बिना सिंदूर की फॉर्च्यूनर

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इस व्यंग के लेखक हैं प्रिय अभिषेक 

राजधानी के एक विशाल बंगले के कोने में खड़ी दादी एम्बेसडर और नानी फ़िएट में बातें चल निकली : 'बहन गज़ब है गयो , सुबह फॉर्च्यूनर खड़ी थी ,देखती क्या हूँ सर पर बत्ती ना लगाए! वैसे तो आजकल की बहुएं सुने ना हैं पर फिर भी मैंने अपनों फरज अदा करो। मैंने कही कि सुहागिन कार का बिना लाल बत्ती के रहना ठीक ना है; अपसगुन होवे है। भले ही तू व्हील कवर के बिछिया पहने, कर्टेन कौ घूँघट करै, वैक्स क्रीम कौ मेक-अप लगाए, पर मांग भरनी तो जरुरी है .... लाल बत्ती लगा! पर कछू जवाब न दियो बाने, मुंह टेढ़ो करके चली गई।'

'अरे जिज्जी तुम्हे पता ना है का ?' फ़िएट नानी ने पूछा।

'जिज्जी ? मैं कब से बड़ी है गई तुमसे ? तुम मोए जिज्जी न बुलाओ करो। ..खैर का ना पतों है मोए ? का है गयो ?'

'हाकिम ने हुकुम निकाल दियो है कि कोई गाड़ी अपने सर पे लाल बत्ती न लगाएगी ।'

'हाय दैया !! बिना लाल बत्ती के ?'

'और का ! '

फिर दोनों कुछ देर मौन रही।और मौन से सहमति का मार्ग निकलता है , प्रेम का मार्ग निकलता है। 

'वैसे भयो तो सही जिज्... बहन!' फ़िएट नानी ने बात आगे बढ़ाई।

'बिलकुल सही भयो। बड़ा इतराती फिरै थी : तुम्हारा टाइम निकल गया अम्मा। हमारे पास ऐबीएस है, ईबीडी है, टीसीएस है, ईएसपी है, एयर बैग है । जाने कौन-कौन सी एबीसीडी सुना-सुना बेइज्जती करै थी हमारी।..अब फुला ले अपने एयर बैग ! निकल गई हवा ? बड़ी आई एयर बैग वाली। अब तो तेरे जैसी तीन सौ साठ घूम रहीं ,रोड पर। ...भैया हम तो सुहागन आये, सुहागन ही रिटायर भए।'

'बात तो सही कह रही हो जिज्जी ।दिमाग तो बहुत ख़राब थे। गांव से ट्रेक्टर चाचा आये ,साइकिल बुआ आईं , इसने बंगले में न घुसने दियाे उन्हें। जीप ताऊ जी के लिए तो कहे थी : स्मेल आती है , ताऊ जी की सीट्स से।' नानी ने नकल उतारी।

'हा!हा!हा! 'दोनों खिलखिला के हंस दी।

'पर हाकिम ने ऐसो हुकुम निकालो क्यों? '

'कहे तो हैं वीआईपी कल्चर खतम कर रहे ,पर असल बात मोए पतो है।' फ़िएट नानी ने बेचैनी बढ़ाई।

'अच्छा! का है असली बात ? बता तो भला!'

'देखो जिज्जी ! हमारे तुम्हारे टेम पे बात अलग ही। हमारे समय में बड़े संस्कार थे। सेठ जी फ़िएट में चलै हे और  नेताजी तुममें। पर जे तो नेता-व्यापारी दोनों में घुस गई और जे दोनों मिल के जा में घुस लिए। फिर दोनों को पीछे की सीट पर बिठा के इसने क्या-क्या गुल खिलाये हमें सब पतौ है। अब तो लाल बत्ती वाली गाड़ी देख पब्लिक पत्थर मारवे दौड़े ही। ससुरे आपस में दो लोगन की गाड़ी भिड़े, भले बोनट-बम्पर सब टूट जाय, मुस्कुरा के निकल जावे थे। पर लाल बत्ती की गाड़ी से छुल भर जाऐं; हंगामा शुरू। पीछे से मीडिया, खचा-खच फोटू खींचवे पहुँच जाय । और जे नासपीटी वहीँ खड़ी-खड़ी , लाइटें चमका-चमका, फोटू खिचवाती रहे।  .. हाकिम ने कही कि जे गाड़ी तो हाथ से ही निकली जा रही है , इस लाल बत्ती को ही रट्टा खतम करौ। बस !! बत्ती हटते ही पूरा इंजिन को तापमान नीचे आय गयो ।'

तभी वहां से फॉर्च्यूनर फिर निकली। एम्बेसडर दादी मुस्कुराई ,"अरे बहू! एयर बैग चेक कर लेना अपने।"

फ़िएट नानी भी कहाँ कम थी," और वो रिवर्स पार्किंग सेंसर भी! क्या पता कब हमारे बगल में गाड़ी पार्क करनी पड़ जाए, 'रोड दर्शक मण्डल' में।" दोनों फिर खिलखिला के हंस दी। और फॉर्च्यूनर मुंह टेढ़ा कर फिर चली गई।..

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