहस्थ महाकुंभ में हुये शिवलिंग निर्माण गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है 5 करोड़ शिवलिंग निर्माण का कार्य एक दिन में ही पूरा हो गया था अनेक आयोजनों का साक्षी बनने का मुझे सौभाग्य मिला । आयोजन के साथ पर्यावरण संरक्षण का भी उन्होंने सदैव ध्यान रखा।

                2001 की बात होगी  मै तब ईटीवी में रिपोर्टर था मुझे हमारे संपादक ने आदेश दिया कि आयोजन कवर करो और हम पहुंच गये दद्दा जी को पता चला कि मै आया हूँ तो उन्होंने मेरा विशेष ख़्याल रखा और मुझे आशुतोष राणा और राजपाल यादव के साथ ठहराया वो हमारा हाल चाल पूछना नही भूले ऐसे ध्यान रखते थे वो हमारा । एक बार की आपबीती स्मरण हो आई उनके आयोजन में गया था देखते ही उन्होंने स्नेह से समीप बुलाया और हालचाल पूछा मैने हाथ जोड़कर उत्तर दिया फिर मुझसे बोले विश्राम कक्ष में मिलना । उनके आदेश पर मै उनके पास गया उन्होंने एकांत में मुझे पूछा ठीक हो क्या बात है मैने स्वीकृति में सिर हिला कर जी कहा फिर उन्होंने मेरे पिता के बारे में पूछा और अंततः मुझे अपने पिता की समस्या से उन्हें अवगत करवाना पड़ा बोले मै समझ रहा था तुम संकोच कर रहे हो और उन्होंने तत्काल चार लाइन का पत्र तत्कालीन डीजीएफ़ को लिखकर मुझसे कहा भोपाल जाओ और उनसे मिलो काम हो जायेगा मेरा काम पहली मुलाक़ात में ही हो गया। इस प्रकार मेरे मन की बात भी भांप गये थे वो जब भी मै उनके पास जाता बहुत स्नेह मिलता कई बार दूसरों को वो मेरे बारे में बताते भी थे । ज़ात धर्म ऊंचनीच भेदभाव और आडंबर से परे थे वो मुझे तो इंसानियत के फ़रिश्ते लगते थे वो ज़्यादातर संत अपनी वेशभूषा के कारण पहचान में आते हैं लेकिन दद्दा जी अपने आचार विचार और व्यवहार के कारण शिष्यों के अतिरिक्त हम जैसों के मन मे भी बसते हैं। संत प्रायः ब्रम्हचर्य का पालन करते हैं लेकिन गृहस्थ संत थे इसलिये भी वो हमें और आकर्षित करते थे पुराने युगों में ऋषि मुनि जैसे गृहस्थ होते थे दद्दा जी हमे वैसे ही लगते थे। सांसारिक जीवन दायित्व के साथ संत भी उनका यह रूप अत्यंत अपना सा लगता था वह सभी धर्मों के प्रति आदर का  संदेश उनसे मिलता था। 

       शनिवार को बुरी ख़बर आई तो पुरानी बातें स्मरण हो आईं उनके अनेक आयोजन में सम्मिलित हुआ मैं वो सनातन धर्म के ऐसे संत थे जो दिन में शिव की उपासना करते थे तो रात में श्रीकृष्ण कथा सुनाते थे ऐसा शायद ही कोई संत हो।

 

Share:


Related Articles


Leave a Comment