सरकार! वक्त बदला पर चाल तो वैसी ही है....


/कही अनकही/ प्रभु पटैरिया ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं , मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से प्रकाशित सांध्य दैनिक सच एक्सप्रेस से साभार )

माहौल ठीक वैसा ही है जैसा 15 साल पहले की मकर संक्रांति पर था। सरकार बिल्कुल वैसी ही चल रही है जैसी जनवरी 2004 में थी। फर्क बस इतना है कि तब तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती बेहद उत्साही थीं, अबकी बार के मुख्यमंत्री कमलनाथ शांत प्रवृत्ति के हैं। कमलनाथ के मंत्री वैसे ही अपना विभाग और सरकार चला रहे हैं, जैसा उस समय के नए नवेले मंत्री कर रहे थे। तो बदला क्या है इन पंद्रह बरसों में? बदली है सरकार और सरकार चलाने वाले नेता। सरकार की असली धुरी प्रशासन तो जस का तस है।
दिसंबर 2003 में तब उमा भारती के नेतृत्व में दस साल की दिग्विजय सिंह सरकार को उखाड़कर भाजपा सत्ता में आई थी। दिग्गी राज के कुशासन को कोसते हुए वह सरकार बनी थी, तो आनन-फानन में पिछली सरकार की नीतियों और योजनाओं को बदलने के लिए उमा के मंत्री खासे उतावले थे। उस सरकार के घपले-घोटालों की पोल-पट्टी खोलने के लिए फाइलें खंगाली जा रही थीं। अफसरों की लिस्ट रख कर पोस्टिंग हो रही थी कि कौन कांग्रेसी मानसिकता का है, कौन न्यूट्रल और कौन विचारधारा से जुड़ा हुआ। इस कवायद का असर यह हुआ कि कई बड़े अफसर भी खाकी निकर पहन कर सुबह की सैर पर जाने लगे थे। पंद्रह साल बाद समय बदला को अब अफसरों की खाकी पतलून संदूक के हवाले हो गई और ब्रांडेड ट्रेक सूट में जॉगिंग होने लगी है। हो भी क्यों ना! आज भी तो इतिहास वही दोहराया जा रहा है। अफसरों की कुंडली देखी जा रही है कि वो संघी तो नहीं हैं। संघी निकले तो पशुपालन जैसा महकमा  उनकी बाट जोह ही रहा है। 
 शिव-राज के कुशासन, अवैध उत्खनन और घोटालों को सामने रख कर बनी कमलनाथ सरकार की यह उपलब्धि है कि उसके 28 मंत्रियों में से 22 को पहली बार सरकार में भागीदारी मिली है, वो भी सीधे कैबिनेट मंत्री के तौर पर। अनुभवशून्यता की वजह से सभी नए मंत्रियों की पहली प्राथमिकता अपने विभाग की पड़ताल बन गई है। अफसरों से पिछली सरकार के दौरान हुए टेंडर, महत्वपूर्ण आदेश-निर्देश मांगे जा रहे हैं। उनका छिद्रान्वेषण किया जा रहा है कि वे कितने निरापद थे। किसी को फायदा पहुंचाने की कोशिश तो नहीं हुई। कांग्रेस का वो वचनपत्र अब किनारे धर दिया गया है, जो मंत्रीपद की शपथ लेते समय गीता-कुरान और बाइबल था। 
विभाग मिलते ही मंत्रियों को सबसे पहले पुराने मंत्रियों के पुराने काम याद आ रहे हैं। गड़बड़ियां उजागर करने की उनकी अच्छी मंशा अपनी जगह, लेकिन क्या कोई अफसर खुद के द्वारा पिछली सरकार में किए गए कार्यों का कच्चा-चिट्ठा खोलेगा? खोलेगा तो वह बेदाग कैसे बचा रहेगा? देश के किसी कोने में किसी भी अफसर के साथ हुई घटना पर एकजुट होने वाली ब्यूरोक्रेसी खुद के या अपनी जमात के परखच्चे उड़ाने का सामान मुहैया कराएगी, यह उम्मीद इनसे कैसे की जा सकती है ?  2003 में भी तो यही हुआ था दिग्विजय सिंह सरकार पर हजारों करोड़ के घोटाले के आरोप और उनकी जांच कर दोषियों को सींखचों के पीछे भेजने की हुंकार के साथ बनी उमा सरकार ही नहीं उनके उत्तराधिकारी बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान की सरकार भी पूरे पंद्रह साल में सरकारी भ्रष्टाचार का एक भी पुराना मामला उजागर नहीं कर पाई थी। दिग्गी राजा को एकमात्र जिस मामले में उलझाया गया वो विधानसभा में हुई नियुक्तियों का था। खैर, नई सरकार है और नए मंत्री इसलिए उन्हें हक है कि वो हर उस मामले की तफ्तीश करें, जिसमें जरा से भी भ्रष्टाचार या गड़बड़ी की गुंजाइश हो। कोशिश करने में हर्ज भी क्या है।  कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि वास्तविकता में परिवर्तन हो और व्यवस्थाएं सुधरें। 
मैग्नीफाइंग ग्लास वाली पड़ताल से फारिग हो जाएं तो वचनपत्र सामने रख कर प्रदेश के विकास और जनहित के कार्यों के लिए भी समय निकालें। नीतियों, कार्यक्रमों और व्यवस्था में परिवर्तन करें तो ऐसा कि बदला नहीं बदलाव दिखे। मुख्यमंत्री कमलनाथ भी तो यही चाहते हैं। ऐसा न हो कि पिछली सरकार ने भी व्यापमं घोटाले के बाद इस संस्था का नाम बदला था और आप भी सिर्फ नाम बदलने के जतन में जुट जाएं। उनके दौर में शुरू होने वाली भर्ती परीक्षा को रोक कर कहीं आप रोजगार देने के अपने वचन के खुद आड़े तो नहीं आ रहे। उचित होगा कि प्रवेश और भर्ती के लिए ऐसी अलग-अलग संस्थाएं बनाएं, जिनमें डॉ. सागर जैसे लोगों के लिए सेंध लगाने की कोई गुंजाइश न रहे।

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