आयाराम-गयाराम से अवाक ईमानदार राजनीतिक कार्यकर्ता और जनता

 

सिद्धांत त्यागते राजनीतिक दल और जनप्रतिनिधि

नाज़नीन नकवी लेखक मध्यप्रदेश के प्रमुख चैनल Ind 24 में कार्यरत हैं । खबर नेशन के लिए राजनीतिक हालात पर समीक्षा......

 

मध्यप्रदेश की राजनीति में पल पल समीकरण बदल रहे हैं । मध्यप्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस में राजनीति उठापटक जारी है।  जहां किसी की राजनीतिक जमीन खिसक रही है तो किसी को सिंहासन मिल रहा है । इन सबके बीच दोनों दलों का ईमानदार कार्यकर्ता अवाक और हैरान सा नजर आ रहा है ।मध्यप्रदेश की राजनीति भी कुछ इस तरह के दौर से गुजरती दिख रही है। वक्त ऐसा बदला कि सत्ता परिवर्तन के साथ कांग्रेस की पकड़ भी ढीली पड़ती नजर आई । एक एक कर कई विधायक पार्टी से दूर हुए ।लगातार पंजे की पकड़ कमजोर हुई और कमल खिलता रहा। कई कांग्रेसी विधायक और कार्य़कर्ता बीजेपी के हो लिए और इसी के साथ शुरू हुआ सिलसिला उठते सवालों का जहां अब खोज की जा रही है कि आखिर क्यों बरसों बरस पुरानी बरगद सी जड़ों वाली पार्टी की जड़ें यूं जमीन छोड़ने लगी या फिर वाकई किसी ने इसमें मठ्ठा डालने का काम किया है। बहरहाल अब सवाल एक फिर गुंजायमान हुए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अब खुद पार्टी संगठन पर सवाल खड़े कर रहे हैं। ये विषय गंभीर है लंबे अरसे के बाद सत्ता वापसी करने वाली कांग्रेस की पकड़ आखिर कहां कमजोर हो गई ? आखिर क्यों पार्टी में लंबे अरसे से जुड़े नेताओं को घुटन महसूस होने लगी? 

राजस्थान का हालिया घटनाक्रम कांग्रेस नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर रहा है । फिर वो ज्योतिरादित्य सिँधिया हो या सचिन सचिन पायलट ? क्यों युवाओं को आगे बढ़ाने की बात करने वाले राहुल गांधी चुप हैं ? क्या ये सिलसिला लंबा चलेगा ?..या कांग्रेस के मंझे खिलाड़ी, चाणक्य सी नीति रखने वाले नेता इन परिस्थितियों को संभाल लेंगे ? क्या पार्टी की बागडोर संभाल रही सोनिया गांधी फिर से इसमें जान फूंक पाएंगी ? कार्य़कर्ताओं के साथ साथ क्या जनता का विश्वास कांग्रेस पर लौटेगा ?क्या कांग्रेस में अहम की लड़ाई का अंत होगा ?समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। बदल रही है रीति नीति भी ऐसे में कांग्रेस को घर भी बचाना होगा ,लेकिन मौजूदा हालात पर वो कहावत याद आती है कि सबकुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ ।

अगर हालात देखें जाएं तो कांग्रेस के ज्यादा खराब नजर आ रहे हैं लेकिन इसी के साथ ही भारतीय राजनीति का विद्रुप चेहरा भी नजर आ रहा है । यह विद्रुप चेहरा तब और विकराल नजर आता है जब शुचिता और अनुशासन की नींव पर तैयार किए गए राजनीतिक दल का ढांचा चरमराता सा दिखाई दे रहा हो । भारतीय जनता पार्टी इन दिनों अपनी पूरी ताकत कांग्रेस को तोड़ने में लगा रही है । कांग्रेस के प्रमुख नेताओं और जनप्रतिनिधियों को इस्तीफा दिलाकर लाना और पार्टी एवं सत्ता में पद देकर उपकृत करना । इन सबसे भाजपा का देवदुर्लभ कार्यकर्ता अपने आप को उपेक्षित और हताश महसूस कर रहा है । ठीक ऐसे ही हालात कांग्रेस के हैं । कार्यकर्ता ईमानदार भाव के साथ काम कर रहा है , लेकिन क्षत्रपों के रहमो-करम पर पनपे नेता विधायक बनकर भाजपा के साथ हो लिए । संकट दोनों तरफ है और जिस जनता ने इन नेताओं को चुना था वह अवाक होकर अपने साथ होते हुए छल को देखने पर मजबूर हो रही है ।

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