तो सुन लो सिंधिया-मोदी-शाह का यह था फार्मूला


Something is better then Nothing
और कांग्रेसी अपनों को गरियाते रहें
खबर नेशन /Khabar Nation

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी , गृहमंत्री अमित शाह और ग्वालियर रियासत के भगोड़े महराज ज्योतिरादित्य सिंधिया का मध्यप्रदेश सरकार गिराने और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भगदड़ मचाने का यह फार्मूला था । एक तीर से दो निशाने कर मोदी शाह सफल हो गए लेकिन तीर बने सिंधिया और भाजपा खुद को घायल कर बैठे हैं ।
कुछ पाना है कुछ कर दिखाना है के चलते समथिंग इज बेटर दैन नथिंग का फार्मूला अपनाया गया और टीस से भरे सिंधिया आधुनिक राजकुमारों मोदी शाह के तीर बन बैठे । पूरी कांग्रेस मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ और उनके सहयोगियों सहित दिग्विजय सिंह को कोसने पर आमदा हो गई ।  दिग्विजय सिंह को कोसने की यह मध्यप्रदेश की स्थानीय भाजपा इकाई की रणनीति रही। जिसे सिंधिया अपने पक्ष में और सिंधिया समर्थक भाजपा रणनीतिकारों की सौंपी गई स्क्रिप्ट को पढ़ते रहे । मध्यप्रदेश का कांग्रेसी मान बैठा है कि दिग्विजय सिंह ने अपने पारिवारिक स्वार्थ के चलते और कमलनाथ ने अपने अहं के चलते कांग्रेस का बंटाधार कर दिया । बंटाधार भाजपा की राजनीति और रणनीति के लिए हमेशा मुफीद साबित हुआ है ।
बार बार यह कहा जा रहा है कि मध्यप्रदेश में गुटीय राजनीति के चलते दिग्विजय कमलनाथ से सिंधिया हमेशा पिछड़ते रहे । चाहे पूर्व में प्रदेशाध्यक्ष का मामला हो या मुख्यमंत्री पद का या फिर राज्यसभा जाने का । राजनैतिक सूत्रों के अनुसार अगर मध्यप्रदेश की राजनीति में गौर करेंगे तो सिंधिया हमेशा फायदे में रहे और इस बहाने उनके सारे समर्थक भरपूर उपकृत होते रहे । लोकसभा 2019 का चुनाव हारने के बाद सिंधिया की मनोस्थिति में जबरदस्त परिवर्तन देखा जा रहा था । कुछ ना हो पाने की छटपटाहट में आग में घी डालने का काम किया लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद से राहुल गांधी का इस्तीफा और उसके बाद घटे घटनाक्रम से। आपको याद होगा कि इस्तीफे के बाद राहुल गांधी ने कहा था कि अब गांधी परिवार का कोई भी व्यक्ति इस पद की दावेदारी नहीं करेगा। कांग्रेस में उभरे नामों में एक प्रमुख नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी रहा। सिंधिया के प्रमुख नाम रहने की वजह थी गांधी परिवार से उनके निजी संबंध लेकिन कार्यवाहक अध्यक्ष के तौर पर मोतीलाल वोरा और फिर श्रीमती सोनिया गांधी के आ जाने से सिंधिया जबरदस्त तरीके से विचलित हो गये । सिंधिया की मनोस्थिति शाह मोदी भांप गये लेकिन नहीं भांप पाई तो कांग्रेस या भांप भी गई तो जानबूझकर अनजान बनी रही। इसी दौरान शाह और मोदी ने सिंधिया को ट्रैप करना शुरू कर दिया । कश्मीर में धारा 370 हटाने , एन आर सी , सीएए और सीएबी पर सिंधिया के बयान इसी रणनीति का हिस्सा रहे ।  ट्विटर प्रोफाइल पर बदलाव भी इसी रणनीति का हिस्सा रहा जिससे यह आंका जा सके कि इसका असर सिंधिया समर्थकों में कैसा रहेगा । जब संपूर्ण तरीके से आश्वस्त हो गये तब इस रणनीति को पूर्ण अंजाम दिया गया । सिंधिया के सड़क पर उतरने के बयान तक कांग्रेस के आला नेताओं सहित दिग्विजय सिंह और कमलनाथ को यह पूरा भरोसा हो गया था कि सिंधिया कभी भी कांग्रेस का दामन छोड़ सकते हैं लेकिन पूर्व के अनुभव जब विकास कांग्रेस और तिवारी कांग्रेस बनी थी के घटनाक्रम को देखकर दिग्विजय कमलनाथ यही समझे कि सत्ता छोड़कर कोई मंत्री विधायक नहीं जाएगा । सो दोनों गफलत में रहे।इस बात की जानकारी का अहसास ना सिंधिया समर्थक विधायक कर पाये और ना ही भाजपा के स्थानीय रणनीतिकार इन्हें भी अंतिम समय में सूचना दी गई । और इसके बाद साम, और सूत्रों के अनुसार  भरपूर दाम से इन सिंधिया समर्थकों को कब्जा लिया गया ।

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