राजनीति में इतनी लंबी पारी कैसे खेल गए कैलाश जोशी

 
खबर नेशन / Khabar Nation
वरिष्ठ पत्रकार शिफाली हूं की फेसबुक वॉल से साभार

2003 का साल था....विपक्ष में थी बीजेपी.....और मेरी बीट भी यही थी....चुनाव नज़दीक थे...बिखरी हुई थी पार्टी, बिल्कुल वैसे जैसे बाद में कांग्रेस में होती गई.....दस साल की दिग्विजय सिंह सरकार को हिला पाना भी मुश्किल था.....अरुण जेटली ने उस वक्त एमपी की जिम्मेदारी संभाली....और प्रदेश बीजेपी की कमान सौंपी कैलाश जोशी को...मेरे कल्पनाओँ में राजनेता का मतलब था कि जिनके चेहरे से जिनके चालाकी टपकती हो ,लेकिन पहली बार जब कैलाश जोशी को देखा तो हैरत में थी कि बच्चों सी मासूमियत लिए....जो कहना है मूंह पर कह देने वाले.....कार्यकर्ता को पैर छूने के लिए झुकने से पहले डपट देने वाले....और पत्रकार के उठने और बैठने से पहले ये ताकीद कर देने वाले....कि क्या काम है....कैसे आए......ऐसे नेता राजनीति में इतनी लंबी पारी कैसे खेल गए......
इस मामले में मैं खुशनसीब थी कि मुझे हर बार वो कोई एक्सक्लूसिव जाने अनजाने में दे ही दिया करते थे.....कैलाश जोशी और कप्तान सिंह सोलंकी....ये जुगल जोड़ी हुआ करती थी उन दिनों......दोनों एक दूसरे के पूरक.....और मुझे कोई गुरेज़ नहीं ये कहने में कि बाद में भले बीजेपी सत्ता को मल्टीप्लाई करती रही हो....लेकिन उन दुश्वारियों के हालात में एमपी में बीजेपी की सरकार इन्ही बंधुओं के मेहनत का नतीजा थी...उमा भारती अगर जनता के बीच पार्टी का चेहरा बनीं....तो संगठन को लामबंद होकर उमा भारती के पीछे एकजुट कर देने का काम इन दो बुजुर्गों ने ही किया....
खैर, यूं तो खरा खरा कह देने वाले सियासत के संत पर सैकड़ों खबरें बनाई होंगी.....लेकिन उस रोज़ मैने कैलाश जोशी जी की पत्नि से पूछ लिया था कि उमा भारती को दुबारा  मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए क्या....ये वो वक्त था जिसके बाद उमा भारती बीजेपी मुख्यालय और फिर पार्टी की देहरी से बाहर निकल गई थीं.....तो दिवंगत तारा जोशी जी ने बेबाकी से कहा मेरे हिसाब से तो उमा से बेहतर कोई नहीं.....मैं इनसे कहूंगी कि उमा के बारे में विचार करो......कैलाश जोशी जी तब प्रदेशाध्यक्ष थे बीजेपी...... मुझे आज भी याद है बीजेपी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं की भीड़ में कैलाश जोशी जी ने मुझे बुलाया कहा , उमा जी को सीएम बनवाना है तो हमसे कह देती...तारा जी से क्यों बुलवाया......उन्होने उसे पूरे प्रसंग को कितनी सहजता से लिया...
ऊंगलियों पर गिन भी नहीं सकती....कितनी मुलाकातें हैं.....खबरों के लिए ही हुई मुलाकातें.....लेकिन उन मुलाकातों का एक सिरा आत्मीयता पर जाकर खत्म हुआ......
अब आएँगे तो कोने वाले सोफे पर से झक सफेद जेब वाली बनियान पहनें.....कौन पूछेगा क्या खाओगी....कौन किस्सा सुनाएगा कि राजनीति ऐसी भी होती थी.....आप संदर्भ थे.....कितने किस्से कहानियां एक आवाज़ के साथ खामोश हुए.......
नमन

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