अगर इंदौर भोपाल में प्रशासनिक अफसरों की तैनाती तो मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल गठन जरुरी क्यों नहीं ?


कोरोना संकट के बढ़ते खतरें को देखकर एक दिन में तैनात किए कलेक्टर के बारह सहयोगी
खबर नेशन/ Khabar Nation
Covid 19 के प्रबंधन व्यवस्था में सहयोग हेतु मध्यप्रदेश शासन के सामान्य प्रशासन विभाग ने अनुभवी अधिकारियों की तैनाती भोपाल इंदौर में कलेक्टर के अधीन की है।यह तैनाती भोपाल और इंदौर में कोरोना वायरस संक्रमण से बिगड़ते हालातों को  नियंत्रित किए जाने के मद्देनजर की गई है।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार के गठन के बाद कोरोना वायरस संक्रमण के चलते आनन फानन शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई थीं। लगभग बीस दिन हो गए हैं शिवराज ने अभी तक अपने मंत्रिमंडल का गठन नहीं किया है।कोरोना वायरस संक्रमण के चलते देशव्यापी लॉक डाउन में शिवराज अकेले ही राजनैतिक और प्रशासनिक निर्णय ले रहे हैं। इस दौरान कई महत्वपूर्ण निर्णय और शासकीय प्रक्रियाओं को निपटाया गया । जिनमें मंत्री परिषद की मंजूरी आवश्यक होती है।
मध्यप्रदेश में विधानसभा की संख्या बल के आधार पर निर्धारित 15 प्रतिशत के अनुपात में मुख्यमंत्री सहित 35 मंत्री बनाए जा सकते हैं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने और भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनवाने के एवज में समझोते के तहत हाल ही में भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके गुट के 22 इस्तीफा देने वाले विधायकों  के गुट को संतुष्ट किया जाना जरुरी है। बताया जा रहा है कि सिंधिया गुट के 8 से 10 नेताओं को मंत्री बनाया जाएगा। इसके चलते शिवराज के मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय,जातिय, एवं गुटीय संतुलन के साथ साथ वरिष्ठता का संतुलन बिगड़ने के आसार बन गये हैं। सूत्रों के अनुसार शिवराज जानबूझकर भी मंत्रिमंडल का गठन नहीं कर रहे हैं ,ताकि भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं को उनकी हैसियत का अंदाजा करा दिया जाए।कारण जो भी हो प्रदेश में इस बहाने संवैधानिक माखौल भी जमकर उड़ाया गया। मंत्रिमंडल गठन जल्दी कराए जाने को लेकर कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य एवं प्रख्यात कानूनविद विवेक तनख़ा ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है।
 राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, बेंगलुरु में कानून की पढ़ाई कर रहे आदित्य शर्मा ने बताया कि संवैधानिक प्रावधान के अनुसार 12 मंत्रियों का होना आवश्यक है । इस तरह के हिमाचल प्रदेश के एक मामले में कई वर्षों पूर्व एक याचिका दायर की गई थी लेकिन किसी भी प्रकार की कोई स्पष्ट रुलिंग नहीं दी गई । गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश की विधानसभा की सदस्य संख्या कम थी जिसके चलते न्यूनतम बारह सदस्यों की संख्या नहीं हो पा रही थी ।  लेकिन उस समय दस मंत्री थे इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर दो या तीन मंत्री होते तो इस पर संवैधानिक आधार पर विचार किया जा सकता है । उत्तर पूर्व के कई राज्यों में इस तरह की समस्या उत्पन्न होती रहती है जहां ये न्यूनतम संख्या का पालन नहीं हो पाता है ।
आदित्य के अनुसार मध्यप्रदेश जैसे राज्य में यह गुड गवर्नेंस के लिए बेहतर उदाहरण नहीं माना जा सकता है । इसी के साथ ही उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडल गठन को लेकर समय की कोई भी सीमा संविधान में नहीं दी गई है लेकिन संविधान में राज्यपाल के दिए गए अधिकारों एवं कर्तव्यों के पालन के लिए मंत्रिपरिषद को सलाहकार के तौर पर मान्यता दी गई है। ऐसे में जब मंत्रिमंडल का गठन ही नहीं हुआ है तो राज्यपाल सलाहकार मंडल की बगैर अनुशंसा के जो निर्णय ले रहे हैं वे असंवैधानिक माने जा सकते हैं।
राजनैतिक हलकों में भी इस मामले को लेकर चर्चाओं के दौर चल रहे हैं और इसकी तीखी आलोचनाएं भी की जा रही है ।

 विवेक तनखा ने चिट्ठी में लिखा है - कि यदि संवैधानिक तरीके से सरकार चलाना संभव नहीं है तो ये अनुच्छेद ३५६ के अन्तर्गत राष्ट्रपति शासन लागू करने की स्थिति बनती है, और ऐसे में राज्यपाल को ये सुझाव देना चाहिए राष्ट्रपति को। संविधान के अनुसार 164(1ए) का पालन नहीं किया जा रहा है ।
हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा समाचार में उल्लेखित निर्णय को लेकर एक बार फिर यह सवाल मौजूं हो उठा है कि अगर कोविड19 को लेकर कलेक्टर के प्रशासनिक सहयोगी नियुक्त किए जा रहे हैं तो क्या शिवराज को अपने राजनैतिक एवं प्रशासनिक कार्यों के लिए मंत्रिपरिषद का गठन नहीं करना चाहिए ?

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